इस देश में मांओं के लिए नहीं है कोई जगह
१८ दिसम्बर २०१८दक्षिण कोरिया की एक महिला एश्ली पार्क ने अपनी नौकरी एक दवा कंपनी में शुरू की थी. वे एक अच्छे कॉलेज से पढ़ कर आई थीं और उनकी अंग्रेजी भी बहुत अच्छी थी. कंपनी में भी अपने सहयोगियों के साथ उनके अच्छे रिश्ते थे. लेकिन कुछ महीने बाद जब वे गर्भवती हुईं तो उनकी यह सारी खूबियां कंपनी के लिए अचानक बेमानी हो गईं.
पार्क ने बताया कि नौ महीने काम करने के बाद उनसे साफ साफ कह दिया गया कि "कंपनी में बच्चे वाली औरतों के लिए जगह नहीं है, इसलिये नौकरी छोड़नी पड़ेगी." इसी पल अचानक एश्ली का इस बात पर ध्यान गया कि असल में उस कंपनी में सारी औरतें या तो कुंवारी थीं या फिर बिना बच्चों की थी. इसके अलावा ज्यादातर औरतों की उम्र भी चालीस साल से कम ही थी.
एश्ली पार्क का मामला इस बात को साफ करता है कि दक्षिण कोरिया की औरतें शादी और बच्चे क्यों नहीं करना चाहतीं. इसकी वजह से देश की जन्मदर, जो पहले से ही दुनिया में सबसे कम है और कम होती जा रही है. कुछ दिनों पहले सिओल में गिरती हुए जन्मदर को रोकने के लिये कुछ उपायों का एलान हुआ था मगर आलोचकों का कहना है कि इनका ज्यादा असर नहीं होने वाला.
कई दक्षिण कोरियाई कंपनियां उन महिलाओं को नौकरी नहीं देतीं जिनके बच्चे होते हैं. कंपनियों को लगता है कि ये महिलाएं अपने काम की तरफ प्रतिबद्ध नहीं रहेंगी और ज्यादा देर तक काम भी नहीं कर पाएंगी. इस के साथ साथ ये कंपनियां महिलाओं को उन छुट्टियों का पैसा भी नहीं देना चाहती हैं, बच्चे के जन्म के बाद जिनकी वे कानूनी रूप से हकदार हैं.
छह महीने तक लड़ने के बाद एश्ली पार्क ने हार मान कर अपना इस्तीफा दे दिया. इसी तनाव से गुजरते हुए और एक महीने बाद उन्होंने अपनी बेटी को जन्म दिया. इसके बाद पार्क ने कुछ दिनों के लिये एक आईटी स्टार्ट-अप में काम करने की कोशिश की, मगर वो नौकरी ज्यादा दिन नहीं चल पाई और तब से पार्क को घर बैठना पड़ा है.
समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में पार्क ने बताया, "मैंने इतनी पढ़ाई की और इतने साल तक मेहनत से काम किया. लेकिन अब देखिए क्या हो गया."
सत्ताईस साल की पार्क ने इसके बाद भी कई इंटरव्यू दिए मगर नौकरी नहीं मिली. वे जैसे ही बताती हैं कि उनकी एक बेटी है, उनको मना कर दिया जाता है. अब तो पार्क ने नौकरी करने का इरादा ही छोड़ दिया है और खुद का काम शुरू करने की कोशिश कर रही हैं.
देश में 2018 की तीसरी तिमाही में जन्मदर 0.95 तक जा गिरी है, जो कि पहली बार 1 फीसदी से भी नीचे गई है. कोरियाई समाज में स्थिरता बनाए रखने के लिए कम से कम 2.1 जन्मदर की जरूरत है. इस दौर को 'बर्थ स्ट्राइक' का नाम दिया गया है. दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की आबादी अभी केवल 5.1 करोड़ है. यह कहा जा रहा है कि 2028 से और कम होनी शुरू हो जायेगी.
बहुत से लोगों का मानना है कि बच्चे पालने में होने वाला खर्च, युवाओं में बहुत ज्यादा बेरोजगारी, काम करने के लंबे घंटे और बच्चों को दिन में संभालने के लिए सेवाओं की कमी के कारण महिलाएं काम नहीं कर पा रही हैं. अगर इन सबके बावजूद औरतें काम कर भी रही हैं तो उनको घर का काम भी करना पड़ता है.
एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि पुरुष-प्रधान मान्यता वाले दक्षिण कोरिया में लगभग 85 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि औरतों को काम करना चाहिए. लेकिन इनमें से केवल 47 प्रतिशत पुरुष ही हैं जो अपनी पत्नी की नौकरी करने में मदद करने को राजी हैं.
विवाहित पुरुषों और महिलाओं के रोजगार दर में भी बहुत ज्यादा फर्क हैं. पुरुषों का रोजगार दर 82 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं में रोजगार दर सिर्फ 53 प्रतिशत ही है.
एक आर्थिक पत्रिका के जनमत सर्वेक्षण में बताया गया कि 20 से 40 साल की तीन चौथाई दक्षिण कोरियाई महिलाओं को लगता है कि शादी करने की कोई जरूरत नहीं है. दक्षिण कोरिया में लगभग सारे बच्चे शादी के बाद ही पैदा होते हैं.
दक्षिण कोरिया की सरकार ने जन्म दर को बढ़ाने के लिए सन् 2005 से अब तक बारह हजार करोड़ डॉलर से भी अधिक खर्च किए हैं. इन सरकारी अभियानों का मकसद लोगों को शादी कर बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करना है. लेकिन इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिली है.
हाल ही में सरकार ने कई नए कदम उठाए हैं. जैसे बच्चों के लिये मिलने वाली सहायता राशि को बढ़ा दिया है. जिन लोगों के बच्चे आठ साल से छोटे हैं, उनको दिन में एक घंटा कम नौकरी करनी पड़ेगी ताकि वो अपने बच्चों का ध्यान रख सकें.
सरकार बच्चों को संभालने के लिए और भी डे-केयर सेंटर और किंडरगार्टन खोलेगी. और जहां अभी पिता को बच्चे के जन्म के बाद सिर्फ तीन दिन की छुट्टी मिलती है, वहां अगर पिता चाहे तो दस दिन तक की सवेतन छुट्टी ले सकता है.
लेकिन इन उपायों का ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है क्योंकि इनका पालन ना करने वाली कंपनियों को कोई भी कानूनी सजा नहीं होती. कोरिया महिला श्रमिक संघ ने कहा, अगर सरकार को लगता है कि केवल लोगों को ज्यादा पैसे देने से ही लोग बच्चे पैदा करने लगेंगे तो ऐसा नहीं होने वाला. उनका कहना है कि जब तक काम की जगहों पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले निरंतर भेदभाव और यौन दुर्व्यवहार में कमी नहीं आती, और घर-बाहर के काम के दोहरे बोझ को कम नहीं किया जाता, तब तक स्थिति नहीं सुधरेगी.
एनआर/आरपी (एपी)