अमेरिकी परमाणु कंपनियां भारत को निर्यात कर सकेंगी
२६ जनवरी २०११पोखरन-2 के बाद से ही अमेरिका भारत के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ था और भारतीय अंतरिक्ष संस्था इसरो और रक्षा शोध संस्था डीआरडीओ अमेरिकी सरकार के ब्लैकलिस्ट में शामिल थे. अमेरिकी सरकार ने इन संस्थाओं को वह सारी सामग्री बेचने से प्रतिबंधित कर दिया था, जिसका इस्तेमाल हथियारों में किया जा सके.
उप विदेश मंत्री रॉबर्ट ब्लेक ने कहा कि इन नियंत्रणों को खत्म करने से कंपनियां और सरकारें रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में साझेदार बन सकेंगी. ब्लेक ने कहा कि अमेरिका संवेदनशील सामग्री का निर्यात करने वाले चार खास गुटों में भी भारत की सदस्यता की पैरवी करेगा. इनमें परमाणु रिएक्टरों के लिए सामग्री निर्यात करने वाला न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप भी शामिल है. ब्लेक का कहना है कि अमेरिका भारत के लिए एक वैश्विक भूमिका का समर्थन करता है, लेकिन उन्होंने कहा कि एक रणनीतिक साझेदारी आर्थिक साझेदारी के बिनाह पर ही कामयाब हो सकती है. उनको उम्मीद है कि अमेरिकी सरकार खेती बाड़ी जैसे क्षेत्रों में भी निर्यात नियंत्रणों को कम करेगी.
अमेरिका उम्मीद कर रहा है कि इन नियंत्रणों को खत्म करने से अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा. अमेरिकी सरकार भारत को सैन्य हथियार भी बेचने की उम्मीद रखती है, खासकर भारतीय वायुसेना के लिए. वाणिज्य मंत्री गैरी लॉक ने भी कहा है कि भारत और अमेरिका के संबंध इस फैसले से और गहरे होंगे. लॉक फरवरी को भारत का दौरा कर रहे हैं. उनके साथ 24 अमेरिकी कंपनियां भारत में अपनी किस्मत आजमाएंगी. इनमें हवाई जहाज कंपनी बोइंग, लॉकहेड मार्टिन और वेस्टिंगहाउज इलैक्ट्रिकल्स शामिल हैं.
चीन ने भी अमेरिका से हाइ टेक निर्यातों पर रोक खत्म करने की मांग की है लेकिन अमेरिका चीन की आर्थिक नीतियों और बौद्धिक संपत्ति को लेकर उसके कानूनों से परेशान है. वहीं वाल्मार्ट जैसी कंपनियां चाहती हैं कि भारत सरकार उन्हें स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी करने का मौका दे. हालांकि भारत के कई लघु उद्योगों और दुकानों के छोटे मोटे मालिकों को घाटा होगा.
रिपोर्टः एएफपी/एमजी
संपादनः एस गौड़