अगर मगर के साथ पाक नाटो योजना से संतुष्ट
२२ नवम्बर २०१०सरकारी दौरे पर इंडोनेशिया गए पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने रॉटयर्स को दिए एक टेलीफोन इंटवरव्यू में नाटो की योजना का समर्थन किया, लेकिन यह भी कहा कि विदेशी सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी जमीनी हालात को देखते हुए होनी चाहिए. साथ ही यह वापसी अफगान सुरक्षा बलों की योग्यता पर भी निर्भर करती है.
शनिवार को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में नाटो के शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान की सुरक्षा से जुड़ी जिम्मेदारी 2014 तक पूरी तरह स्थानीय सुरक्षा बलों को सौंपने पर सहमति बनी और यह काम अगले साल से शुरू करने की योजना बनाई गई है. नाटो में शामिल देश अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं की वापसी चाहते हैं. इन सभी देशों में जनता अपनी सेनाएं अफगानिस्तान में रखने के खिलाफ है.
नाटो का यह भी कहना है कि सुरक्षा की स्थिति बेहतर हुई तो 2014 तक युद्धक अभियान भी रोके जा सकते हैं. पाकिस्तानी विदेश मंत्री की भी यही राय है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी से पहले, वहां सुरक्षा की स्थिति बेहतर होना बेहद जरूरी है. दरअसल नाटो सेनाओं के हटने के बाद अफगानिस्तान में चरमपंथी कार्रवाइयों में वृद्धि की संभावना को लेकर पाकिस्तान चिंतित है. तालिबान और कबायली मामलों के जानकार रहीमुल्ला यूसुफजई का कहना है, "अगर अफगान सेना स्थिति पर नियंत्रण पाने में नाकाम रही और विदेशी सेना ने भी अफगानिस्तान छोड़ दिया तो एक और गृह युद्ध शुरू हो जाएगा जिसके पाकिस्तान पर भी बुरे असर होंगे."
इस बीच अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए अमेरिकी दूत रिचर्ड होलब्रुक ने भी कहा है कि 2014 तक सुरक्षा की जिम्मेदारी अफगान बलों को सौंपने का यह मतबल नहीं है कि विदेशी सेनाएं वहां नहीं रहेंगी. वह कहते हैं, "आर्थिक मदद जारी रहेगी. अफगान पुलिस और सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग भी दी जाती रहेगी."
रिपोर्टःएजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एमजी