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'इंसान हैं, कुत्ते नहीं'

२८ नवम्बर २०१३

लंदन के मेयर ने समाज के एक बहुत छोटे तबके को बढ़ावा और बाकी के प्रति उदासीन रहने की सलाह दी है. मेयर ने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया कि देश के उप प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि मेयर आम लोगों को 'कुत्ता न समझें.'

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निक क्लेगतस्वीर: Dan Kitwood/Getty Images

ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की याद में आयोजित एक लेक्चर में लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन ने कहा, "मैं नहीं मानता कि आर्थिक बराबरी मुमकिन है. इसके उलट कुछ आर्थिक असमानता जरूरी है ताकि ईर्ष्या की भावना बनी रहे. जॉनसन के साथ बने रहने के लिए ये भी जरूरी है लालच जैसी चीजें भी हों, ये आर्थिक गतिविधियों के लिए मूल्यवान उकसावा हैं."

सत्ताधारी गठबंधन की कंजरवेटिव पार्टी के नेता जॉनसन ने आम लोगों की बौद्धिक क्षमता (आईक्यू) पर भी तंज किया. मेयर ने कहा कि हमारी 16 फीसदी "प्रजाति" का आईक्यू 85 से नीचे है, ऐसे में 130 से ज्यादा आईक्यू वाले दो फीसदी लोगों पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए.

अमीर गरीब की बहस

मेयर की यह बात लिबरल डैमोक्रेट पार्टी के नेता और ब्रिटेन के उप प्रधानमंत्री निक क्लेग तक पहुंची तो वो बिफर पड़े. क्लेग ने जॉनसन के भाषण को "दुखद, लापरवाह रईस व्यवहार" करार दिया. उप प्रधानमंत्री ने कहा कि मेयर आम लोगों के बारे में ऐसे बात कर रहे हैं जैसे वे कुत्ते हों. क्लेग ने कहा, मेयर के विचार "जिंदगी में संघर्ष कर रहे लोगों की भावनाओं की खिल्ली उड़ाने वाला संदेश" दे रहे हैं.

सोशल मीडिया पर छिड़ चुकी बहस के बीच उप प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं इस बात पर बोरिस जॉनसन से सहमत नहीं हूं. मैं कहना चाहता हूं कि उनकी ये टिप्पणियां साफ खराब लापरवाह रईसीयत का खुलासा करती हैं. इसके जरिए वो कहना चाह रहे हैं कि हमें संघर्ष कर रहे अपने साथी नागरिकों के प्रति हाथ खड़े कर देने चाहिए."

London Bürgermeister Boris Johnson
लंदन के मेयर बोरिस जॉनसनतस्वीर: Getty Images

एक रेडियो से बात करते हुए क्लेग ने कहा, "हमारे बारे में ऐसे बात कर रहे हैं जैसे हम कुत्तों की खास प्रजाति हों, वो यही कह रहे हैं. राजनीति में हमारा कर्तव्य यह नहीं है कि हम एक समूह को एक श्रेणी में डाल दें, इस तरह जैसे कि उन्हें कहीं पार्क कर दिया जाए. समाज को एक बड़े केक की तरह नहीं देखा जा सकता और ये नहीं कहा जा सकता है कि हम केक के इस हिस्से को अलग रखेंगे और फिर उसके प्रति उदासीन हो जाएंगे."

ब्रिटेन में धीरे धीरे आर्थिक असंतोष ऊपज रहा है. रिजोल्यूशन फाउंडेशन के मुताबिक ब्रिटेन में अमीर और गरीब के बीच का फासला तेजी से बढ़ रहा है. संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन की एक फीसदी रईस आबादी को कुल राष्ट्रीय आय का दस फीसदी हिस्सा मिलता है. दूसरी तरफ देश की आधी आबादी यानी विशाल जनसंख्या के हाथ सिर्फ 18 फीसदी पैसा ही लगता है.

ओएसजे/एमजी (एएफपी)

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