बीजेपी सत्ता में लौटी, तो यूसीसी लागू करेंगे: अमित शाह
२६ मई २०२४भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी और 'एक देश, एक चुनाव' को सत्ता में लौटने पर लागू करने की बात कही. उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में ऐसा कहा. गृहमंत्री ने कहा कि अगर भाजपा सत्ता में लौटती है, तो अगले पांच वर्षों में व्यापक चर्चा करके समान नागरिक संहिता देशभर में लागू की जाएगी. 'एक देश, एक चुनाव' का प्रावधान लाने के लिए भी उन्होंने यही समयसीमा रखी है.
शाह ने यूसीसी को जिम्मेदारी बताते हुए कहा, "समान नागरिक संहिता एक जिम्मेदारी है, जो हमारे संविधान-निर्माताओं की ओर से स्वतंत्रता के बाद से हमारी संसद और देश की राज्य विधानसभाओं पर छोड़ी गई है. संविधान सभा ने हमारे लिए जो मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए थे, उनमें समान नागरिक संहिता भी शामिल है. तब भी केएम मुंशी, राजेंद्र बाबू और अंबेडकर जी जैसे कानूनविदों ने कहा था कि एक पंथ-निरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर कानून नहीं होना चाहिए. एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिए."
उत्तराखंड बनेगा नजीर?
यूसीसी पर बातचीत में शाह ने उत्तराखंड का उदाहरण भी सामने रखा. उन्होंने कहा, "समान नागरिक संहिता बड़ा सामाजिक, कानूनी और धार्मिक सुधार है. उत्तराखंड सरकार के बनाए कानून की सामाजिक और कानूनी जांच होनी चाहिए. धार्मिक नेताओं से भी सलाह ली जानी चाहिए. मेरा मतलब है कि इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए. बहस के बाद तय करना चाहिए कि उत्तराखंड सरकार के मॉडल में कुछ परिवर्तन करना है या नहीं. क्योंकि कोई न कोई कोर्ट में जाएगा ही. न्यायपालिका का अभिप्राय भी सामने आएगा."
इंटरव्यू में गृहमंत्री ने जोर दिया कि भाजपा का लक्ष्य देशभर के लिए समान नागरिक संहिता लाना है. यह फैसला कब तक अमल में लाया जा सकेगा, यह पूछे जाने पर शाह ने कहा, "यह अगले पांच साल में ही होगा. पांच साल का समय पर्याप्त है."
'एक देश, एक चुनाव' की तैयारी
गृहमंत्री ने 'एक देश, एक चुनाव' के सवाल पर कहा, "सरकार अगले कार्यकाल में इसे लागू करेगी. एक साथ चुनाव कराने से खर्च भी कम होगा. प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनाई है. मैं भी इसका सदस्य हूं. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है. अब समय आ गया है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने चाहिए."
इस बार के लोकसभा चुनाव में गर्म मौसम भी चर्चा का विषय है. तमाम राज्यों में मतदान का प्रतिशत कम है और इसके लिए तेज गर्मी को भी एक वजह बताया जा रहा है. 'एक देश, एक चुनाव' के प्रावधान में क्या चुनाव सर्दियों में कराया जा सकता है, इस सवाल पर गृहमंत्री ने कहा, "हम इस पर विचार कर सकते हैं. अगर हम एक चुनाव पहले कराते हैं, तो यह किया जा सकता है. यह समय विद्यार्थियों की छुट्टियों का भी है. यह बहुत दिक्कतें पैदा करता है. समय के साथ लोकसभा चुनाव धीरे-धीरे गर्मियों के मौसम में चले गए."
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता की परिकल्पना है कि अलग-अलग समुदायों की मान्यताओं के आधार पर बनाए गए पर्सनल लॉ या फैमिली लॉ हटा दिए जाएं और एक कानून बनाया जाए, जिसका पालन सभी को करना होगा. ये पर्सनल लॉ शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे जटिल और संवेदनशील विषयों पर बनाए गए थे, ताकि समुदायों को इन विषयों पर होने वाले विवाद का निपटारा अपने धर्म और मान्यताओं के आधार पर करने का अधिकार रहे.
भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और यहूदी समेत लगभग सभी धर्मों के अपने-अपने फैमिली लॉ हैं. ऐसे में भाजपा मानती है कि समुदायों को मिले ये अलग-अलग पर्सनल लॉ 'एक देश' की भावना जगाने के रास्ते में रोड़े हैं. वहीं समान नागरिक संहिता के आलोचक कहते हैं कि भारत इतनी विविधता वाला देश है, जहां सबकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. ऐसे देश में यूसीसी जैसा कानून लाना अलोकतांत्रिक है.
पहले भी हुईं कोशिशें
बीजेपी साल 1980 में अस्तित्व में आई थी और समान नागरिक संहिता मुद्दा बीजेपी के लिए राम मंदिर और धारा 370 जितना ही पुराना है. माना जाता है कि बीजेपी ने ये तीनों मुद्दे पहली बार 1989 में अपने घोषणापत्र में शामिल किए थे.
साल 2018 में 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव का निरीक्षण किया था और कहा था, "इस समय यह देश के लिए ना तो जरूरी है और ना ही वांछनीय है." हालांकि, विधि आयोग एक बार फिर समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव पर काम कर रहा है. विधि आयोग ने पिछले साल लोगों से इस बारे में राय भी मांगी थी और आयोग लाखों लोगों से मिली प्रतिक्रियाओं का अध्ययन भी कर रहा है.
क्या कहता है उत्तराखंड कानून
उत्तराखंड आजादी के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य है. उत्तराखंड में लागू हुई समान नागरिक संहिता के तहत लोगों के अपने बेटे और बेटियों, दोनों को पैतृक संपत्ति में बराबर हिस्सा देना होगा. इसके अलावा गैर-शादीशुदा जोड़ों की संतानों, गोद लिए गए बच्चों और सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को भी बराबर अधिकार होंगे.
इस कानून ने तलाक के मामले में भी महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार दिए हैं. इसी साल की शुरुआत में जब उत्तराखंड में यूसीसी की कवायद चल रही थी, तब गुजरात और असम की सरकारों ने भी इसे अपने-अपने राज्यों में लागू करने में दिलचस्पी दिखाई थी.
वीएस/एडी