अफगानिस्तान में निवेश के लिए सम्मेलन
२८ जून २०१२इनमें पाकिस्तान, चीन और ईरान के अलावा फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, जापान और तुर्की की कंपनियां भी शामिल हैं. भारत और अफगानिस्तान से करीब 200 कंपनियों ने हिस्सा लिया. साथ ही विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रतिनिधि भी बैठक के लिए दिल्ली पहुंचे हैं. सम्मलेन में भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री जलमय रसूल हिस्सा ले रहे हैं.
2014 की तैयारी
2014 के अंत तक नाटो सेनाओं को अफगानिस्तान से हटा लिया जाएगा. इसके बाद से अफगानिस्तान में मूलभूत सुविधाएं बनाने के लिए विदेशी निवेश के रास्ते खुल जाएंगे. भारत खास तौर से निजी कंपनियों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रहा है. निवेश के लिए भारत की पाकिस्तान और चीन के साथ भी होड़ लगी है. 2001 में तालिबान के आने से पहले अफगानिस्तान में मुख्य रूप से पाकिस्तान का ही निवेश था. लेकिन उसके बाद हालत बदले. भारत अब तक विकास कार्यों में अफगानिस्तान में दो अरब डॉलर का निवेश कर चुका है. भारत का बढ़ता निवेश पाकिस्तान के लिए चिंता का मुद्दा बना हुआ है. वहीं चीन भी अफगानिस्तान के खनिजों में निवेश कर रहा है.
भारत की नजर
बैठक में एसएम कृष्णा ने कहा, "निवेश से रोजगार, प्रशिक्षण और भविष्य के लिए अवसरों की उम्मीद जगेगी." कृष्णा ने भारतीय कंपनियों से बड़ी संख्या में अफगानिस्तान में निवेश करने की अपील की. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान एक ओर ईरान और खाड़ी देशों से घिरा है और दूसरी ओर भारत और चीन जैसे बाजारों से. कृष्णा ने कहा कि भारत ने पहले ही अफगानिस्तान से आयात पर टैक्स कम कर दिया है ताकि काबुल के व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके. कृष्णा ने यह सुझाव भी दिया कि भारतीय कंपनियां अफगानिस्तान में उत्पादन कर वहां बनाया गया सामान भारत में बेच सकती हैं, "हम चाहते हैं कि थके हुए सिपाहियों की भूरी और हरी वर्दियों की जगह वहां काले सूट पहने प्रबंधक ले सकें, जनरल की जगह वहां सीईओ हों."
बैठक के नतीजों की आठ जुलाई को टोक्यो में होने वाले सम्मलेन में चर्चा की जाएगी. इस सम्मलेन में अंतरराष्ट्रीय समुदाए नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद देश को आर्थिक सहयोग देने पर चर्चा करेगा. अमेरिका ने भारत की इस पहल की सराहना की है.
आईबी,एमजे (डीपीए,रॉयटर्स)