प्रवासी श्रमिकों के लिए पत्थर से बनी मर्सिडीज
क्रोएशियाई मूर्तिकार रोको ड्रजिस्लाव रेबिक एक स्मारक के रूप में मर्सिडीज बेंज मिनिका कार की एक आदमकद पत्थर की नकल बना रहे हैं.
क्रोएशियाई शहर में मर्सिडीज
क्रोएशियाई मूर्तिकार रोको ड्रजिस्लाव रेबिक मर्सिडीज बेंज मिनिका कार की नकल ऐसे हजारों मजदूरों को समर्पिक करने के लिए बना रहे हैं जो बेहतर भविष्य के लिए देश छोड़ कर चले गए हैं.
सफलता मतलब मर्सिडीज
ऐसे मजदूरों के लिए मर्सिडीज कार सफलता के एक प्रतीक में जाने जानी लगी. विदेश से मजदूर जब अपने देश लौटते तो वे अपनी सफलता का इजहार करने के लिए इस कार में सवार होकर आते. वह जताने की कोशिश करते कि उन्होंने गरीबी और बेरोजगारी से भागकर पैसा बना लिया.
आठ हजार मर्सिडीज
इमोट्स्की दिनारा पर्वत की तलहटी में बसा एक छोटा सा शहर है. शहर में 25 हजार लोग रहते हैं, लेकिन यहां करीब 8000 मर्सिडीज कारें हैं. क्योंकि, जब इस शहर से कोई भी शख्स दौलत की तलाश में जर्मनी गया तो कुछ साल बाद मर्सिडीज कार लेकर लौटा.
मर्सिडीज के लिए दीवानगी
इस शहर के लोग सोचते हैं कि मर्सिडीज सिर्फ एक कार नहीं है, यह असल में सफलता का प्रतीक है. मूर्तिकार रोको ड्रजिस्लाव रेबिक क्रोएशिया छोड़ने वाले प्रवासियों को श्रद्धांजलि देने के लिए पत्थर से बना एक मर्सिडीज शैली का स्मारक बना रहे हैं.
बेहतर भविष्य की तलाश
यूक्रेन युद्ध शुरू होने तक, मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका से आप्रवासियों के यूरोप चले जाने की खबरें थीं, लेकिन आर्थिक रूप से समृद्ध यूरोपीय देशों में शरण लेने का इतिहास बहुत पुराना है. क्रोएशिया से भी सैकड़ों लोग जर्मनी समेत विभिन्न यूरोपीय देशों में नौकरी की तलाश में जाते रहे हैं.
जर्मनी जाते क्रोएशियाई
क्रोएशिया से पहली बार बड़ी संख्या में लोग 1971 में जर्मनी गए. क्रोएशिया के यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के बाद 2018 में जर्मनी में लोगों का एक और बड़ा आगमन हुआ.