उम्मीद और भय के बीच
पिछले साल के आखिर में यूक्रेन में पहली बार सरकार विरोधी प्रदर्शन हुआ. बाद में यह सत्ता के खिलाफ बड़ा आंदोलन बन गया. अब यूक्रेन के लोग अपनी नई सरकार बना रहे हैं.
संकट की शुरुआत
राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूरोपीय संघ की तरफ से आए प्रस्ताव को रद्द कर दिया और वहीं से संकट की शुरुआत हुई. हालांकि शुरुआती प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे.
खतरनाक प्रदर्शन
लेकिन फरवरी आते आते दंगे होने लगे. स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी. लगभग 100 लोगों की मौत हो गई. सरकार और विपक्ष ने साझा सरकार बनाने की बात कही और राष्ट्रपति यानुकोविच को हटा दिया गया. वह भूमिगत हो गए.
क्रीमिया का संकट
लेकिन नई सरकार के बाद भी संकट नहीं थमा. क्रीमिया में रूस ने जनमत संग्रह करा दिया और वहां के लोगों ने यूक्रेन से अलग होने का एलान कर दिया. फिर यूक्रेन संकट पूरे विश्व का संकट बन गया.
पुतिन की सत्ता
16 मार्च को हुई वोटिंग में क्रीमिया के लोगों ने यूक्रेन से अलग होने का फैसला किया. इसके बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने इसे रूस का हिस्सा बनाने के दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए.
पूर्वी यूक्रेन का संकट
यूक्रेन के रूसी बहुल क्षेत्रों में इसके बाद उबाल आने लगा. खारकीव और डोनेत्स्क में भी जनमत संग्रह की बात होने लगी. नाटो के मुताबिक 40,000 रूसी जवान यूक्रेन की सीमा पर तैनात हो गए.
आतंकवाद विरोधी हमला
लेकिन यूक्रेन की सेना ने 12 अप्रैल को आतंकवाद के अभियान के तहत अलगाववादियों के खिलाफ स्लावियान्स्क में सैनिक अभियान छेड़ दिया. कई दिनों तक संघर्ष चला. यूक्रेन में सत्ता बदलने के बाद यह सबसे हिंसक घटना रही.
दक्षिण में संकट
इसी बीच दक्षिणी यूक्रेन के ओडेसा में भी संकट शुरू हो गया. यहां लगी आग में 40 लोग मारे गए. इस साल अब तक पूरे यूक्रेन की स्थिति खराब रही.
यूक्रेनी जनता का "सम्मान"
इस बीच डोनेस्क और लुहांस्क ने भी यूक्रेन से अलग होने के लिए 11 मई को जनमत संग्रह कराने की बात कही. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि वह जनता के चुनाव का सम्मान करेंगे.
महीनों संकट के बाद चुनाव
लगातार संकट और राजनीतिक अनिश्चितता के बाद आखिरकार साढ़े तीन करोड़ यूक्रेनी वोट कर रहे हैं.