इतिहास में आज: 9 मार्च
१९ मई २०१४इटली के शहर फ्लोरेंस में पैदा हुए अमेरिगो वेसपुची को बचपन से किताबें और नक्शे जमा करने का शौक था. 1492 में वेसपुची बैंक के कामकाज के सिलसिले में स्पेन जाकर रहने लगे. इसी दौरान वह अपनी दिलचस्पी की खातिर पानी के जहाजों में भी काम करने लगे. आखिरकार 1499 में उन्हें पहली बार समुद्री यात्रा का मौका मिला. जहाज दक्षिण अमेरिका के तट पर अमेजन नदी के मुहाने पर पहुंचा.
आकाश में चंद्रमा और मंगल की स्थिति देखकर अमेरिगो ने सही सही अंदाजा लगाया कि वो पूर्व में एशिया की तरफ नहीं बल्कि पश्चिम बहुत दूर पहुंच गए हैं.
दूसरी बार 1501 में अमेरिगो पुर्तगाल के जहाज पर सवार होकर पश्चिम की यात्रा पर निकले. 64 दिन के बाद वो फिर दक्षिण अमेरिकी तट पर एक नई जगह पहुंचे. वहां पहुंचकर अमेरिगो ने अपने एक यूरोपीय मित्र को खत लिखा. उन्होंने पहली बार बताया कि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका किसी भी तरह एशिया से नहीं जुड़े हैं. पत्र में अमेरिगो ने अमेरिकी महाद्वीप के मूल निवासियों का विस्तार से जिक्र किया था. उन्होंने उनकी संस्कृति, खाने पीने, धर्म, यौन संबंध, विवाह और बच्चे के जन्म के समय से जुड़े रीति रिवाजों की जानकारी दी. अमेरिगो के इस खत का बाद में कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और कोलंबस की डायरी से भी ज्यादा बिका.
वैसे अमेरिगो से पहले 1493 में अपनी दूसरी समुद्री यात्रा पर निकले कोलंबस पहली बार अमेरिकी महाद्वीप पहुंचे थे. लेकिन कोलंबस को लगा कि वो भारत पहुंचे हैं. इसी वजह से अमेरिकी महाद्वीप के मूल निवासियों को रेड इंडियंस कहा जाता है. हालांकि कोलंबस अंतिम समय तक इसी भ्रम में रहे कि उन्होंने भारत ही खोजा है.
अमेरिगो तीन बार पश्चिम की यात्रा पर निकले और उन्होंने उस बड़े महाद्वीप को करीब करीब छान ही दिया. जर्मनी के प्रसिद्ध मानचित्र विज्ञानी मार्टिन वाल्डजेमुलर उस वक्त सामने आ रही नई दुनिया का नक्शा खींच रहे थे. वाल्डजेमुलर अमेरिगो की खोज से इतने प्रभावित हुए कि जिस इलाके को अमेरिगो ने खोजा था, उसे उन्होंने 1507 में खीचें अपने नक्शे में अमेरिका नाम दिया. नक्शे की यूरोप में हजारों प्रतियां बिकी और तभी से पूरी दुनिया पश्चिम के उस महाद्वीप को अमेरिका कहती है.