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गुदा कैंसर की नई दवा ने जगाई उम्मीदें

क्लेयर रोठ
१७ जून २०२२

रेक्टल यानी गुदा कैंसर की दवा के एक ट्रायल में शामिल तमाम मरीजों का कैंसर छह महीने बाद खत्म हो गया. जानकार बताते हैं कि ये अपने आप में बेशक एक 'क्रांतिकारी' घटना है लेकिन कई और अलग अलग किस्म के अध्ययनों की दरकार है.

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Pharmaunternehmen GlaxoSmithKline
तस्वीर: Rafael Henrique/ZUMAPRESS/picture alliance

एक छोटे से प्रयोग में डोस्टरलिमैब नाम की दवा लेने के बाद, सभी 12 प्रतिभागियों में कैंसर पूरी तरह मिट गया. डॉक्टरों के मुताबिक पहली बार कोई क्लिनिकल ट्रायल 100 फीसदी सफल रहा है. न्यू यार्क के मेमोरियल स्लोएन केटरिंग कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन के नतीजे न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए थे.

इस अध्ययन को दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन से फंडिंग मिली थी. कैंसर के मरीजों को छह महीने के दौरान हर तीसरे सप्ताह नस के जरिए दवा दी गई थी.

रेक्टल कैंसर उपचार के साइड-अफेक्ट

अध्ययन के मुताबिक किसी भी मरीज में बीमारी के लक्षण फिर से उभरते नहीं दिखे, ना ही उन्हें औसतन करीब एक साल की फॉलोअप अवधि के दरमियान और इलाज की जरूरत पड़ी. इसके अलावा 12 मरीजों में से किसी में भी गंभीर दुष्प्रभाव नहीं देखा गया. गुदा कैंसर के इलाज में ये अकसर एक बड़ी समस्या रहती है.

हालांकि कुछ मरीजों में चकत्ते, त्वचा में सूजन, थकान, बदन में खुजली या मिचली जैसे साइड इफेक्ट देखे गए लेकिन किसी को भी कोई गंभीर परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा जैसा इन मामलों में आम तौर पर होता है. बाकी कई तरह के इलाज से लोगों में बांझपन, न्यूरोपेथी यानी तंत्रिकाविकृति या सेक्सुअल डिसफंक्शन यानि यौन निष्क्रियता जैसे गंभीर दुष्प्रभाव दिखते हैं.

USA Chemotherapie Jason Mandelsohn
ट्रायल में दुर्लभ किस्म के रेक्टल कैंसर को भी परखा गयातस्वीर: privat

जितने जल्दी कैंसर का पता चल सके

कोलोरेक्टल कैंसर से आशय कोलन और रेक्टल कैंसर से है. अक्सर कोलन यानी मलाशय और रेक्टम यानी गुदा के कैंसरों को मिलाकर कोलोरेक्टल कैंसर भी कहा जाता है. यह दुनिया में तीसरा सबसे आम कैंसर है. मलाशय कैंसर मलाशय में कैंसर कोशिकाओं की मौजदूगी के बारे में बताता है. जबकि गुदा कैंसर गुदा में पनपता है. ये कैंसर कोलन कैंसर के मुकाबले कम आमफहम है और इसका इलाज भी कठिन है. इसमें रक्तस्राव, कब्ज और पेट में दर्द जैसे सामान्य लक्षण शामिल होते हैं.

बीमारी का पता पहले चल जाए तो उसमें कमी आने या खत्म होने की दर भी ज्यादा होती है. जब रेक्टल कैंसर एक ही जगह तक सीमित हो तो पांच साल बचे रहने की दर 90 फीसदी होती है. अगर वो थोड़ा फैल चुका हो तो दर गिरकर 73 फीसदी पर आ जाती है और अगर कैंसर बहुत ज्यादा फैल गया हो तो वो दर लुढ़ककर 17 फीसदी पर रह जाती है. 

इस अध्ययन में शामिल हर मरीज को बहुत ही खास तरह का रेक्टल कैंसर था. इसे कहा जाता है, "मिसमैच रिपेर-डेफीशिएंट रेक्टल एडीनोकार्सिनोमा." कैंसर की इस किस्म का उपचार आम रेक्टल कैंसर के मुकाबले कठिन भी होता है. गुदा कैंसर के 5 से 10 फीसदी मरीजों में ही ये पाया जाता है और कीमोथेरेपी उपचार भी इसमें ठीक से काम नहीं करता.

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कोलोरेक्टल कैंसर टर्म का इस्तेमाल ऐसे दो कैंसरों के लिए किया जाता है जो एक जैसे होकर भी बिल्कुल हूबहू नहीं होतेतस्वीर: Science Photo Library/imago images

डोस्टरलिमैब ड्रग ट्रायल कितना महत्त्वपूर्ण है?

डोस्टरलिमैब नई दवा नहीं है. इसका इस्तेमाल एन्डोमिट्रीअल कैंसर के इलाज में होता रहा है. इस दवा को "चेकप्वायंट इनहिबिटर" कहा जाता है. इसका मतलब कैंसर कोशिकाओं को तत्काल खत्म करने के बजाय ये व्यक्ति के इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को अपने स्तर पर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए तैयार करता है. इसीलिए इसे इम्यूनोथेरेपी माना जाता है.

नतीजों को लेकर उसी जर्नल में प्रकाशित संपादकीय में हाना सनोफ ने लिखा कि वे एक बड़ी उम्मीद जगाते हैं. सनोफ एक कैंसर डॉक्टर हैं और अमेरिका की नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. रिसर्च में वो खुद नहीं शामिल थीं. हाना सनोफ लिखती हैं कि गुदा कैंसर या किसी दूसरे किस्म के कैंसर के मौजूदा इलाज के एक विकल्प के रूप में, अभी इस दवा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

सनोफ के मुताबिक ट्रायल में शामिल मरीजों ने जो अनुभव किया उसे डॉक्टर एक "क्लिनिकल कम्प्लीट रिस्पॉन्स" कहते हैं. हाना सनोफ कहती हैं, "डोस्टरलिमैब दवा का क्लिनिकल कम्प्लीट रिस्पॉन्स, इलाज के समकक्ष है या नहीं, ये जानने के लिए जिस समयावधि की जरूरत है उसके बारे में बहुत कम मालूमात हैं."

इसे कैंसर का इलाज कहना जल्दबाजी होगी

सनोफ जोर देकर कहती हैं कि यह अभी साफ नहीं है कि ट्रायल के नतीजे रेक्टल कैंसर के मरीजों की ज्यादा आम आबादी पर भी लागू होंगे. क्योंकि ट्रायल में शामिल इन मरीजों को एक खास किस्म का दुर्लभ कैंसर था. अध्ययन के लेखकों ने भी पाया कि दवा को और लोगों में भी परखना होगा. तभी रेक्टल कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी पर उसकी संभावित श्रेष्ठता के बारे में किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.

अपने पर्चे में लेखकों ने कहा, "ये अध्ययन छोटा है और एक अकेले संस्थान के अनुभव को दिखाता है." वे कहते हैं कि संभावित उपचार के बारे में कोई निर्णय करने से पहले निष्कर्षों को एक ज्यादा बड़े, ज्यादा नस्लीय और जातीय विविधता वाले समूहों में फिर से देखना होगा. सनोफ लिखती हैं कि तमाम तरह की आपत्तियों के बीच, ये शोध "इलाज में क्रांतिकारी बदलाव की एक शुरुआती झलक दिखाता है."