इंडोनेशिया में क्यों घट रहा है ‘मिडिल क्लास’
१८ अक्टूबर २०२४20 अक्टूबर को प्राबोवो सुबियांतो इंडोनेशिया के अगले राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे. फरवरी में हुए चुनावों में उन्हें शानदार जीत हासिल हुई. लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच प्राबोवो ने देश की जनता से गरीबी हटाने और 19 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया और उसी की बदौलत सत्ता हासल की.
2045 तक एक विकसित देश बनने का सपना देख रहे इंडोनेशिया के नए राष्ट्रपति के लिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक चुनौती होगी. विश्व बैंक की रिसर्च के अनुसार, विकसित देश बनने के लिए इंडोनेशिया को आर्थिक विस्तार के साथ-साथ एक बड़े मध्यम वर्ग की जरूरत होगी.
लेकिन इंडोनेशिया की केंद्रीय सांख्यिकी एजेंसी (बीपीएस) की मानें तो देश में मध्यम वर्ग की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है. 2019 में जहां 5.73 करोड़ लोग मिडिल क्लास में आते थे वहीं मार्च 2024 में ये आंकड़ा गिरकर 4.78 करोड़ पर पहुंच गया.
क्या है वजह
अर्थशास्त्री इसके कई कारण गिनाते हैं. कोविड महामारी की वजह से एशिया की इस महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था में गहरा आर्थिक संकट पैदा हुआ, इसके अलावा बढ़ती मुद्रास्फीति और टैक्स की बढ़ी दरें भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
इंडोनेशिया में आने वाले विदेशी निवेश का बड़ा हिस्सा खनन जैसे उन उद्योगों को जाता है जहां लोगों की जगह मशीनों का ज्यादा इस्तेमाल होता है. इस वजह से ज्यादा लोगों नौकरियां नहीं मिल पाती हैं.
इसके अलावा कपड़ा उद्योग को चीन जैसे देशों से मिल रही प्रतिस्पर्धा भी देश भर में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की वजह है.
इंडोनेशिया विश्वविद्यालय के आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान संस्थान (एलपीईएम-यूआई) द्वारा अगस्त 2024 में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि इंडोनेशिया में मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति पिछले पांच सालों से घट रही है.
हालांकि प्राबोवो के भाई हाशिम ऐसा दावा करते हैं कि उनकी सरकार 28 अरब डॉलर के मुफ्त भोजन कार्यक्रम से लाखों नौकरियां पैदा करके मध्यम वर्ग की मदद करेगी.
मिडिल क्लास की परिभाषा
विश्व बैंक उन लोगों को मिडिल क्लास की श्रेणी में रखता है जो आर्थिक सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हैं, मुद्रा की कमी की चिंता से मुक्त हैं और अपनी खर्च करने योग्य आय का सही उपभोग कर रहे हैं.
इंडोनेशिया में प्रति माह 132 डॉलर से 643 डॉलर खर्च करने वालों को मध्यम वर्ग की श्रेणी में रखा जाता है. यह समूह देश के आर्थिक विकास में बड़ी हिस्सेदारी रखता है और देश की कुल निजी खपत में लगभग 40 प्रतिशत का हिस्सेदार है.
जकार्ता में रहने वाले दीनार ने बताया, "मिडिल क्लास दुविधा में है. हम अमीर नहीं हैं, लेकिन इतने गरीब भी नहीं हैं कि हमें सब्सिडी मिल सके जो हमारे लिए फायदेमंद हो."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए विश्लेषक जाहेन रेज्की कहते हैं, भले ही कोविड के बाद इंडोनेशिया की अर्थव्यस्था पटरी पर आ गई लेकिन मध्यम वर्ग की घटती संख्या का असर भविष्य में जरूर देखने को मिलेगा.
क्या है खतरा
आर्थिक मंदी ने पिछले दो सालों में इंडोनेशिया में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां छीनी हैं और मध्यम वर्ग को अगले साल अपनी कमाई में और गिरावट देखने को मिलेगी.
एक्सपर्ट तोउकी रिएफकी ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे उद्योगों में प्रोडक्शन घटने की वजह से पिछले दो सालों में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां गई हैं." उन्होंने कहा, जिन नीतियों से मिडिल क्लास को नुकसान पहुंच रहा है उस पर पुनर्विचार की जरूरत है.
वहीं सरकार 1 जनवरी 2025 से वैल्यू-ऐडड टैक्स को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने की योजना बना रही है. इसका असर परिवहन जैसे रोजमर्रा के खर्चों पर पड़ेगा जिससे लाखों लोग प्रभावित होंगे.
जकार्ता स्थित आर्थिक थिंक टैंक, सेंटर ऑफ इकोनॉमिक एंड लॉ स्टडीज (सीलिओस) के निदेशक बीमा युदिष्टिरा ने डीडब्ल्यू को बताया, "इंडोनेशिया की वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत से नीचे रहने की उम्मीद है. फिलहाल हमारे लिए विकसित देश बनना मुश्किल होगा क्योंकि मध्यम वर्ग की संख्या घटने से गरीबों की संख्या बढ़ रही है."