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शिक्षाडेनमार्क

डेनमार्क में 6 साल की पढ़ाई का खर्चा उठाती है सरकार

पूजा यादव
१२ जनवरी २०२४

डेनमार्क में ना सिर्फ स्कूली पढ़ाई फ्री है बल्कि उच्च शिक्षा के लिए सरकार ग्रांट भी देती है. यह ग्रांट सिर्फ डेनिश स्टूडेंट्स को ही नहीं बल्कि यूरोपीय संघ के देशों से यहां पढ़ने आने वाले स्टूडेंट्स को भी मिलती है.

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मास्टर्स की पढ़ाई कर रहीं एरिका स्ट्रेंज
चेकोस्लोवाकिया की चार्ल्स यूनिवर्सिटी में पढ़ रहीं एरिका स्ट्रेंज डेनमार्क में पढ़ाई कर चुकी हैंतस्वीर: DW

डेनमार्क की आरहुस यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली 27 साल की एरिका स्ट्रेंज को सरकार की ओर से आर्थिक मदद मिलती है. यह उनकी पढ़ाई के खर्च से जुड़ी परेशानी खत्म कर देती है. इससे उन्हें खुद पर किसी तरह का आर्थिक बोझ महसूस नहीं होता है.

एरिका ने डेनिश स्कूल ऑफ मीडिया एंड जर्नलिज्म से पत्रकारिता की पढ़ाई की. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया कि "किसी भी शैक्षिक डिग्री के लिए एसयू यानी एक तरह की ग्रांट मिल सकती है. इसके लिए कोई भी स्टूडेंट आवेदन कर सकता है. "

क्या है एसयू सिस्टम?

डेनमार्क में ना सिर्फ स्कूली शिक्षा पूरी तरह से मुफ्त है बल्कि यहां छात्रों को 'स्टाटेन उदानेलसेसटोयटे' (एसयू) यानी सरकारी शिक्षा अनुदान नाम की एक स्टडी ग्रांट भी दी जाती है. डेनिश सरकार के एसयू नाम से विख्यात इस ग्रांट सिस्टम में स्टूडेंट्स को 6 साल तक पढ़ाई के दौरान आर्थिक सहायता दी जाती है. यह राशि इस बात पर निर्भर करती है कि स्टूडेंट्स पार्ट टाइम में कितना कमा लेते हैं. इसके अलावा, प्रेग्नेंसी और गंभीर बीमारी की हालत में यह राशि बढ़ जाती है. 

एरिका कहती हैं, "18 साल की उम्र के बाद आप पढ़ाई या अपनी पूरी डिग्री के दौरान इस आर्थिक मदद के लिए आवेदन कर सकते हैं. सरकार 6 साल के लिए हर महीने आपको एक तय राशि आर्थिक मदद के रूप में देती है. इसमें मिलने वाले पैसे अकेले रहकर पढ़ने वाले और पेरेंट्स के साथ रहकर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के लिए अलग होते हैं. अगर आप पेरेंट्स के साथ रहेंगे, तो आपको मिलने वाली राशि कम होगी जबकि अकेले रहने पर ज्यादा. मुझे भी अपनी पूरी पढ़ाई के दौरान इससे काफी मदद मिली." 

एसयू सिस्टम करीब 50 साल पहले शुरू किया गया था. उस समय डेनमार्क की आबादी करीब 60 लाख थी. एक छोटी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही यहां संसाधनों की भी कमी थी. ऐसे में, देश ने शिक्षा को महत्व देते हुए मानव संसाधन विकास के लिए काम किया. इस व्यवस्था के जरिये सरकार का मकसद देश में शिक्षा के मामले में समानता लाना और इसे सामाजिक-आर्थिक रूतबे से मुक्त करना था. इससे उच्च शिक्षा अब ज्यादातर लोगों की पहुंच में है और आज डेनमार्क में पढ़ाई का विकल्प लगभग हर स्टूडेंट के पास मौजूद है. इससे शिक्षा के मौकों को लेकर हर छात्र समान स्तर पर आ जाता है. 

यूरोपीय छात्रों को भी शिक्षा अनुदान

डेनमार्क में न सिर्फ अपने नागरिकों बल्कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के स्टूडेंट्स को भी एसयू दिया जाता है. हालांकि, उनके लिए कुछ अलग प्रावधान हैं. हंगरी की रहने वाली 22 साल की विक्टोरिया किस ने डेनमार्क की आरहुस यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में बैचलर्स किया है. फिलहाल वो इसी विषय में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर रही हैं. विक्टोरिया एसयू को एक बेहतरीन सिस्टम मानती हैं.

डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया कि "हंगरी में शिक्षा बहुत महंगी है जबकि डेनमार्क में ना सिर्फ यह फ्री है बल्कि हम यूरोपियन स्टूडेंट्स को भी एसयू मिलता है. इसके लिए हमें महीने में करीब 44 घंटे काम करना होता है, जिसके बाद हम इसके लिए आवेदन कर सकते हैं. मैं हफ्ते में बस 10 से 15 घंटे काम करती हूं. जबकि डेनिश स्टूडेंट्स को काम करने की कोई बाध्यता नहीं होती है."

मानसिक परेशानी से नहीं गुजरना पड़ता 

एरिका एक मध्यम-वर्गीय परिवार से आती हैं. वो कहती हैं, "एसयू की वजह से उन्हें पढ़ाई के दौरान किसी मानसिक दबाव से नहीं गुजरना पड़ा. अगर आप लोन लेते हैं, तो आपको हमेशा उसे चुकाने की चिंता रहती है. जबकि एसयू सिस्टम में ऐसा कुछ नहीं है. यही वजह है कि मैं और मेरे भाई-बहन आसानी से पढ़ पाए. यह समाज के हर वर्ग के बच्चों के पढ़ पाने और अपना विकास कर पाने में बहुत मददगार है. यह समानता के सिद्धांत पर काम करता है."

इसमें मिलने वाले पैसों के बारे में बात करते हुए एरिका ने बताया, "हर महीने टैक्स काटने के बाद अकाउंट में करीब 800 यूरो आ जाते हैं. इससे रहने और खाने पीने के अलावा बुनियादी जरूरतें आराम से पूरी हो जाती हैं. लेकिन घूमने-फिरने जैसी अन्य एक्टिविटीज के लिए मैं पार्ट-टाइम जॉब करती हूं, ताकि मैं अपने अन्य शौक भी पूरा कर सकूं. अगर आप एक तय रकम से ज्यादा कमाते हैं, तो एसयू कम मिलता है. हालांकि, ये रकम काफी ज्यादा ही है."

डेनमार्क में पढ़ाई कर रहीं विक्टोरिया किस की तस्वीर
विक्टोरिया किस डेनमार्क की आरहुस यूनिवर्सिटी में मास्टर्स की स्टूडेंट हैंतस्वीर: DW

वहीं, विक्टोरिया बताती हैं, "इसके जरिए सरकार पढ़ाई में मदद करती है और इंटरनेशनल स्टूडेंट्स भी पढ़ाई के दौरान अपने खर्चों को बिना किसी चिंता के आसानी से निकाल सकते हैं. मेरे देश की शिक्षा व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं है. यही वजह थी कि मैंने डेनमार्क को चुना. यहां शिक्षा के स्तर के अच्छा होने के साथ ही कम दबाव के साथ पढ़ाई होती है. यहां पढ़ते हुए आपके पास कई और काम करने का समय भी होता है, जो कि हंगरी में शायद ही संभव हो. यहां पढ़ते हुए एक स्टूडेंट के तौर पर आप पढ़ाई तो करते ही हैं. साथ ही, पार्ट-टाइम जॉब करके अनुभव भी प्राप्त करते हैं. इससे जॉब मार्केट में भी आपको फायदा पहुंचता है."

भारी टैक्स चुकाते हैं लोग 

डेनमार्क में काम करने वालों को भारी टैक्स चुकाना पड़ता है. यहां काम करने वालों को कमाई पर लगभग 50 प्रतिशत तक भी टैक्स चुकाना पड़ता है. देश में प्रोग्रेसिव टैक्स सिस्टम है यानी आप जितना ज्यादा कमाते हैं, उतना ज्यादा टैक्स भरना होता है. मगर लोगों को इससे दिक्कत नहीं है. एक जनमत सर्वेक्षण से पता चला है कि वहां लोगों को टैक्स ज्यादा तो लगता है, लेकिन चूंकि सरकार लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी लेती है, इससे लोग खुश हैं.

एसयू देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पर एक प्रतिशत से ज्यादा का भार डालता है. इसीलिए यह अक्सर राजनीतिक गलियारों में बहस का मुद्दा भी बना रहता है. चूंकि, डेनमार्क यूरोपीय संघ का सदस्य देश है, तो यूरोपीय देशों से आने वाले छात्रों को भी एसयू देना पड़ता है. जिसके बारे में राजनीतिक नेता यह तर्क देते हैं कि इससे ग्रांट की भरपाई नहीं हो पाती है. क्योंकि ग्रेजुएशन के बाद डेनमार्क में ही रहकर काम करने वालों छात्रों की संख्या कम है. 

हाल ही में, डेनिश सरकार ने उच्च शिक्षा के संदर्भ में एक बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने करीब 500 मास्टर्स डिग्री कोर्सेज की अवधि दो साल से घटाकर एक साल और तीन महीने कर दी है. सरकार के मुताबिक, वह नर्सिंग, टीचिंग और सोशल वर्क के क्षेत्र में ट्रेनिंग के लिए दोबारा फंड जारी करेगी. ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें देश में स्टाफ की भारी कमी महसूस की गई.

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