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अफगानिस्तान में महिलाओं का जीना मुहाल

२३ नवम्बर २०११

तालिबानी लड़ाकों के आत्मघाती हमलों और अमेरिकी सैनिकों की कार्रवाई की खबरें तो अफगानिस्तान से रोज आती हैं पर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के बारे में ज्यादा कुछ सामने नहीं आता. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कुछ बता रही है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

जुलाई 2010 में हेरात प्रांत की 15 और 17 साल की दो बहनों की हत्या कर दी गई सिर्फ इसलिए क्योंकि बड़ी बहन ने एक बूढ़े आदमी के साथ शादी करने से इंकार कर दिया. दूल्हा बनने जा रहे शख्स और ससुर को 16 साल के जेल की सजा हुई और तीन दूसरे लोगों को छोड़ दिया गया. मध्य डाइकोंडी प्रांत में दो लड़कियों को 60 साल के एक इंसान ने गर्भवती बना दिया. इस धार्मिक नेता पर अवैध संबंध के आरोप लगे लेकिन अपील कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए बनाए गए कानून के तहत इसकी सुनवाई से इनकार कर दिया. इसी तरह कंधार प्रांत की एक महिला ने शिकायत की कि उसकी बेटी को आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया. उसका कहना था कि उसकी बेटी को शादी के लिए बेच दिया गया और फिर शादी के 10 साल बाद उसने खुदकुशी कर ली. उसके ससुराल वालों ने उसे तीन लोगों के साथ सेक्स करने पर मजबूर किया.

Afghanistan Kabul Frauen
तस्वीर: AP

अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अपराधों की फेहरिश्त बहुत लंबी है. अफगान सरकार ऐसे कानून को प्रभाव में नहीं ला पा रही जो महिलाओं की हत्या, उनके साथ मार पीट, बलात्कार और दूसरी तरह की हिंसा को रोक सके. संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को यह बात कही.

अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग मिशन ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके मुताबिक महिलाओं पर हिंसा के बहुत कम मामलों में ही दोषियों को सजा हो पाती है. अफगान सरकार ने दो साल पहले महिलाओं की रक्षा के लिए एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन कानून बनाया था. संयुक्त राष्ट्र मिशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं पर हिंसा के 2,299 मामलों में से केवल 155 मामलों में ही अफगानिस्तान के अभियोजन विभाग ने अभियोग लगाया. केवल 101 मामलों में अंतिम फैसले के लिए कानून का इस्तेमाल हुआ.

Afghanistan Mazar-e-Sharif Wahlen
तस्वीर: AP

मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त नवी पिल्लई ने बताया, "निश्चित रूप से कानून का इस्तेमाल बढ़ा है लेकिन अफगान महिलाओं को हिंसा से पूरी तरह बचाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है."

अफगानिस्तान पर जब तालिबान का क्रूर शासन था तब महिलाओं के अधिकार बहुत कम थे. 2001 में तालिबान को सत्ता से बाहर करने के बाद महिलाओं की स्थिति में सुधार हो, यह अफगान की हामिद करजई सरकार के समर्थक पश्चिमी देशों की इच्छा है. अगस्त 2009 में महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाया गया जिसका मकसद उन्हें बराबरी का हक दिलाना है. यह कानून बराबरी का हक दिलाने के साथ ही बच्चों का अपराधी बनाने, जबरन शादी, शादी के लिए महिलाओं को खरीदने या बेचने या फिर उन्हें आत्मदाह करने पर मजबूर करने जैसे मामलों से निबटने के लिए बनाया गया है.

Afghanistan Kabul Waffe
तस्वीर: AP

कानून तो बन गया लेकिन दिक्कत यह है कि इसका पालन कराने में पुलिस, अभियोजकों और गवर्नरों ने बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है. नतीजा यह होता है कि कुछ मामले वापस ले लिए जाते हैं. इसके अलावा हत्या जैसे कुछ गंभीर मामलों में दोषियों पर शरीया कानून के तहत अभियोग लगाए जाते हैं और फिर उन्हें बरी कर दिया जाता है या फिर बहुत मामूली सजा दे कर छोड़ दिया जाता है. कई मामलों में तो खुद पीड़ित महिला को भी नैतिक आधार पर अभियुक्त बना दिया जाता है. महिला पुलिस की कमी, महिलाओं के लिए आश्रय की कमी और घरेलू हिंसा के मामलों में बहुत ज्यादा मध्यस्थता की वजह से भी महिलाएं शिकायत करने से डरती हैं.

Afghanistan Demonstration vor Botschaft von Iran in Kabul Flash-Galerie
तस्वीर: dapd

संयुक्त राष्ट्र मिशन ने सलाह दी है कि सरकार और अधिकारियों में सभी स्तरों पर इस कानून के लिए जागरूकता बढ़ानी होगी. इसके साथ ही अभियोजकों, पुलिस और जजों को इस के लिए प्रशिक्षित करना होगा कि इस कानून को कैसे अमल में लाना है. इसके साथ ही कानून की जो कमजोरियां हैं जैसे कि हिंसा का शिकार होने से बचने के लिए भागने वाली महिलाओं को सुरक्षा और बाद में नैतिक अपराध की दुहाई देकर उन्हें हिरासत में लेने जैसी हरकतों को रोकना होगा.

रिपोर्टः रॉयटर्स, एएफपी/ एन रंजन

संपादनः महेश झा

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