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अफगानिस्तान: मदद नहीं तो विकास नहीं

८ अगस्त २०११

2014 में अमेरिकी और नाटो फौज के अफगानिस्तान से निकलने के बाद चिंता यह जताई जा रही है कि परेशान अर्थव्यवस्था को आर्थिक मदद भी बंद न कर दी जाए. सवाल यह है कि 2014 के बाद कहीं अफगानिस्तान में आर्थिक संकट न बढ़ जाए.

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विकास जरूरीतस्वीर: picture-alliance/ dpa

उजबेक बॉर्डर के पास मजार ए शरीफ अफगानिस्तान की सबसे सुरक्षित जगहों से एक मानी जाती है. दक्षिण और पूर्वी इलाके से दूर जहां तालिबान का खौफ है बल्ख प्रांत विदेशी निवेशकों और स्थानीय व्यापारियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुकी है. मजार ए शरीफ और उजबेकिस्तान के बीच सीमा व्यापार और बढ़ने की संभावना है. दोनों के बीच रेल कार्गो सेवा शुरू होने वाली है. यह पहला शहर है जहां नाटो के नेतृत्व में जर्मन सेना ने अफगानिस्तान की सेना को शहर की कमान सौंपी है.

तरक्की की ओर

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2014 में सेना वापसीतस्वीर: picture-alliance/dpa

मजार ए शरीफ तरक्की की कहानी बयां कर रहा है लेकिन देश के दूसरे भाग में तस्वीर अच्छी नहीं है. हर दूसरा अफगान बेरोजगार है. बाकी बचे गरीब किसान हैं, जो विदेशी मदद पर निर्भर हैं. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक अफगानिस्तान की 91 फीसदी अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय मदद पर टिकी है. अमेरिका ने 2001 के हमले के बाद से अब तक अफगानिस्तान में 19 अरब डॉलर नागरिक मदद के रूप में दिए हैं. इराक से भी ज्यादा यहां अमेरिका ने मदद की है. जर्मनी भी आर्थिक मदद करने वालों की सूची में तीसरे स्थान पर है.

मदद नहीं, विकास नहीं

लेकिन ऐसा लगता है कि एक बार पूरी तरह से विदेशी सेना वापस चली जाएगी तो मदद भी कम हो जाएगी. काबुल में अफगानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क के रिसर्चर थॉमस रुट्टिग ने डॉयचे वेले को बताया, "हमने अनाधिकारिक तौर पर सुना है, लेकिन कई यूरोपीय देशों और पश्चिमी सरकारों से साफ है कि जब सेना वापस जाएगी तो पैसा भी चला जाएगा. मुझे डर है कि 2014 के बाद अफगानिस्तान को भी किसी और विकासशील देश की ही तरह समझा जाएगा."

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तस्वीर: picture alliance/dpa

जून में अमेरिकी संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी थी कि 2014 के सैनिक वापसी के बाद अफगानिस्तान 'गंभीर आर्थिक मंदी' के बीच फंस जाएगा. काबुल विश्वविद्यालय के सैफुद्दीन सायहून ने डॉयचे वेले को बताया, "सेना जब वापिस चली जाएगी तो अंतरराष्ट्रीय सेना और आर्थिक सेक्टर का जुड़ाव एक बार फिर कम महत्वपूर्ण हो जाएगा. सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो नौकरियां और परियोजनाएं चल रही हैं वह विकास सहायता के द्वारा चल रही है और यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं." उनके मुताबिक सरकार के पास स्पष्ट आर्थिक रणनीति नहीं है वह भारी विदेशी सहायता पर निर्भर करती है.

बहुत सारे पैसे भ्रष्ट चैनलों के जरिए खाए जा रहे हैं. रुट्टिग कहते हैं, "राजनीतिक संरक्षण का एक ताना बना है. अक्सर बड़े उद्यमी काबुल में राजनीतिक हलकों से जुड़े होते हैं." ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के 2010 भ्रष्टाचार सूचकांक में अफगानिस्तान तीसरा सबसे भ्रष्ट देश था. लेकिन हामिद करजई की सरकार भ्रष्टों पर कार्रवाई करने में दिलचस्पी नहीं नजर आती है. रुट्टिग कहते हैं, "जर्मनी समेत बहुत से देश अपनी विकास योजनाओं का मूल्यांकन करने देना नहीं चाहते. शायद यह एक बुरे सच्चाई का संकेत हो. वास्तव में कुछ परियोजनाएं विफल साबित हुई."

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जोरों अफीम की खेतीतस्वीर: picture alliance/dpa

फलता फूलता ड्रग कारोबार

विकास दर को देखने से पता चलता है कि, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था सतह पर प्रगति करती दिख रही है. लेकिन आंकड़े कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन पर निर्भर करती है. खराब फसल विकास दर को गिराने के लिए पर्याप्त है. जर्मन अर्थशास्त्री स्टीफन काइनेमन डॉयचे वेले को बताते हैं, "शून्य से आर्थिक प्रणाली बनाना एक कठिन काम है. खासकर जब बुनियादी ढांचे बर्बाद कर दिए गए हों. " काइनेमन 2002 और 2006 के बीच जर्मन सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में राष्ट्रपति करजई के साथ काम कर चुके हैं. एक आर्थिक गतिविधि जो जंग के दौरान भी निखरी है वह है ड्रग्स. अफगानिस्तान दुनिया का नंबर एक ड्रग उत्पादन करने वाला देश है.

90 फीसदी से भी ज्यादा ड्रग दुनिया भर में अफगानिस्तान से तस्करी किए जाते हैं. खास तौर पर अफीम और हशीश अफगानिस्तान से ही दुनिया भर में सप्लाई किए जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक 13 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नशीली पदार्थ के व्यवसाय से जुड़ी है. रुट्टिग कहते हैं ड्रग उद्योग को चरमपंथी और राजनेता दोनों ही बचा रहे हैं. साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समस्या को नहीं सुलझा पाने की भी आलोचना करते हैं. वह कहते हैं, "वह अफगानिस्तानियों से एक मात्र आय को स्त्रोत नहीं लेना चाहते. जिससे वे उग्रवाद की तरफ ना बढ़ जाए."

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तस्वीर: DW

मुनाफे में अफीम उद्योग

सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय सेना की मौजूदगी में ड्रग उद्योग फला फूला है जिससे सेना की भी मौजूदगी को सही प्रकाश में नहीं डालती. लंबे समय से अमेरिका और अहमद वली के बीच अच्छे रिश्ते रहे. वली राष्ट्रपति करजई के भाई और एक ड्रग माफिया थे जो कि पिछले महीने कंधार में मारे गए. सैफुद्दीन सायहून कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान की ड्रग उद्योग पर उंगली उठा रही है. लेकिन उसी समय करीब 70 फीसदी ड्रग हेलमांद प्रांत में पैदा होते हैं जो ब्रिटिश और उसके बाद अमेरिकी सेना के कब्जे में था." जानकारों का मानना है कि ड्रग उद्योग को खत्म होने में 20 से 30 साल और लगेंगे.

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तस्वीर: Fotolia/eAlisa

लहराते अफीम के खेत

अफीम के खेत लहलहा रहे हैं वहीं बाकी और खेत सूखे पड़े हैं. काइनेमन कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय कृषि को बढ़ाने में पूरी तरह नाकाम रही है." अन्य क्षेत्र जो लंबे समय में आर्थिक विकास दर दे सकते हैं उन्हें भी निवेश की जरूरत है. तांबा, लौह अयस्क, और लिथियम बड़े पैमाने में अफगानिस्तान में मौजूद हैं लेकिन अभी तक इनका खनन नहीं हो पाया है.

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तस्वीर: AP

काइनेमन कहते हैं कि कुछ ही जर्मन उद्यमी अफगानिस्तान में व्यापार कर रहे हैं. रुट्टिग चेतावनी देते हैं कि आर्थिक मंदी के कारण अफगानिस्तान कई साल पीछे जा सकता है और डर है कि वह सोमालिया की तरह विफल राष्ट्र बन सकता है. फिलहाल न ही वाशिंगटन और न बर्लिन के पास 2014 के बाद की आर्थिक सहायता राशि के आंकड़े हैं. लेकिन अफगानिस्तान में सुरक्षा ऊंची कीमत पर आती है और इसलिए आर्थिक स्थिरता भी जरूरी है.

रिपोर्टः जूलिया हान (आमिर अंसारी)

संपादनः ए जमाल

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