ये आईसीबीएम क्या है?
परमाणु हथियारों से लैस एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर मार करने वाली आईसीबीएम बनाने पर सबसे पहले नाजी जर्मनी में काम शुरू हुआ था.
तबाही का सामान
इंटरकंटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल या आईसीबीएम का मतलब है ऐसी नियंत्रित मिसाइल जो कम से कम 5500 किलोमीटर की दूरी तक जा कर मार कर सके. यानी ऐसी मिसाइल जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर तबाही मचा सके.
एक मिसाइल कई हथियार कई निशाने
ये मिसाइलें पहले तो सिर्फ परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थीं लेकिन फिर इन्हें पारंपरिक और रासायनिक हथियार ले जाने के काबिल भी बनाया गया. मौजूदा दौर की आधुनिक आईसीबीएम का मतलब है ऐसी मिसाइल जो कई हथियार एक साथ ले कर जा सके. साथ ही मिसाइल हर हथियार को अलग निशाने पर गिराने में सक्षम हो.
निशना छोटा हो या बड़ा
शुरुआती आईसीबीएम निशाना लगाने के हिसाब से ज्यादा सटीक नहीं थे इसलिए उन्हें बड़े ठिकानों पर हमला करने के लिए तैयार किया गया था जैसे कि पूरे शहर या फिर ऐसी ही किसी जगह को निशाना बनाना हो. दूसरी और तीसरी पी़ढ़ी के आईसीबीएम में सटीक निशाना लगाने की काबिलियत आ गयी और उन्हें छोटे छोटे ठिकानों पर हमला करने के लिए भी तैयार किया जाने लगा.
वेर्हनर फॉन ब्राउन
दुनिया में पहली बार आईसीबीएम नाजी जर्मनी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका को निशाना बनाने के लिए तैयार की. वेर्हनर फॉन ब्राउन ने इसे बनाया था. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ब्राउन अमेरिका चले गए और वहां की सेना के लिए मिसाइल कार्यक्रम के विकास में जुट गए, खासतौर से आईएसीबीएम के.
अमेरिका और रूस ने की पहल
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मन डिजाइन के आधार पर ही अमेरिका और सोवियत संघ आईसीबीएम के निर्माण में जुट गए. रूस का पहला लक्ष्य ऐसे आईसीबीएम तैयार करना था जो यूरोपीय देशों तक मार कर सके.
पहली कामयाबी रूस को मिली
रूस ने 15 मई 1957 को पहली बार आईसीबीएम का परीक्षण किया लेकिन महज 400 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद ही रॉकेट गिर गया. इसके कुछ ही महीनों बाद अगस्त 1957 में आईसीबीएम ने सफलतापूर्वक 6000 किलोमीटर की दूरी तय की. दो साल बाद ही रूस ने हमला करने में सक्षम पहला आईसीबीएम तैनात कर दिया.
अमेरिका ने भी कोशिशें तेज की
अमेरिका रॉकेट की तकनीक में सोवियत संघ से काफी पीछे था और उस वक्त हुए कुछ अंतरराष्ट्रीय समझौतों ने भी दोनों देशों के आईसीबीएम कार्यक्रम में बाधा डाली. उस दौर में दोनों देशों का ध्यान एंटी बैलिस्टिक मिसाल तंत्र बनाने पर भी रहा. इन सबके बाद भी 1980 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने आईसीबीएम कार्यक्रम की नींव रखी.
चीन ने भी बनाया आईसीबीएम
शीत युद्ध के दौरान रूस से मनमुटाव के बाद चीन भी इस होड़ में शामिल हो गया और 1975 में उसने अपना पहला आईसीबीएम तैयार कर लिया. इसकी तैनाती होते होते 1981 का साल आ गया और 1990 तक उसने कम से कम 20 आईसीबीएम तैयार कर लिये थे.
भारत भी आईसीबीएम की दौड़ में
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों के पास लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें मौजूद हैं. इनमें से रूस, अमेरिका और चीन के पास आईसीबीएम भी है. भारत ने 2012 में 5000 हजार किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि 5 मिसाइल का परीक्षण कर आईसीबीएम क्लब में शामिल होने का दावा किया है.
इस्राएल और उत्तर कोरिया
इस्राएल ने जेरिको 3 मिसाइल तंत्र तैयार किया है जिसे 2008 से सेवा में शामिल कर लिया गया. इसे भी आईसीबीएम का दर्जा दिया जाता है. उत्तर कोरिया भी अब अपने पास आईसीबीएम होने का दावा कर रहा है.