सिंगापुर में गे पुरुषों के बीच संबंध की आजादी
२२ अगस्त २०२२सिंगापुर औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करक पुरुषों के बीच शारीरिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला है. लेकिन वह इसको सुनिश्चित करने के लिए संविधान में संशोधन करेगा कि समान-विवाह की अनुमति नहीं हो.
पुरुषों के बीच संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के सिंगापुर के फैसले को 5 अरब की आबादी वाले एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए सही दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है.
वार्षिक नेशनल डे पर आयोजित रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ली हसिइन लूंग ने कहा कि वह 377 ए कानून को निरस्त करने में विश्वास करते हैं और ऐसा "अभी करना सही बात है." उन्होंने कहा कि गे संबंध को गैर-आपराधिकरण करने को देश के अधिकतर लोग स्वीकार करेंगे.
सालों पुराना कानून
प्रधानमंत्री ने कहा, "सहमति देने वाले वयस्कों के बीच निजी यौन व्यवहार से कानून व्यवस्था का कोई भी मुद्दा पैदा नहीं होता. इस तरह के लोगों पर मुकदमा चलाने और इसे अपराध बनाने का कोई औचित्य नहीं है."
ली ने कहा, "यह कानून को वर्तमान सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुरूप लाएगा और मुझे उम्मीद है समलैंगिक नागरिकों को कुछ राहत मिलेगी."
अमेरिका में खुद को एलजीबीटी मानने वाले लोगों की संख्या हुई दोगुनी
ली ने साथ ही कहा, "377 ए को निरस्त करने के बावजूद हम विवाह की संस्था को बनाए रखेंगे और उसकी रक्षा करेंगे."
1930 के दौर में दंड संहिता की धारा 377 ए ब्रिटिश राज के तहत लागू की गई थी. सिंगापुर पर ब्रिटिश राज 1963 में खत्म हो गया जब सिंगापुर मलेशिया का एक राज्य बन गया और दो साल बाद वह आजाद हो गया. आजाद होने के बाद सिंगापुर ने धारा 377 ए को बनाए रखा. इस धारा के उल्लंघन करने वाले को दो साल की सजा का प्रावधान है.
एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति
ऑस्ट्रेलिया के सभी राज्यों ने 1975 और 1997 के बीच समान-लिंग विवाह प्रतिबंधों को निरस्त कर दिया था. देश की संसद ने 2017 में समान-लिंग विवाह को वैध कर दिया और 2016 से सभी उम्र के लिए सहमति की अनुमति दी.
वहीं चीन में समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जाता है, लेकिन निकट भविष्य में समान-विवाह के कानूनी होने की संभावना नहीं है. हालांकि एलजीबीटक्यू समुदाय चीन के प्रमुख शहरों में बहुत सक्रिय हैं, बावजूद इसके इसे समाज पर एक बुरा धब्बा माना जाता है.
भारत की बात की जाए तो 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की एक धारा को रद्द कर दिया था, जिसमें समान-सेक्स के लिए 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान था. इस ऐतिहासिक फैसले के बावजूद, भारत में समलैंगिक विवाह अभी भी अवैध है और समान-विवाह को वैध बनाने के लिए कई याचिकाएं कोर्ट में लगाई जा चुकी हैं. हालांकि, पिछले एक दशक में भारत के बड़े शहरों में एलजीबीटी समुदाय ने कुछ पहचान हासिल करना शुरू कर दिया है.
एए/सीके (एपी, एएफपी)
भारत में धीरे-धीरे सम्मान पाता एलजीबीटी समुदाय