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अफ्रीकी चीतों को भारत लाने का रास्ता साफ

२९ जनवरी २०२०

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीकी चीतों को देश में उचित स्थान पर बसाने की इजाजत दे दी है. इस प्रयोग में यह देखा जाएगा कि क्या वे भारत की जलवायु में खुद को ढाल पाते हैं.

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तस्वीर: DW/S. Duckstein

भारत में आखिरी बार सन 1947 में चीतों का शिकार हुआ था. कहा जाता है कि सरगुजा के महाराजा ने आखिरी तीन चीतों का शिकार किया था. विशेषज्ञों का कहना है कि देश में पहले से ही जंगली जानवर और इंसानों का संघर्ष चल रहा है और इस पर पहले ध्यान देने की जरूरत है.

दुनिया भर में इस वक्त अनुमान के मुताबिक 7,100 चीते ही बचे हैं. करीब 120 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ने वाला यह जानवर मुश्किल दौर से गुजर रहा है. चीतों का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ. लेकिन भारत में चीतों को बसाने को लेकर नई उम्मीद जगी है. भारत में विलुप्त हो चुके चीतों को सुप्रीम कोर्ट ने उनके लिए उचित अभयारण्य में बसाने की अनुमति दे दी है.

भारतीय चीते की प्रजाति के विलुप्त होने का जिक्र करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सुप्रीम कोर्ट से नामीबिया से उसे यहां लाकर बसाने की इजाजत मांगी थी. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि अदालत इस परियोजना की निगरानी करेगी. बेंच ने इस संबंध में तीन सदस्यीय समिति गठित की है. समिति में पूर्व वन्यजीव निदेशक रंजीत सिंह, वन्यजीव महानिदेशक धनंजय मोहन और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के डीआईजी शामिल हैं.

चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर में रखे जाने की खबरें हैं. देश में इस वक्त बड़ी बिल्लियों की 15 प्रजातियां मौजूद हैं लेकिन इनमें चीते की कमी है. कुछ वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दे रहे हैं. वाइल्ड लाइफ एसओएस के सह संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण कहते हैं, "बड़ी बिल्लियों की प्रजातियों के सीमित आवास को लेकर देश पहले से ही जूझ रहा है. सभी नस्ल के जंगली जानवर भारी चुनौती का सामना कर रहे हैं. एशियाई शेरों को ही ले लीजिए, इनकी आबादी भारत में मौजूद है लेकिन अगर कोई बीमारी या महामारी फैलती है तो उनके लिए वैकल्पिक आवासों की जरूरत होगी, नहीं तो उनकी पूरी आबादी ही खत्म हो जाएगी." सत्यनारायण आगे कहते हैं, "सरकार ने कई साल तक वैकल्पिक आवास के लिए प्रयास किए थे जो अब तक पूरा नहीं हो पाया है."

चीतों को बसाने की चुनौती

साल 2010 में केंद्र सरकार ने चीतों को दोबारा बसाने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की थी. इस समिति ने सुझाव दिया था कि दुनिया के सबसे तेज जानवार का घर मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर, गुजरात के वेलावदार राष्‍ट्रीय उद्यान और राजस्थान के ताल छापर अभ्यारण हो सकते हैं. मध्य प्रदेश ने कूनो पालपुर में गुजरात से लाकर एशियाई शेरों को बसाने की योजना बनाई थी लेकिन गुजरात ने शेरों को देने से इनकार कर दिया था.

भारत में चीतों को दोबारा बसाने के लिए कूनो पालपुर एक पसंदीदा जगह हो सकती है. हालांकि सत्यनारायण इसके साथ ही जंगली जानवरों और इंसानों के बीच आए दिन होने वाले संघर्ष का भी जिक्र करते हैं. सत्यनारायण कहते हैं, "बाघ और तेंदुए को लेकर हम रोजाना कोई बुरी खबर सुनते हैं कि उनको मारा गया या फिर उनकी मौत दुर्घटना की वजह से हो गई. चीतों को दोबारा बसाने का फैसला स्वागत योग्य है लेकिन साथ ही यह एक बड़ी चुनौती भी है कि हम उनके लिए किस तरह का आवास मुहैया करा पाते हैं."

सत्यनारायण के मुताबिक, "बड़ी बिल्लियों की प्रजातियां हमारे देश में अच्छा कर रही है लेकिन चीतों को लाने से मौजूदा चुनौतियां और बढ़ेंगी. पहले से मौजूद प्रजातियों के लिए धन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. अगर चीतों को भारत लाते हैं तो हमारा ध्यान एक नई चुनौती की तरफ चला जाएगा. हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में जब हम संघर्ष को कम या खत्म कर दें तो चीतों को लाकर बसाना ज्यादा सफल साबित होगा और उसमें कामयाब भी हो जाएं."

चीतों की आबादी फिलहाल ईरान और अफ्रीकी महाद्वीप में बची है. शिकार, तस्करी और प्राकृतिक आवास में कमी के कारण दुनिया भर में चीतों की संख्या प्रभावित हुई हैं.

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