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राजनीतिब्रिटेन

मॉरीशस के चागोस को ब्रिटेन से मिली सशर्त आजादी

४ अक्टूबर २०२४

ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंपने का समझौता किया है. हालांकि, वहां मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डा बना रहेगा और उस पर ब्रिटेन व अमेरिका का अधिकार होगा.

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2022 में चागोस की आजादी के लिए प्रदर्शन
तस्वीर: Andana

ब्रिटेन ने गुरुवार को घोषणा की कि वह हिंद महासागर में स्थित चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंप देगा, लेकिन वह और अमेरिकाइस द्वीपसमूह पर स्थित महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे को बरकरार रखेंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे "ऐतिहासिक समझौता" बताया. 

ब्रिटिश सरकार पर दशकों से मॉरीशस को चागोस द्वीपसमूह सौंपने का दबाव था, लेकिन वह इस सैन्य अड्डे के कारण ऐसा करने से बचती रही. यह सैन्य अड्डा, डिएगो गार्सिया द्वीप पर स्थित है, जो अमेरिकी अभियानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर हिंद महासागर और खाड़ी क्षेत्रों में.

ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, "इस अड्डे की स्थिति निर्विवाद और कानूनी रूप से सुरक्षित रहेगी." ब्रिटेन और मॉरीशस के संयुक्त बयान में कहा गया कि अड्डा "प्रारंभिक" 99 साल की लीज पर ब्रिटेन के अधिकार में रहेगा.

बाइडेन ने डिएगो गार्सिया अड्डे की स्थिति जारी रहने का स्वागत किया, जो अफगानिस्तान और इराक युद्धों के दौरान भी इस्तेमाल होता रहा था. यहां से लंबी दूरी के अमेरिकी बमवर्षक विमान और जहाज संचालित होते हैं. बाइडेन ने कहा, "मैं इस ऐतिहासिक समझौते और बातचीत के निष्कर्ष की सराहना करता हूं. यह जगह राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है."

उपनिवेशवाद पर जीत

ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टारमर ने कहा कि उन्होंने मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनौथ से बात की. बाद में जुगनौथ ने कहा कि यह सौदा दिखाता है कि कैसे एक छोटा देश बड़ी शक्तियों के खिलाफ न्याय जीत सकता है. जुगनौथ ने कहा, "आज, हमारी स्वतंत्रता के 56 वर्षों बाद, हमारी औपनिवेशिक मुक्ति पूरी हो गई है. अब हमारे राष्ट्रगान की आवाज और भी बुलंद होकर हमारे क्षेत्र में गूंजेगी."

अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष मूसा फाकी महामत ने भी इस "ऐतिहासिक" समझौते का स्वागत किया और इसे उपनिवेशवाद के अंत, अंतरराष्ट्रीय कानून और मॉरीशस के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की एक महत्वपूर्ण जीत बताया.

यह समझौता लगभग दो साल की वार्ताओं के बाद हुआ और दशकों से मॉरीशस की संप्रभुता के दावों को खारिज करने वाले ब्रिटेन की नीति में महत्वपूर्ण बदलाव को दिखाता है. 2023 में वार्ता की शुरुआत में दोनों पक्षों ने सहमति जताई थी कि डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डा वार्ता के किसी भी परिणाम के बावजूद संचालित होता रहेगा.

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2016 में, ब्रिटेन ने अमेरिकी सैन्य अड्डे की लीज को 2036 तक बढ़ा दिया था. संयुक्त बयान में कहा गया है कि ब्रिटेन और मॉरीशस इस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए एक संधि पर काम करेंगे, जिससे डिएगो गार्सिया का संचालन "अगली शताब्दी तक" सुनिश्चित हो सके.

यह संधि चागोस द्वीपवासियों की वापसी का मार्ग भी साफ कर सकती है, जिन्हें 1970 के दशक में ब्रिटेन द्वारा वहां से हटाया गया था. हालांकि, डिएगो गार्सिया द्वीप शायद एकमात्र रहने योग्य द्वीप है, और समझौते के तहत इस पर अब भी लोग नहीं जा पाएंगे, जिससे पुनर्वास की संभावना कम ही दिखती है.

ब्रिटेन में प्रतिक्रिया

ब्रिटेन ने 1965 में चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग करने का फैसला किया था और यहां एक सैन्य अड्डा स्थापित किया, जिसे उसने अमेरिका को लीज पर दिया. इसके लिए, उसने हजारों चागोस निवासियों को यहां से हटाया, जिन्होंने तब से मुआवजे के लिए ब्रिटिश अदालतों में कई कानूनी दावे किए हैं.

मॉरीशस का चागोस द्वीपसमूह

संयुक्त बयान में कहा गया कि यह समझौता "अतीत की गलतियों को संबोधित करेगा" और "चागोसियों के कल्याण का समर्थन करेगा", जिन्हें निर्वासन में जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया था, जिनमें से कई अब ब्रिटेन में रहते हैं.

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मॉरीशस में चागोस शरणार्थी समूह के अध्यक्ष ओलिवियर बांकाउल्ट ने इसे "ऐतिहासिक दिन" बताया, जबकि ब्रिटेन में बसे चागोस निवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य समूह चागोसियन वॉइसेस ने कहा कि उन्हें इस वार्ता से बाहर रखा गया. इस समूह ने कहा, "चागोस निवासियों के विचारों को लगातार और जानबूझकर अनदेखा किया गया है और हम संधि के मसौदे में पूरी भागीदारी की मांग करते हैं."

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के नेता बनने की दौड़ में शामिल जेम्स क्लीवरली, जिन्होंने पहले विदेश सचिव के रूप में इन वार्ताओं की शुरुआत की थी, ने इस सौदे को "कमजोर, कमजोर, कमजोर" करार दिया. उनके प्रतिद्वंद्वी रॉबर्ट जेनरिक ने इसे "समर्पण" कहा.

अंतरराष्ट्रीय दबाव का नतीजा

1968 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से मॉरीशस इस द्वीपसमूह पर दावा करता रहा है, जिसे ब्रिटेन ने ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र नाम दिया था. 2019 में, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने ब्रिटेन से इस द्वीपसमूह को सौंपने की सिफारिश की थी. उस समय ब्रिटेन ने द्वीपवासियों के जबरन निष्कासन को "शर्मनाक" बताया था और माफी मांगी थी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को नजरअंदाज कर दिया. उसी वर्ष, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी एक प्रस्ताव पारित कर ब्रिटेन से "औपनिवेशिक प्रशासन वापस लेने" का आह्वान किया.

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ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने कहा कि बिना इस समझौते के "सैन्य अड्डे के दीर्घकालिक, सुरक्षित संचालन" को खतरा हो सकता था, खासकर अंतरराष्ट्रीय अदालतों में कानूनी चुनौतियों के कारण. विदेश मंत्री डेविड लैमी ने कहा कि यह समझौता "भविष्य के लिए इस महत्वपूर्ण सैन्य अड्डे को सुरक्षित करता है" और इससे द्वीपों के "ब्रिटेन के लिए एक खतरनाक अवैध प्रवास मार्ग" बनने की संभावना को भी समाप्त हो गई है.

इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन ने मॉरीशस के लिए एक "वित्तीय सहायता पैकेज" की भी घोषणा की, जिसमें वार्षिक भुगतान और बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए साझेदारी शामिल होगी. बयान में कहा गया कि यह समझौता "ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच सभी लंबित मुद्दों का समाधान करता है." ब्रिटेन और मॉरीशस पर्यावरण और अवैध प्रवासियों की आवाजाही पर भी सहयोग करेंगे.

वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)

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