जलवायु परिवर्तन से पनामा नहर को हो सकता है नुकसान
२ जून २०२३पनामा नहर अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है. इसका निर्माण ग्लोबल शिपिंग के लिए एक बड़ा वरदान सरीखा था. इसका निर्माण पूरा होने से पहले किसी भी जहाज को दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे के चारों ओर घूम कर जाना पड़ता था, जो न सिर्फ बहुत लंबा रास्ता था बल्कि खतरनाक भी था.
तूफानी केप हॉर्न के आस-पास का समुद्र सदियों से जहाजों के लिए एक वास्तविक कब्रिस्तान जैसा था. हजारों नाविक वहां मारे गए और न जाने कितने जहाज गायब हो गए. लेकिन पनामा नहर बनने के बाद इस यात्रा की दूरी न सिर्फ 13 हजार किमी से भी ज्यादा कम हो गई, बल्कि पैसे और समय की भी काफी बचत होने लगी.
अब जलवायु परिवर्तन की वजह से इस मार्ग पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है. हर बार जब नहर को खोला जाता है, तो लाखों लीटर ताजा पानी समुद्र में बह जाता है. इसका परिणाम यह होता है कि नहर में पानी का स्तर नीचे चला जाता है. फिर इसकी भरपाई के लिए दूसरे स्रोत से पानी पहुंचाया जाता है. अब यहां के निवासी, संरक्षणवादी और मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मध्य अमेरिका में वर्षा में कमी आ रही है, जिससे नहर में पानी कम आता है. अगर नहर से बहने वाले ताजे पानी की भरपाई के लिए पानी न भरा जाए, तो बड़े जहाजों का यहां से गुजरना मुश्किल हो जाएगा.
इतना सारा पानी कहां से आता है?
पनामा नहर में इतना ज्यादा ताजा पानी इसलिए इस्तेमाल होता है कि जहाजों को करीब एक दर्जन अवरोधों को पार करके जाना होता है और इसके लिए उन्हें 26 मीटर तक ऊपर और नीचे जाना पड़ता है. कंसल्टिंग फर्म एवरस्ट्रीम इंटरनेशनल फर्म्स के लिए सप्लाई चेन्स को मॉनिटर करती है और उनका मूल्यांकन करती है. इसके मुताबिक, एक जहाज के नहर से गुजरने पर करीब बीस करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है.
नहर के ऑपरेशन की जिम्मेदारी पनामा कैनाल अथॉरिटी के पास है. अथॉरिटी ने हाल के महीनों में कुछ कड़े ड्राफ्ट प्रतिबंध जारी किए हैं. किसी जहाज का ड्राफ्ट, वॉटरलाइन और जहाज के तल के बीच की दूरी को कहते हैं. इसी ड्राफ्ट के मापन से तय होता है कि किसी जहाज को सुरक्षित गुजारने में कितने पानी की जरूरत होगी. यदि किसी जहाज में बहुत भारी सामान लदा होगा, तो यह पानी में अंदर तक डूबा होगा और उसका ड्रिफ्ट उतना ही ज्यादा होगा.
नहर के लिए सामान्य ऑपरेटिंग ड्राफ्ट 15.24 मीटर है. मई की शुरुआत में अधिकारियों ने नियो-पैनेमैक्स लॉक्स के लिए ड्राफ्ट अजस्टमेंट अडवाइजरी जारी की थी. नियो-पैनेमैक्स लॉक्स एक ऐसा टर्म है, जो अनुमानित जल स्तर के आधार पर नहर से गुजरने वाले सबसे बड़े जहाजों की आकार सीमा को निर्धारित करता है.
24 मई से इसकी शुरुआत हुई, जिसके बाद नहर से गुजरने वाले सबसे बड़े जहाजों को भी अपने ड्राफ्ट को 13.56 मीटर तक सीमित करना पड़ा.
करीब एक सप्ताह बाद, यानी 30 मई को इसे फिर से कम करके 13.4 मीटर कर दिया गया. एवरस्ट्रीम के विश्लेषकों को लगता है कि स्थिति तब भी सुधरने वाली नहीं है. वास्तव में, जहाज के माध्यम से होने वाले व्यापार के लिए स्थितियां अभी और खराब हो सकती हैं.
जर्मनी के हैम्बर्ग स्थित शिपिंग कंपनी हेपाग-लॉयड और कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय शिपिंग कंपनियों ने अपने जहाजों के ड्राफ्ट को कम रखने के लिए कम कंटेनरों को लादना शुरू कर दिया है. इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए हेपाग-लॉयड जून महीने से पनामा नहर से गुजरने वाले सामान पर प्रति कंटेनर 500 डॉलर की दर से अतिरिक्त शुल्क लगाने जा रही है.
व्यापारिक मामलों के जानकारों को डर है कि कहीं इस तरह की कार्रवाइयों से सप्लाई चेन बाधित न हो जाए और ट्रांसपोर्ट में लगने वाला समय बढ़ न जाए क्योंकि यदि ऐसा हुआ, तो इसका सीधा असर कीमतों पर पड़ेगा.
ऐसा नहीं है कि हर कोई घबरा रहा हो
विनसेंट स्टेमर, कील इंस्टिट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी में अर्थशास्त्री हैं. पनामा नहर के जल स्तर और वैश्विक व्यापार पर उसके पड़ने वाले असर को लेकर वह थोड़ा ठहरकर सोचते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "फिलहाल सप्लाई चेन पर इसका कोई खास असर नहीं होगा. 2021 की तरह नहीं होने जा रहा है जब एवर गिवेन जहाज फंस गया था और स्वेज नहर अवरुद्ध हो गई थी. वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए पनामा नहर उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी कि स्वेज नहर.”
इसके अलावा, वैश्विक व्यापार का 90 फीसद महासागरों के जरिए होता है और हाल के वर्षों में इसमें लचीलापन भी देखने को मिला है. वह कहते हैं, "हाल के वर्षों में जहाजों की भीड़, बंदरगाहों के बंद होने और लॉकडाउन के कारण सप्लाई चेन में काफी सुधार हुआ है.”
जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभाव
यूरोप में भी हाल के वर्षों में निम्न जल स्तर ने अधिकारियों को परेशानी में डाल रखा है. पिछली गर्मी में, राइन नदी में कई जगहों पर जल स्तर में रिकॉर्ड कमी देखी गई. राइन नदी जर्मनी की प्रमुख अंतर्देशीय शिपिंग मार्ग है. इसकी वजह से शिपिंग और फैक्ट्रियों को जाने वाले सामानों की सप्लाई बाधित हुई. इसके अलावा पेट्रोल और हीटिंग ऑयल की कीमतों में भी वृद्धि हुई. आल्प्स पर बर्फ की कमी की वजह से इस साल भी कुछ ऐसी ही स्थिति की आशंका जताई जा रही है.
समुद्री नैविगेशन अथॉरिटीज कुछ जगहों पर राइन को गहरा करने के बारे में सोच रहे हैं. इसके अलावा एक और योजना है, जो थोड़ी खर्चीली है. नदी पर कुछ बांध बनाए जाएंगे, जिससे नदी के कुछ हिस्सों में जल स्तर को बढ़ाने या बनाए रखने में मदद मिल सकेगी.
पनामा नहर के लिए कुछ अन्य समाधानों पर विचार किया जा रहा है. इनमें पानी की बचत करने वाली नहरें शामिल हैं, जिनके जरिए बेसिन्स में पानी को इकट्ठा किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल हो सकेगा. इसके लिए नहर के पास अन्य जल स्रोतों के विकास और उनके दोहन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. साथ ही, जलाशयों और खारे पानी का शुद्धीकरण करने वाले संयंत्रों के निर्माण पर भी विचार हो रहा है.
और भी कई विकल्प हैं
यदि ये सभी उपाय बहुत धीरे-धीरे आते हैं और नहर के जरिए परिवहन महंगा साबित होने लगता है, तो क्या यूरोप को स्वेज नहर के बंद होने जैसे खतरे का सामना कर पड़ सकता है? विनसेंट स्टेमर कहते हैं, "नहीं, बिल्कुल नहीं. जर्मन समुद्री व्यापार का सिर्फ दो फीसद अमेरिकन महाद्वीप के प्रशांत तट से होता है. अमेरिका के पूर्वी तट से समुद्री संपर्क और पड़ोसी यूरोपीय देशों के साथ सड़क मार्ग से होने वाले व्यापार इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं.”
पनामा नहर के लिए जब तक दीर्घकालीन समाधान नहीं मिल जाता, अर्थशास्त्रियों को लगता है कि मध्य अमेरिका में पानी की कमी को दूर करने के दूसरे रास्ते भी खोजने चाहिए. वह कहते हैं, "लोड कम करना निश्चित तौर पर शिपिंग कंपनियों के लिए सबसे आसान रास्ता है. साथ ही छोटे जहाजों का इस्तेमाल भी संभव है.”
स्टेमर कुछ अन्य विकल्प भी सुझाते हैं. वह कहते हैं, "पनामा नहर से होते हुए एशिया और अमेरिका के पूर्वी तट के रास्ते को थोड़ा बदल कर स्वेज नहर के रास्ते ले जाया जा सकता है. यूरोप और अमेरिका के पश्चिमी तट के बीच रास्तों के विकल्प कम हैं. लेकिन इन सभी विकल्पों पर एक साथ विचार करने के साथ-साथ अमेरिका के भीतर हवाई और सड़क मार्ग के यातायात को बढ़ाकर बेहतर रास्ते निकाले जा सकते हैं.”