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अकील इब्राहिम लाजिम

४ अगस्त २०११

2003 में इराक पर हुए हमले को वहां के एक नागरिक अकील इब्राहिम लाजिम याद करते हैं कि कैसे सद्दाम हुसैन के पतन की आरंभिक खुशी अफरातफरी और हिंसा में तब्दील हो गई.

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Nur für Projekt 9/11: Porträt Aqeel Ibrahim Lazim (Irak)
अकील इब्राहिम लाजिमतस्वीर: DW

11 सितंबर के हमले की खबर बसरा के अकील इब्राहिम लाजिम को शादी की तैयारियों के दौरान मिली. दांतों के डॉक्टर इब्रहिम उन दिनों यूनिवर्सिटी पास हुए ही थे. और अपनी मंगेतर के साथ शादी के समारोह के बारे में बातचीत कर रहे थे कि उनका ध्यान इन भयावह तस्वीरों पर गया. ड्रॉइंग रूम में रखे टीवी पर यह तस्वीरें दिखाई जा रहीं थी- जलते हुए टॉवर और मरते हुए लोग. रोंगटे खड़े करने वाले और काल्पनिक से लगने वाले दृश्य जो किसी दूर देश के थे. एक ऐसा देश जहां वह कभी नहीं गए थे और इराकी प्रचार उसे दुश्मन ताकत बताता था. उन्हें धीरे धीरे समझ में आया कि यह सद्दाम हुसैन के नियंत्रण वाले सरकारी टीवी पर हाल ही में दिखाई गई एक्शन थ्रिलर नहीं थी बल्कि एक सच्चाई थी.

Bild 2: Motiv: Aqeel Ibrahim Lazim, mit Foto 9/11, Basra/Irak, März 2011 Copyright: Ahmed Mohamed Mansour für DW, März 2011 Text Bildergalerie: „Ich kann nur schwer beschreiben, was ich damals empfunden habe“, sagt der Iraker zehn Jahre später rückblickend. „Es war eine Mischung aus Staunen, Mitleid und Schock.“ ***Achtung: Bild darf nur im Zusammenhang mit der Bildergalerie "Irak 9/11 verwendet werden.***
10 साल पहले की यादेंतस्वीर: DW

मुझे लगा यह कयामत है

लाजिम दस साल बाद बताते हैं, "मैं बहुत मुश्किल से बता सकता हूं कि उस क्षण में मैंने क्या महसूस किया. यह आश्चर्य, दुख और शॉक का मिश्रण था. मुझे लगा कि यह कयामत है. मानव समाज का विध्वंस."

अमेरिका में हुए हमले की छाया उनकी शादी पर तो पड़ी ही लेकिन इसके अप्रत्यक्ष असर से उनका देश एक और युद्ध में घिर गया और तानाशाह सद्दाम हुसैन के पतन का कारण बना. उस क्षण उन्हें ऐसा नहीं लगा था कि न्यूयॉर्क के हमले का असर इतना गहरा हो सकता है. 35 साल के लाजिम को गुस्सा आया था और अनिश्चितता भी महसूस हुई थी."यह हमला नागरिकों पर हुआ. जब आपको हमदर्दी होती है तब आप यह नहीं पूछते कि पीड़ित किस राष्ट्र और मूल के हैं. इन मारे गए लोगों के लिए मुझे दुख हुआ था. हमदर्दी की भावनाएं कुछ अजीब सी भी थी क्योंकि हमला करने वालों ने खुद को स्पष्ट तरीके से मुसलमान बताया था."

Bild 10: Motiv: Aqeel Ibrahim Lazim in seiner Zahnarztpraxis, Basra/Irak, März 2011 Copyright: Ahmed Mohamed Mansour für DW, März 2011 Text Bildergalerie: Vom Sturz Saddam Hussains hat Aqeel Ibrahim Lazim allerdings profitiert: Eine eigene Zahnarztpraxis und eine Karriere als Universitätsdozent wären für ihn unter dem früheren Regime kaum möglich gewesen. ***Achtung: Bild darf nur im Zusammenhang mit der Bildergalerie "Irak 9/11 verwendet werden.***
दांतों के डॉक्टरतस्वीर: DW

क्या उस शाम ही शासन को पता था कि अल कायदा के आतंक का इराक पर क्या असर हो सकता है? लाजिम को हांलाकि 12 सितंबर की रात ही उनके शासक की ओर से गहरी बैचेनी समझ में आ गई थी. वह याद करते हैं कि सभी सड़कों पर अचानक बाथ पार्टी के हथियारबद्ध सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए थे. "मानो इराक पर ही इस तरह का हमला हो सकता हो."

शादी के पहले होने वाली सिर्फ मर्दों की पार्टी और शादी में भी इसके अलावा किसी और विषय पर बात ही नहीं हुई. "शुभकामनाओं के बदले मुझे समाचार ही ज्यादा मिले." लाजिम अब बसरा यूनिवर्सिटी में डेंटल मेडिसिन पढ़ाते हैं और क्लिनिक भी चलाते हैं. उस समय की सरकार ने सद्दाम हुसैन के सम्मान में एक सभा बुलाई थी. लाजिम को याद पड़ता है कि कई नागरिकों को इसमें भाग लेने के लिए जबरदस्ती की गई थी.उस समय अधिकतर शियाई सुन्नी सरकार के कड़े आलोचक थे जिनमें से अकील भी एक थे.

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तस्वीर: picture-alliance

नजदीक आती लड़ाई का संकेत

तेजी से यह साफ हो गया कि 9/11 के हमले के बाद इराक पर भी नए युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. सद्दाम हुसैन पर अमेरिकी सरकार ने आरोप लगाया कि उनके पास जनसंहार के हथियार हैं. साथ ही अल कायदा के साथ सीधे संपर्क होने की भी बात थी. लेकिन बाद में दोनों ही आरोप गलत साबित हुए. लाजिम याद करते हैं कि इराकियों के लिए वह पास आते युद्ध का साफ संकेत था. तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश के एक भाषण को लाजिम भुला ही नहीं पाते. "बुश ने उस समय दुनिया की सभी ताकतों से कहा था कि या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ. हमारी सरकार अमेरिका को कट्टर दुश्मन मानती थी क्योंकि कुवैत में इराकी हमले पर उन्होंने युद्ध से जवाब दिया था."

19 मार्च 2003 को, डेढ़ साल बाद नया युद्ध शुरू हुआ. लाजिम आज भी इस बारे में दुविधा से याद करते हैं. "मेरे आसपास के माहौल में कई इराकियों ने हमारे देश के हमले का विरोध किया था. और सबको उम्मीद थी कि सद्दाम हुसैन का तख्ता पलट कर दिया जाएगा." ठीक 22 दिनों में ऐसा हो गया और कई इराकियों ने इसकी खुशी मनाई. "आखिरकार हमें इस शासन से छुटकारा मिल गया था. हालांकि विदेशी सैनिकों को अपनी जमीन पर देखना एक दुखद अनुभव था."

Bild 7: Motiv: Irakische Soldaten in Basra/Irak, März 2011 Copyright: Ahmed Mohamed Mansour für DW, März 2011 Text Bildergalerie: Irakische Soldaten in Lazims Heimatstadt Basra: Die Amerikanischen Besatzungstruppen sind inzwischen aus den großen Städten abgezogen, die Anzahl der Anschläge ist spürbar zurückgegangen. Dennoch bleibt die Sicherheitslage fragil. ***Achtung: Bild darf nur im Zusammenhang mit der Bildergalerie "Irak 9/11 verwendet werden.***
सुरक्षा की समस्यातस्वीर: DW

सद्दाम हुसैन के तख्ता पलट ने लाजिम के देश के लोगों को अभी तक कभी न मिली आजादी दी. "यह बहुत ही अविश्वसनीय था. अचानक आप अपने विचार सरे आम रख सकते थे." पेशे में लाजिम की गाड़ी अच्छी चलने लगी. अपना खुद का क्लीनिक, जिसके बारे में वह सद्दाम हुसैन के भाई भतीजावाद वाले शासन में तो सोच भी नहीं सकते थे.

अव्यवस्था में डूबा

नई आजादी की कीमत हालांकि बहुत बड़ी थी और वह खून से लथपथ भी हो गई. सालों तक देश अफरातफरी, हिंसा और आतंक में डूब गया. सुन्नी और शिया एक दूसरे को मारते रहे. कोई भी हमले और अपहरण से सुरक्षित नहीं रहा. "हमने आजादी के बारे में ऐसी कल्पना नहीं की थी. लेकिन यह आजादी पूरी तरह अंधेर नगरी में बदल गई. दसियों हजारों इराकी इस दौरान मारे गए. बीच के सालों में स्थिति बेहतर हुई है. लेकिन शायद ही कोई ऐसा इराकी परिवार होगा जो यह दावा कर सके कि उनके परिवार के किसी की मौत हिंसा में नहीं हुई."

लाजिम ने भी अपने चचेरे भाई को खोया. 2006 में उनके भाई का अज्ञात व्यक्तियों ने अपहरण कर लिया था. उनके परिवार ने उस समय पूरे देश में उनकी खोज की थी, अस्पतालों, पुलिस स्टेशन और शव गृहों में भी. लाजिम कहते हैं कि यह बहुत ही बुरा समय था. "ये कमरे शवों से भरे हुए थे. मैं हतप्रभ था कि इतने लोगों को किसलिए मारा गया है. हर जगह से लाशों की बदबू आ रही थी. सरकार लाशें रखने के लिए ठंडे कमरे मुहैया नहीं करवा सकती थी." उनके भाई को बाद में मृत घोषित कर दिया गया लेकिन उनके अवशेष कभी नहीं मिले.

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बच्चों को खुद स्कूल पहुंचाते लाजिमतस्वीर: DW

जब लाजिम 11 सितंबर के चित्र देखते हैं तो उन्हें सोचना ही पड़ता है कि आतंक ने जीवित लोगों को भी कितना सदमा दिया है. "इराक के लडा़ई से भरे माहौल में कई मासूम बच्चे बेवजह हिंसा और आतंक के बीच पैदा हुए. कई ने इसे बहुत करीब से महसूस किया है और वे अंदर से बहुत डरे हुए हैं. अपहरण, हत्या और कई लोगों की जान वाले कार बमों का डर." अपने दोनों बच्चों, मोहम्मद और सारा को वह आज भी सुरक्षा कारणों से हर सुबह खुद स्कूल ले कर जाते हैं.

रिपोर्टः मुनाफ अल सैदी/आभा एम

संपादनः प्रिया एसेलबॉर्न