इंटरनेट से घबराई चीन की कम्युनिस्ट पार्टी
२ सितम्बर २०११चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ये लेखक मानते हैं कि राजनीतिक शत्रु इंटरनेट का इस्तेमाल कर जनमत तैयार कर रहे हैं. कम्युनिस्ट पार्टी की प्रमुख पत्रिका पीपुल्स डेली के विदेश संस्करण में ये लेख छपा है. लेख से जाहिर हो गया है कि सरकार जल्दी ही इंटरनेट पर जारी विचारों पर रोक लगाने के लिए कुछ नए कदम उठाएगी. फेसबुक, ट्विटर और दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए सरकार के खिलाफ जो जनमत तैयार हो है उससे सरकार चिंतित है.
इंटरनेट से अफवाह
चीन के अधिकारियों और मीडिया ने हाल ही में इस बात की शिकायत की थी कि इंटरनेट अफवाह फैला रहा है जिससे बहुत नुकसान हो रहा है. पर इस लेख ने इनके पीछे के राजनीतिक हथकंडों की बात की है. इसमें दलील दी गई है कि कुछ विरोधी कमजोर नियमों का फायदा उठा कर अपने विचारों को फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेख में सरकार से अनुरोध किया गया है कि इंटरनेट पर नियंत्रण लगाने के लिए नियमों को बदला जाए.
कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख सैद्धांतिक जर्नल चिउशे के लिए ये लेख लिखा गया है. चीनी भाषा में चिउशे का मतलब होता है सच की खोज. इसमें कहा गया है, "इंटरनेट पर जाहिर की गई राय स्वाभाविक होती है लेकिन लगातार ऐसा होता दिख रहा है कि इसे आयोजित किया जा रहा है. इंटरनेट पर उठे विवादों में से कई ऐसे है जिन्हें जान बूझ कर उठाया गया. इसके लिए पहले से लक्ष्य निश्चित किया गया और फिर पूरी तैयारी के साथ दिशा तय की गई. इन सबके पीछे कारोबारी और राजनीतिक हित हैं." लेख के मुताबिक, "अगर प्रशासन सख्त न हुआ तो अपराधी, दुश्मन, आतंकवादी संगठन और दूसरे लोग इंटरनेट के जरिए गलत राय बना कर जनता की भावनाओं का दुरुपयोग करेंगे. इससे देश की सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता को नुकसान पहुंचेगा."
पीपुल्स डेली का लेख सरकारी नीतियों का एलान नहीं है बल्कि यह सरकार के अंदर चल रही बहस की धारा के बारे में जानकारी देता है. इसके साथ ही यह इस बात का भी संकेत दे रहा है कि चीन सख्त नियंत्रण के बारे में विचार कर रहा है.
माइक्रोब्लॉगिंग से परेशानी
चीन पहले से ही इंटरनेट को फिल्टर करता है. दुनिया भर में लोगों के पसंदीदा सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, ट्विटर और यहां तक कि यूट्यूब पर भी यहां पाबंदी है. पीपुल्स डेली में छपे लेख ने माइक्रोब्लॉग वाइबो की सदस्यता में हुई विशाल बढ़ोत्तरी को निशाना नहीं बनाया गया है. वाइबो की सदस्यता 2010 के आखिरी महीनों के मुकाबले करीब 209 फीसदी बढ़ कर 19.5 करोड़ तक जा पहुंची है. हालांकि माइक्रोब्लॉग की वजह से फैलने वाले कुछ हंगामों पर जरूर उंगली उठाई गई है. खासतौर से वाइबो और सीनाकॉर्प इसके केंद्र में रहे हैं. इन हंगामों में जुलाई में हुआ बुलेट ट्रेन हादसा भी शामिल है. हादसे के बाद तेज रफ्तार वाले बुलेट ट्रेन के विस्तार, सुरक्षा में नाकामी और लापरवाही वाले बयानों के लिए सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया गया.
सीना और चीन की दूसरी माइक्रोब्लॉग वेबसाइटों ने पहले से ही विषयवस्तु पर निगरानी रखने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों और सॉफ्टवेयर तैनात कर रखे हैं. ये पहरेदार उन पर निगरानी रखने के साथ ही विषयवस्तु पर पाबंदी भी लगाते हैं और प्रतिक्रियाओं को हटा भी देते हैं. खासतौर से विरोध, विवाद और पार्टी नेताओं के खिलाफ तो विशेष सावधानी बरती जाती है. इसके बावजूद सूचनाओं और विचारों के हमले को रोक पाना मुश्किल हो रहा है. पीपुल्स डेली में लिखा गया है, "इंटरनेट की जंग में आमतौर पर नकारात्मक विचार सकारात्मक विचारों को कुचल देते हैं. ऑनलाइन विचार सरकार की नीतियों, आदेशों, मुख्यधारा के विचारों, उच्च वर्ग और अमीरों के प्रति संदेह पैदा करते हैं.
आधिकारिक रूप से कम से कम वाइबो और चीन के दूसरे माइक्रोब्लॉग वेबसाइट परीक्षण के दौर में हैं. इस तरह के माइक्रोब्लॉग वेबसाइटों को ही निशाना बना कर लिखे गए लेख में कहा गया है कि चीन की सरकार ने बिना प्रभावशाली नियंत्रण कायम किए इंटरनेट की तकनीक को बढ़ावा देकर अपना नुकसान किया है. लेख में साफ कहा गया है कि इसे निश्चित रूप से बदला जाना चाहिए, "हम ये समझने में नाकाम रहे हैं कि इंटरनेट कैसे एक दोधारी तलवार की तरह है. हमारे साथ तकनीकी विकास को मंजूरी देने और उसका प्रशासन संभालने में कमजोरी की समस्या है."
लेख में यह भी कहा गया है कि जब सरकार पहले से लोकप्रिय हो चुके इंटरनेट की तकनीक पर नियंत्रण करने की कोशिश करती है तो उसे लोगों के विरोध, इस्तेमाल करने वालों की नाराजगी और अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेलनी पड़ती है. इसमें साफ साफ कहा गया है कि भविष्य में इंटरनेट की नई तकनीक का विकास और इस्तेमाल करने से पहले इसकी पूरी छानबीन होनी चाहिए, इसके लिए कठोर नियम अपनाए जाने चाहिए और इसके प्रशासन के लिए प्रभावशाली उपाय किए जाने चाहिए.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः महेश झा