'इसी सत्र में पेश होगा लोकपाल बिल'
१७ दिसम्बर २०११बढ़ते दवाब के बीच शनिवार को चिदंबरम ने कहा, "निश्चित रूप से वर्तमान संसदीय सत्र में लोकपाल बिल पेश किया जाएगा." अन्ना की चेतावनी के बाद सरकार के रुख में यह बदलाव आया. चिदंबरम के बयान से पहले शनिवार को अन्ना ने कहा कि अगर इस सत्र में लोकपाल बिल पेश नहीं किया गया तो वह आमरण अनशन पर बैठेंगे.
शनिवार को अन्ना ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक नई चिट्ठी लिखी. चार पन्नों के खत में अन्ना ने आरोप लगाया कि सरकार का रुख ठीक नहीं है. अन्ना ने प्रधानमंत्री से पूछा कि लिखित आश्वासन देने के बाद उन्होंने सिटीजन चार्टर को लेकर अपने रवैये में बदलाव क्यों किया.
अन्ना के मुताबिक बीते कुछ महीनों में प्रधानमंत्री सिंह ने चिट्ठियों के जरिए उन्हें यह भरोसा दिया था कि शीतकालीन सत्र में एक मजबूत लोकपाल बिल पेश किया जाएगा. लेकिन शनिवार को अन्ना ने कहा, "आपके शब्दों पर भरोसा करते हुए हमने शीतकालीन सत्र तक अपना विरोध निलंबित किया. अब मीडिया में ऐसी खबरें आ रही हैं कि शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर को खत्म हो जाएगा. क्या तब तक लोकपाल बिल पास हो जाएगा. हमें इस पर संदेह है."
अन्ना ने प्रधानमंत्री से कहा कि अगर 23 दिसंबर तक लोकपाल बिल पास नहीं हुआ तो वह जेल भरो आंदोलन शुरू कर देंगे. अन्ना ने आरोप लगाया कि सरकार एक साल से लोकपाल बिल को लेकर वादे कर रही है. लेकिन हर बार वादा तोड़ कर जनता को धोखा दिया जा रहा है.
अन्ना चाहते हैं कि सीबीआई को भी लोकपाल के दायरे में लाया जाए. सरकार चाहती है कि सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखा जाए. साथ ही सरकार चाहती है कि किसी भी मामले की सीबीआई जांच से पहले प्राथमिक जांच हो. सीबीआई सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध कर रही है. शनिवार को सीबीआई के मु्द्दे पर अन्ना ने सरकार पर निशाना साधा, "इसका मतलब क्या है कि लोकपाल के पास कोई जांच एजेंसी नहीं होगी. बिना जांच एजेंसी के यह क्या करेगा. इससे अच्छा तो यह है कि हमें लोकपाल की जरूरत ही नहीं है." भारत की राजनीतिक पार्टियों पर अक्सर सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगते हैं.
भ्रष्टाचार के खिलाफ गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे पिछले साल अप्रैल से मुहिम छेड़े हुए हैं. उनके आंदोलन के करोड़ों लोगों का समर्थन मिल रहा है. भारत में इस साल भ्रष्टाचार के बड़े बड़े मामले सामने आए. लेकिन इसके बावजूद मजबूत लोकपाल को लेकर सरकार की लेटलतीफी दिखा रही है. नेताओं को अभी यह बात समझ नहीं आ रही है कि राजनीतिक पार्टियों के प्रति लोगों के विश्वास तेजी से गिर रहा है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: एन रंजन