अधिक साइकल चलाने से पुंसत्व में कमी
७ जुलाई २००९साइकल चलाना पुरुषत्व का प्रतीक है. स्वास्थ्य भी बनाता है. जर्मनी और हॉलैंड जैसे देशों में तो हर घर में कार के साथ-साथ साइकल भी होती है. बल्कि, लोग कार पर साइकल लाद कर सैर-सपाटे के लिए निकलते हैं. मौक़ा पाते ही कार कहीं पार्क कर आगे की सैर के लिए साइकल पर निकल पड़ते हैं.
लेकिन, बहुत अधिक साइकल चलाने की वजह से पुरुषों के पुंसत्व में कमी आ सकती है. यह बात स्पेन के कोर्डाबा विश्वविघालय में हुए एक शोध के तहत सामने आई है. वे पुरूष खिला़ड़ी या साइकल चालक, जो नियमित रूप से बहुत अधिक साइकल चलाते हैं, उनके पिता बनने की संभावना कम हो सकती है.
डायना वामोंडे की अगुवाई में स्पेन के कोर्डाबा मेडिकल कालेज के एक दल ने उन ट्रायएथिलटों का अवलोकन किया, जो नियमित रूप से दौड़, तैराकी और साइक्लिंग करते हैं. इस परीक्षण का लक्ष्य लंबे समय तक और लंबी दूरी की साइक्लिंग की और उसके कारण पुरूष यौन क्षमता पर पड़ने वाले असर की जांच को आगे बढाना था.
इस दल ने पन्द्रह ऐसे स्वस्थ स्पेनिश खिलाड़ियों की जांच की, जिनके प्रशिक्षण रूटीन के बारे में उन्हें पूरी जानकारी थी. अध्ययन में साइकल की सीट पर ज़्यादा बैठने वाले खिलाड़ियों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या में कमी और उनके स्वरूप में विकृति पाई गई. शोध के बारे में वामोंडे ने बताया कि सभी खिलाड़ियों में सामान्य दिखने वाले शुक्राणुओं की संख्या दस प्रतिशत से कम थी. जबकि ऐसे साइकल चालक, जो सप्ताह में तीन सौ किलोमीटर से ज्यादा दूरी की साइक्लिंग करते थे, उनके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या गंभीर रुप से, यानि चार प्रतिशत से भी कम थी. स्वस्थ पुरूषों में सामान्य शुक्राणुओं का यह न्यूनतम प्रतिशत संतान प्राप्ति की क्षमता में ख़ासी कमी आजाने का सूचक है.
ग़ौरतलब है कि ट्राएथिलटों के स्वास्थ्य पर दौड़ और तैराकी के कारण ऐसा कोई कुप्रभाव नजर नहीं आया. यह शोधपत्र एम्सटर्डम में हुए मानव प्रजनन व भ्रूणविज्ञान की यूरोपीय संस्था की वार्षिक कांफ्रेस के दौरान प्रस्तुत किया गया.
साइक्लिंग के अत्यधिक अभ्यास और पुरूष यौन क्षमता के बीच के संबंध पहली बार करीब छह साल पहले पहाड़ियों पर साइकल चलाने वाले खिलाड़ियों पर हुए शोध से सामने आए थे. इसके संभावित कारण साइकल की सीट की वजह से पुरूष जननांगों पर पड़ने वाले दबाव और चुस्त कपडे़ के कारण वहां उत्पन्न होने वाली स्थानीय गर्मी को माना जाता है. अधिक गर्मी से शुक्राणुओं का निर्माण प्रभावित होता है. इस बारे में वानमोंडे का मानना है कि तनाव भी इसके कारक हो सकते हैं. तनाव होने से ऐसे फ्रीरैडिकल (ऑक्सीजन के आक्रामक अणु) बढ़ सकते हैं, जो कोषिका की संरचना को नुकसान पहुंचाते हैं.
स्पेन में हुई यह खोज भारत जैसे देशों में उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है, जो बहुत अधिक साइकल चलाते हैं या अपनी रोज़ी-रोटी की ख़ातिर साइकल-रिक्शा चलाने के लिए विवश हैं.
रिपोर्ट- एएफ़पी/ सरिता झा
संपादन- राम यादव