ईरान पर पाबंदियां असर दिखा रही हैं: अमेरिका
१३ जनवरी २०११ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों की निगरानी की जिम्मेदारी उठाने वाले अमेरिकी अधिकारी ने कहा है कि दुनिया का ध्यान इस ओर गया है कि ईरान एक परमाणु ताकत वाला देश बनने की फिराक में है और उसके परमाणु कार्यक्रमों के लिए धन कहां से आ रहा है. आतंकवाद और आर्थिक खुफिया विभाग के उपमंत्री स्टुअर्ट लेवे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस जागरुकता का यह असर हुआ है कि लोग ईरान में गैस और तेल के क्षेत्र में निवेश को धीमा करने के कामों में सहयोग कर रहे हैं.
ईरान के तेल उत्पादन में बाधा पड़ने से देश के कट्टरपंथी नेता परमाणु कार्यक्रमों को धीमा करने की ओर बढ़ रहे हैं और लेवे का मानना है कि इस तरह से ईरान के रवैये में जल्दी ही बड़ा बदलाव आएगा. लेवे ने कहा, "ऊर्जा के क्षेत्र में कम होते निवेश का ईरान की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा इस बात के पक्के सबूत हैं कि ईरान के तेल और गैस क्षेत्र में विदेशी निवेश में कमी आई है."
लेवे ने याद दिलाया कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले साल जुलाई में उस कानून को मंजूरी दी थी जिसमें ईरान के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश करने वाली कंपनियों के साथ कारोबार पर पाबंदी लगाई गई. वेले ने कहा, "ईरान के ऊर्जा उद्योग पर लगाम कसने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है. लेवे के अलावा विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन समेत दूसरे अमेरिकी भी यही मानते है कि ईरान पर पाबंदियों के जरिए लगाम पड़ी रहनी चाहिए. इसी हफ्ते खाड़ी देशों के दौरे पर गई हिलेरी क्लिंटन ने ईरान के पड़ोसियों से एक साथ मिलकर उसके परमाणु कार्यक्रम का विरोध करने की गुजारिश की थी.
तेल के लिए भुगतान
अमेरिकी अधिकारियों की नजर में भारत का ईरान को पुराने भुगतान तंत्र के जरिए भुगतान करने से इंकार करना एक बड़ी घटना है. भारत ने राष्ट्रपति ओबामा के भारत दौरे के कुछ ही हफ्ते बाद यह मुद्दा उठाया हालांकि भारतीय अधिकारी इस बात से इंकार करते हैं कि इस कदम के पीछे अमेरिकी दबाव की भूमिका थी. अमेरिकी अधिकारी भी भारत पर दबाव डालने की बात से इंकार कर रहे हैं. अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि ईरान के साथ तेल कारोबार में भुगतान के लिए कौन सा तरीका अपनाया जाएगा. सीधे भुगतान ईरान के लिए मुश्किल खड़ी करेगा बेहतर तरीका यही होगा कि किसी स्थापित भुगतान तंत्र के जरिए लेनदेन किया जाए.
चौकस हुईं सरकारें
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि ईरान पाबंदियों से बच निकलने की कोशिश के बारे में जानकारी मिलने के बाद ज्यादातर वित्तीय संगठन और सराकारें ईरान के साथ कारोबार में ज्यादा चौकसी बरत रही हैं.
हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि इस बात के कम ही आसार हैं कि अमेरिकी प्रतिबंध ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बंद करा पाने में कामयाब होंगे. ये जानकार लंबे समय से ईरान की स्थिति पर निगाह रखे हुए हैं और उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि इतना सबकुछ होने के बावजूद 2009 के चुनाव में इरान के कट्टरपंथियों को ही कामयाबी मिली. विदेश नीति से जुड़े संस्थान जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ अडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर जोशुआ मुरावशिक कहते हैं, "मुझे इस बात की कोई उम्मीद नहीं कि पाबंदियों से ईरान पर आर्थिक दबाव इतना बढ़ पाएगा कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम बंद कर देगा. ईरान की सत्ता में बदलाव से ही कुछ हो सकता है और फिलहाल उसके आसार नहीं दिख रहे."
पैरिस की एक अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने पिछले साल जून में कहा था कि ईरान का तेल उत्पादन में 18 फीसदी घट गया है. संस्थान के मुताबिक फिलहाल हर दिन 7 लाख बैरल कम तेल का उत्पादन हो रहा है जो 2015 तक 31 लाख बैरल तक पहुंच जाने की उम्मीद है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार