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अब बैक्टीरिया लड़ेंगे कैंसर से

१८ अप्रैल २०११

फूड पॉइजनिंग फैलाने वाला खतरनाक सैलमोनेला बैक्टीरिया का एक अच्छे रूप सामने आ रहा है. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस बैक्टीरिया से भविष्य में कैंसर का इलाज किया जा सकेगा.

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तस्वीर: Fotolia/Irina Tischenko

जर्मनी के हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च एचजेडआई ने एक शोध में पता लगाया कि सैलमोनेला बैक्टीरिया कैंसर के खिलाफ प्रभावशाली साबित हो सकता है. शोध करने वाली टीम ने इन बैक्टीरिया के अनुवांशिक रूप से संवर्धित (या जेनेटिकली मॉडिफाइड) रूप का प्रयोग किया है.

Krebs Therapie Zentrum Heidelberg
तस्वीर: HIT

एचजेडआई के जीगफ्रीड वाइस कहते हैं, "हमें पिछले 150 साल से पता है कि बैक्टीरिया से हमारे शरीर में ट्यूमर के कणों को नष्ट किया जा सकता है." एचजेडआई के प्रमुख गेर्ड नेटिकोफेन का भी मानना है कि बैक्टीरिया के सामने ट्यूमर कमजोर पड़ जाते हैं. लेकिन अगर प्रयोग सफल होता है तो कैंसर के इलाज में यह एक बड़ा कदम साबित होगा. वाइस कहते हैं कि सैलमोनेला से न केवल कैंसर को रोका जा सकता है, बल्कि इससे कैंसर के बारे में पता भी लगाया जा सकता है. सैलमोनेला में एक अनुवंशिका डाली जाती है जो प्रकाश उत्सर्जक प्रोटीनों के जरिए शरीर में ट्यूमर के अंग को पता करने में मदद करती है.

कैसे लड़ेगा बैक्टीरिया

अब तक शोधकर्ता इन्फेक्शन को रोकने में असमर्थ रहे हैं. लेकिन जीएम बैक्टीरिया से यह भी मुमकिन हो सकता है. एचजेडआई के आठ सदस्यों की टीम इस पर काम कर रही है और इतने सालों के शोध के बाद पहली बार सफलता की एक किरण दिखाई दे रही है. वाइस का कहना है कि शोधकर्ता सैलमोनेला टाइफीनियम और आंत के कैंसर पर ध्यान दे रहे हैं.

Gesichtschirurgie in Jena
तस्वीर: picture-alliance/dpa

सैलमोनेला एक ऐसी बैक्टीरिया है जो ऑक्सीजन की कम मात्रा वाले उत्तकों में रहता है. जब सैलमोनेला को शरीर में भेजा जाता है तो शरीर की रक्षा प्रणाली कुछ में 'संदेश' भेजने वाले पदार्थ क्रियाशील हो जाते हैं. इससे कैंसर वाले उत्तक को भेदने में मदद मिलती है और सैलमोनेला आराम से आंत तक पहुंचकर कैंसर के ट्यूमर से लड़ना शुरू करते हैं. वाइस के मुताबिक चूहों पर इसका असर देखा जा सकता है.

जहर से भी बचना है

अब शोधकर्ता इस कोशिश में लगे हैं कि सैलमोनेला प्रभावशाली भी रहे लेकिन उनकी वजह से शरीर को खतरा पैदा न हो और ब्लड पॉइजनिंग को भी रोका जा सके. सैलमोनेला के अलावा शोधकर्ता कुछ और बैक्टीरिया की भी जांच कर रहे हैं जो कैंसर से जूझने में मददगार साबित हों.

हालांकि वाइस कहते हैं कि इस शोध को मरीजों के इलाज के लिए इस्तेमाल करने में देर लगेगी. जानवरों में इसकी सफलता को देखने में पांच साल आराम से लग जाएंगे जिसके बाद ही मनुष्यों पर शोध किया जा सकेगा. इसके बावजूद ऑपरेशन के जरिए ट्यूमरों को निकालना पड़ेगा. वाइस यह भी मानते हैं कि इस इलाज के सफल होने के बाद भी कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी करानी पड़ेगी. जर्मन कैंसर संस्थान डॉयचे क्रेब्सहिल्फे ने इस शोध के लिए लगभग 25 लाख यूरो की राशि दी है.

रिपोर्ट:डीपीए/एमजी

संपादनः वी कुमार

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