इमरजेंसी के लिए किस देश में कैसी तैयारी
जर्मन सरकार ने अपनी नागरिक रक्षा योजना में बदलाव कर लोगों को पर्याप्त भोजन, दवाइयों और कैश का संग्रह करने को कहा तो कई तरह के डर फैलाने की कोशिशें भी हुईं. देखिए दुनिया भर में इमरजेंसी से निपटने के लिए कैसी तैयारी है.
जापान में भूकंप के लिए
जापान के प्राथमिक स्कूलों में हर महीने भूकंप से बचने का अभ्यास होता है. उन्हें डेस्क के नीचे छुपने और झटके खत्म होने तक अपने पैरों को पकड़ कर रखने का अभ्यास कराया जाता है. सिर को चोट से बचाने के लिए हुड भी दिए जाते हैं. बहुमंजिला इमारत वाले स्कूल से फिसल कर बाहर निकलने के लिए शूट्स भी बने होते हैं.
इमरजेंसी चेतावनी देने में आगे
अमेरिका समेत कई देशों में ऐसे इमरजेंसी वॉर्निंग सिस्टम लगे हैं जो टीवी, रेडियो प्रसारणों के ऊपर काम करते हुए तुरंत जनता तक जरूरी जानकारी पहुंचा सकते हैं. जापान में तो भूकंप की चेतावनी का अत्याधुनिक सिस्टम बड़े झटके के आने के करीब 50 सेकंड पहले ही उसकी जानकारी दे सकने में सक्षम है. जान बचाने में हर सेकंड कीमती होता है.
हर घर में पैनिक रूम
स्विट्जरलैंड में 1963 के बाद बनी हर रिहायशी इमारत में एक न्यूक्लियर बंकर बनाना अनिवार्य कर दिया गया. इसे 700 मीटर की दूरी से भी कम से कम 12 मेगाटन के विस्फोट को झेलने योग्य होना चाहिए. सिंगापुर में सरकार द्वारा निर्मित लगभग हर बिल्डिंग में एक कमरा बम विस्फोट से सुरक्षित रखने वाला होता है लेकिन न्यूक्लियर बम-प्रूफ नहीं.
सुनामी से सीख
2004 में एशियाई क्षेत्र में आए भारी भूकंप और सुनामी की तबाही ने पूरी दुनिया को हैरान किया. हिन्द महासागर के इलाके में आई ऐसी आपदाओं से पिछले 600 सालों में ढाई लाख से भी अधिक लोग मारे गए हैं. 2004 की आपदा के बाद इंडियन ओशन सुनामी वॉर्निंग सिस्टम लगाता गया जिसने तबसे कई जानें बचाई हैं. थाईलैंड और श्रीलंका में लोगों के लिए ऐसे बोर्ड भी लगे हैं.
बीमारी और महामारी का फैलता डर
पिछले एक दशक के दौरान लोगों में महामारी के रूप में फैलने वाली बीमारियों का डर बढ़ा है. जर्मनी, अमेरिका समेत कई देशों में दवाइयों का भंडारण करने का निर्णय लिया गया. 2009 में अरबों यूरो खर्च कर टैमिफ्लू नामकी दवा के बड़े रिजर्व बनाए गए. इसे स्वाइन फ्लू में प्रभावी माना जाता था लेकिन इस पर भी अब संदेह है. कई दवाइयां बिना इस्तेमाल के एक्सपायर हो गईं.
हर हाल में सर्वाइवल
सर्वाइवलिस्ट मूवमेंट में लोग सक्रिय रूप से किसी इमरजेंसी स्थिति के लिए तैयारी करते हैं. 1930 में शुरू हुए इस अभियान पर इंटरनेट के आगमन और फिर 2007-08 के आर्थिक संकट का गहरा असर पड़ा. इन लोगों को प्रेपर्स कहा जाता है और ये संकट की स्थिति के लिए चीजें और उपाय तैयार रखते हैं. जैसे तस्वीर में पोल एडोल्फ कुडलिंस्की ने औजार और सप्लाई इकट्ठी की हुई है.
क्या आयोडीन बचाएगा न्यूक्लियर खतरे से
बेल्जियम, नीदरलैंड्स और जर्मन राज्य नॉर्थराइन वेस्टफेलिया में आयोडीन टैबलेटों का संग्रह किया जा रहा है जो रेडिएशन के खतरे से बचाएगा. बेल्जियम ने कहा है कि जर्मन सीमा से लगे उसके पुराने होते न्यूक्लियर रिएक्टर 2025 तक काम करते रहेंगे. ब्रसेल्स के आतंकी हमले के बाद से इस बात का डर फैला कि आईएस यहां कोई डर्टी बम फोड़ सकता है.
कितने पास हैं टॉरनैडो
भारत और फिलीपींस जैसे कई आपदाओं की संभावना वाले देशों में स्मार्टफोन के ऐप और टेक्स्ट संदेशों का इस्तेमाल कर इमरजेंसी सूचना जनता तक पहुंचाई जा रही है. अमेरिका में वायरलेस इमरजेंसी एलर्ट सिस्टम से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली चीजों, टॉरनैडो, भूकंप या हरिकेन जैसी स्थानीय आपदाओं की सूचना और अगवा किए गए बच्चों के बारे में भी बताया जा रहा है.