इराक़ युद्ध पर टोनी ब्लेयर की सफ़ाई
२९ जनवरी २०१०शुक्रवार को ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को उस जांच आयोग के सामने उपस्थित होना पड़ा, जिसे यह पता लगाना है कि इराक़ युद्ध में शामिल होने का ब्रिटेन का फ़ैसला कहां तक उचित था. आयोग पिछले दो महीनों से इस बारे में गवाहियां सुन रहा है. ब्लेयर से वह जानना चाहता है कि वे कहीं अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को खुश करने के लिए तो युद्ध में शामिल नहीं हुए?
फ़रवरी 2003. जॉर्ज बुश के इराक़ युद्ध में शामिल होते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने कहा था, "आज रात से ब्रिटिश सैनिक जल, थल और हवाई मार्ग से अपनी कार्रवाई शुरू कर देंगे. मिशन है, सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाना और इराक़ से जनसंहारक अस्त्रों को दूर करना".
सद्दाम हुसैन को तो हटा दिया गया पर जनसंहारक अस्त्र नहीं मिले. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी प्रस्ताव के बिना युद्ध चलाया गया. युद्ध में मारे गये 180 सैनिकों के परिवार ही नहीं, ब्रिटेन का जनसाधारण भी जानना चाहता है कि ब्रिटेन इराक़ युद्ध में क्यों शामिल हुआ?
छह सदस्यों वाला विशेष जांच आयोग इसी प्रश्न का उत्तर पाना चाहता है. प्रदर्शनकारियों की भीड़ से बचने के लिए टोनी ब्लेयर दो घंटा पहले ही पिछले दरवाज़े से सुनवाई भवन में पहुंच गये. अपने जवाब में उन्होंने कहा, "सद्दाम हुसैन के जनसंहारक रासायनिक, जैविक और परमाणविक हथियारों वाला ख़तरा एक वास्तविक ख़तरा था".
ब्लेयर ने कहा कि 11 सितंबर 2001 के अमेरिका में हुए आतंकवादी हवाई हमलों से पहले भी हम मान रहे थे कि सद्दाम हुसैन से ख़तरा तो है, लेकिन उसे सीमित रखा जा सकता है. लेकिन, 11 सिंतबर वाली घटनाओं के बाद इस ख़तरे का गणित बदल गया. हमारा और अमेरिकी आकलन एकदम से बदल गया. यदि 11 सितंबर वाली घटना नहीं हुई होती, हमारा आकलन भी इस गहराई तक नहीं बदला होता.
ब्लेयर ने कहा कि उन्हें और अमेरिका को लगा कि यदि अब भी कुछ नहीं किया गया, तो उन तीन हज़ार से कहीं अधिक लोग मरेंगे, जो न्यूयॉर्क में मरे थे. सलाहकारों ने हमें बताया कि यदि जैविक, रासायनिक और परमाणविक हथियार सद्दाम के हाथ में रहे, तो उनका इस्तेमाल भी ज़रूर होगा. हम यह जोखिम नहीं उठा सकते थे और इसीलिए हमारा आकलन बिल्कुल बदल गया.
टोनी ब्लेयर को पूरे दिन जांच आयोग के प्रश्नों के जवाब देने हैं. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, "मैंने राष्ट्रपति बुश से यही कहा कि इस ख़तरे का जवाब देने और उससे निपटने में हम आप के साथ रहेंगे." ब्लेयर का कहना था कि अमेरिका के साथ हमारी इस आशय की कोई संधि भले ही न हो, हम मित्र देश हैं. मैं नहीं चाहता था कि अमेरिका को लगे कि उसे यह लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ेगी. एक तथ्य यह भी है कि सद्दाम हुसैन यदि संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों को ठेंगा नहीं दिखाता, तो शायद इस सब की नौबत भी नहीं आयी होती.
आयोग एक जांच आयोग है, कोई अदालत नहीं, इसलिए उसके निष्कर्ष का कोई क़ानूनी नतीजा निकलना ज़रूरी नहीं है.
रिपोर्ट- एजेंसियां/राम यादव
संपादन- आभा मोंढे