अनूगा फूड फेयर में भारत का जायका
१२ अक्टूबर २०११अनूगा दुनिया का सबसे बड़ा खाने पीने की चीजों का मेला है. हर दो साल में एक बार दुनिया भर से कंपनियां कोलोन में नई नई चीजें प्रस्तुत करने आती हैं. हर बार की तरह इस बार भी भारत ने यहां खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है. इस साल भारत से 67 कंपनियां अलग अलग उत्पादों के साथ यहां आई हैं. करीब एक हजार वर्ग मीटर में फैले इंडिया पवेलियन में भारत के मसाले, अचार, चावल और मेवा जैसी कई खाने पीने की चीजें देखी जा सकती हैं. हालांकि इंडिया पवेलियन का केंद्र भारत का बासमती चावल ही बना हुआ है.
भारत की बढ़ती भूमिका
आईटीपीओ के एसीएम कुमार बताते हैं, "इस बार हमारे पास पहले से ज्यादा जगह है. हम चाहते हैं कि अगली बार हमें इस से दोगुनी जगह मिले. मैंने अनूगा प्रबंधक कमिटी के लोगों से बात की है और उन्हें बताया है कि हमें अगली बार एक हजार नहीं दो हजार वर्ग मीटर की जरूरत पड़ेगी." एसीएम कुमार का कहना है कि पिछले कुछ सालों में लोगों की भारतीय खाने में रुचि बढ़ी है और इसी को देखते हुए पहले की तुलना में कई ज्यादा कंपनियां अनूगा का हिस्सा बनना चाहती हैं, "इस बार कई बड़ी कंपनियों ने यहां भागीदारी की है और अब तक हमें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया भी मिली है. कम से कम 80 प्रतिशत कंपनियों ने दोबारा यहां आने की इच्छा जताई है. यह अनूगा में हमारी सफलता को दर्शाता है."
घंटों का काम मिनटों में
एसीएम कुमार के अनुसार कंपनियां इस कोशिश में लगी हैं कि पश्चिम में लोगों के स्वादानुसार चीजें तैयार कर उन्हें पेश किया जाए. इसी को देखते हुए कई नई कंपनियां भी यहां उतरी हैं. फूड सॉल्यूशंस इंडिया लिमिटेड पहली बार अनूगा में आई है. कंपनी रेडी-टु-यूज मसालों के साथ यहां आई है जिन्हें वह खास तौर से विदेश में भारतीय रेस्त्रां को बेचना चाहती है. भारत में एक रेस्त्रां चलाने वाले हितेश चंद्रानी ने यह कंपनी शुरू की है. वह बताते हैं, "अगर आपको लजीज खाना बनाने के लिए तैयार मसाला मिल जाए और आपको केवल उसे पानी में डाल कर उबालना हो तो सारा झंझट की खत्म हो जाता है. इस से आपका वक्त भी बचता है और पैसे भी. हम इन मसालों को आम लोगों को नहीं बल्कि रेस्त्रां और केटरिंग कंपनियों को देना चाहते हैं. केटरर चाहें तो एक दो चीजों और डाल कर खाने को अपनी पहचान भी दे सकते हैं."
आम की दीवानगी
मसालों के साथ भारत के फल और सब्जियों की मांग पूरी दुनिया में है, खास तौर से आम की. कम से कम दस कंपनियां यहां आम के अलग अलग प्रॉडक्ट्स ले कर पहुंची हैं. केप्रिकौन कंपनी के मोहित जैन बताते हैं, "हम यहां आम, अमरुद और पपीते जैसे अन्य कई फलों का गाढ़ा घोल ले कर आए हैं. यहां जो रस बनते हैं उनमें इन्हीं का इस्तेमाल किया जाता है. ज्यूस जितना पतला चाहिए पानी की मात्रा उतनी ही बढ़ा दी जाती है. मध्य पूर्व और यूरोप में इनकी काफी मांग है." फलों के पल्प को यूरोप में बेहद लोकप्रिय फ्रूट-योगर्ट बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा डिब्बाबंद फल, फ्रोजन-फ्रूट्स और प्यूरी के रूप में भी आम और लीची जैसे फलों की खूब मांग है.
मध्य पूर्व में मांग
फलों के अलावा भारत से अंडों और मीट का भी निर्यात किया जाता है. हालांकि अधिकतर भैंस के मांस का ही निर्यात होता है और इसके लिए भी सबसे बड़ा बाजार मध्य पूर्व ही है. हलाल होने के कारण मध्य पूर्व के देश भारत से मांस खरीदना पसंद करते हैं. लेकिन कंपनियों को इस बात की शिकायत है कि वे यूरोप में मीट नहीं बेच सकते. स्वास्थ्य से जुड़े कारणों से यूरोप में भारत से मांस लाने की अनुमति नहीं है. मुंबई की फिजा कंपनी के अब्दुल वाजिद शेख बताते हैं, "अगर हमें यहां यूरोप में भी मीट बेचने की अनुमति मिल जाए तो यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा अवसर होगा. यूरोप में तो जानवरों को फार्म में रखा जाता है और उन्हें अप्राकृतिक रूप से बढ़ा किया जाता है ताकि अधिक से अधिक मांस की पैदावार हो सके. इसीलिए यहां का मीट भारत के मीट जितना स्वादिष्ट नहीं होता. हमारे यहां जानवरों को प्राकृतिक रूप से पाला जाता है और उनके अच्छे स्वाद के कारण ही मध्य पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में इसे बेहद पसंद किया जाता है."
भारत के बाहर भी भारत
मीट हो या सब्जियां भारत हर क्षेत्र में अपना नाम करना चाहता है. केवल निर्यात ही नहीं आयात पर भी भारत का पूरा ध्यान है. इसीलिए विदेशी कंपनियों से संपर्क साधने के लिए कई भारतीय अनूगा पहुंचे हैं. अनूगा फूड फेयर के भीड़ भाड़ वाले माहौल में आपको चारों ओर भारतीय दिख जाएंगे, जो यह दिखाता है कि यहां भारत की भूमिका कितनी अहम है. इस बारे में अल-साद कंपनी के जावेद कुरेशी कहते हैं, "हमें ऐसा लग ही नहीं रहा कि हम भारत में नहीं हैं. जब दिल्ली में ट्रेड फेयर लगता है तब भी माहौल बिलकुल ऐसा ही होता है." भले ही दिल्ली का ट्रेड फेयर हो या कलोन का अनूगा ऐसे मेलों का फायदा देश की अर्थव्यवस्था को जरूर मिलता है.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया, अनूगा, कलोन
संपादन: आभा मोंढे