एयर इंडिया और स्टार अलायंस
५ अगस्त २०११एयर इंडिया काफी समय से जर्मनी के लुफ्थांसा के नेतृत्व वाले स्टार अलायंस में सदस्यता का उम्मीदवार था. उसे 2007 में सदस्यता के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन वह बार बार सदस्यता के जरूरी न्यूनतम स्तर को लागू करने में विफल रहा. हालांकि स्टार अलायंस ने बाद में भारत की सरकारी विमान सेवा की सदस्यता की संभावना से इनकार नहीं किया है लेकिन ज्यूड डॉयचे साइटुंग का कहना है कि शायद वह कभी सदस्य नहीं बनेगा.
स्टार अलायंस के सदस्य इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि एयर इंडिया ने सदस्यता की न्यूनतम शर्त पूरी नहीं की है. अब तक पहले स्वीकार किए गए किसी एयरलाइंस को नकारा नहीं गया था. लेकिन एयर इंडिया का मामला ही कुछ और है. कभी वह दुनिया की अगुआ विमान सेवा और आधुनिक भारत का प्रतीक हुआ करता था. लेकिन दशकों के कुप्रबंधन और राजनीतिक हस्तक्षेप ने कंपनी को बर्बाद कर दिया है. स्टार अलायंस को एयर इंडिया वाले फैसले से राजनीतिक फायदे की उम्मीद थी, यानी बाकी सदस्यों के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश की बेहतर संभावनाओं की. दुनिया के सबसे बड़े हवाई अलायंस के लिए फिलहाल गंभीर समस्या खड़ी हो गई है. जबकि चीन और एशिया के दूसरे हिस्सों में उसकी भारी उपस्थिति है, क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े विकास क्षेत्र भारत में उसका अपना कोई सदस्य नहीं है.
फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग ने भी लिखा है कि स्टार अलायंस भारतीय विमानन बाजार में घुसने की कोशिश में फिलहाल नाकाम हो गया है. स्टार अलायंस दुनिया की विमान कंपनियों का सबसे बड़ा गठबंधन है जिसकी 28 सदस्य कंपनियां अपने नेटवर्क और टाइम टेबल का समन्वय करती हैं. अखबार लिखता है,
इसके साथ चीन के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण विमानन बाजार में प्रतिस्पर्धी वन वर्ल्ड अलायंस की बढ़त हो गई है. ब्रिटिश एयरवेज और इबेरिया के नेतृत्व वाले गठबंधन में एयर इंडिया का प्रतिद्वंद्वी किंगफिशर शामिल है. भारत के अरबपति विजय माल्या द्वारा स्थापित एयरलाइंस का प्रबंधन एयर इंडिया की तुलना में बेहतर और फायदेमंद माना जाता है. एशिया और दक्षिण अमेरिका के तेजी से बढ़ते बाजारों में दोनों गठबंधनों में इतनी प्रतिस्पर्धा इसलिए है कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका के घरेलू बाजारों में प्रभाव क्षेत्र बंटे हुए हैं. यह सवाल अभी भी खुला है कि एशिया, अफ्रीका या तेजी से उभरते ब्रिक देशों के विमानन बाजार में कौन नेटवर्क अपना प्रभाव बढ़ा पाएगा.
तिरुवनंतपुरम के पद्मनाभन मंदिर में अकूत संपत्ति मिलने के बाद केरल सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. उसे अब गंभीर सवालों का जवाब देना है, कि संपत्ति किसकी है और उसकी सुरक्षा कैसे होगी? आरंभिक आकलन के अनुसार मंदिर में मिले हीरे जवाहरात हजारों करोड़ रुपए के हैं. लेफ्ट लिबरल साप्ताहिक डेयर फ्रायटाग लिखता है,
स्वाभाविक रूप से सोने को निकालने के प्रस्तावों पर चर्चा हो रही है. भूगर्भ, ऐतिहासिक या कलात्मक महत्व की वस्तुओं को म्यूजियम को दे दिया जाए और बाकी को बेच दिया जाए. आंकड़ों पर अटकलें लग रही हैं कि संपत्ति से या तो तीन साल तक राष्ट्रीय शिक्षा बजट को दोगुना किया जा सकेगा या 40 अत्याधुनिक क्लीनिक बनाए जा सकेंगे. लेकिन इन परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक समर्थन सीमित है. वजह:भारत में राजनीतिज्ञों के हाथों धन देना जोखिम भरा माना जाता है, इस समय चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमे सबक हैं. सचमुच भारत में भगवानों की हैसियत वैधानिक संस्था जैसी है जो सुप्रीम कोर्ट के 1999 के एक फैसले के अनुसार संपत्ति रख सकते हैं, मुकदमा कर सकते हैं और इसके लिए उनके खिलाफ भी मुकदमा हो सकता है.
भारत के बाद अब पाकिस्तान. चीन में शिजियांग क्षेत्र के अधिकारियों ने पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों को पिछले सप्ताह की हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया है. पश्चिमोत्तर चीन के शहर कशगर में हुए हमलों में 19 लोग मारे गए थे. सच्चाई यह है कि शिनजियांग के 80 लाख मुस्लिम अल्पसंख्यकों में से बहुत से महसूस करते हैं कि उन्हें चीनी दबा रहे हैं. फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने साइटुंग लिखता है,
एक बयान में कशगर के नगर प्रसासन ने कहा है कि कुछेक संदिग्धों ने अपराध कबूल किया है. इसके अनुसार गिरोह का सरगना पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन इस्लामी पूर्व तुर्केस्तान आंदोलन का सदस्य है. वहां उसने विस्फोटक और हथियार बनाने की ट्रेनिंग ली . उसके बाद वह शिनजियांग लौटा. उसके गिरोह के सदस्य कट्टरपंथी धार्मिक विचारों के हैं और जिहाद चाहते हैं. उन्होंने गुपचुप विस्फोटक बनाए और आतंकी गतिविधियों की योजना बनाई. उनका लक्ष्य चीन की राष्ट्रीय एकता को नष्ट करना और शिनजियांग को अवामी गणराज्य से अलग करना है. इसके विपरीत निर्वासन में काम कर रही संस्थाएं दमन को हिंसा की वजह मानती हैं.
पाकिस्तान के आतंकी कैंपों में उइगुर कट्टरपंथियों की ट्रेनिंग के आरोप ऐसे समय में लगाए गए हैं जब आईएसआई के प्रमुख शुजा पाशा इस सप्ताह बीजिंग के दौरे पर हैं. बर्लिन के दैनिक टागेससाइटुंग का कहना है कि पाकिस्तान और चीन के सामरिक संबंधों पर इसका साया होगा.
बीजिंग और इस्लामाबाद के रिश्ते जितने करीबी हैं उतने ही जटिल भी. चीन अपने पड़ोसी को दक्षिण एशिया में सबसे महत्वपूर्ण साथी और हथियारों का अच्छा ग्राहक मानता है. लेकिन वह पाकिस्तानी सेना में इस्लामी विस्तार वाली ताकतों पर संदेह भी करता है. इस्लामाबाद को अब चीन से अपेक्षाएं हैं क्योंकि अमेरिका ने अपनी सैनिक मदद रोक दी है. लेकिन चीन पाकिस्तानी खुफिया सेवा के प्रमुख से बदले में यह आश्वासन चाहता है कि वह किसी उइगुर को पाकिस्तानी कैंपों में नहीं रहने देगा.
अपनी 132 पेज वाली रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वाच ने आरोप लगाया है कि सेना, खुफिया एजेंसियों और अर्धसैनिक सुरक्षा बल ने बलूचिस्तान में लोगों को लापता करवाया है या उनकी गैरअदालती हत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं. आरोप नए नहीं हैं. 2004 से प्रांत के अलगाववादी इस्लामाबाद की सत्ता के खिलाफ लड़ रहे हैं. तब से सैकड़ों संदिग्ध अलगाववादी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को, जिनमें अधिकांश छात्र हैं, पकड़ा या मारा गया है. नॉय ज्यूरिषर साइटुंग का कहना है कि सुरक्षा बलों को सजा से छूट मिली हुई है.
बलूचिस्तान पाकिस्तान के क्षेत्रफल के 40 फीसदी हिस्से में फैला है, लेकिन वहां सिर्फ 80 लाख लोग रहते हैं. पाकिस्तान प्रांत के भूगैस भंडार का इस्तेमाल देश के पूरब में स्थित पंजाब प्रांत और इस्लामाबाद के इर्द गिर्द संकेंद्रित अपने उद्योग के लिए करता है. बलूचिस्तान दूसरे प्रदेशों से पिछड़ा हुआ है. इसकी एक वजह सामंतवादी संरचना है, जिसका इलाके में बोलबाला है. तो दूसरी ओर खनिज पदार्थों से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा इस्लामाबाद चला जाता है जो उसका छोटा सा हिस्सा ही इलाके के विकास और संरचना पर खर्च करता है. इसकी वजह से विद्रोहियों को समर्थन मिलता है.
और अंत में नेपाल. वहां का एक उद्यम एक खास ऑफर के साथ देश के पर्यटन बाजार में अपनी साख बनाना चाहता है. वह समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह समारोह का आयोजन कर रहा है. फाइनैशियल टाइम्स डॉयचलैंड का कहना है कि एक साल पहले गठित अपनी पर्यटन कंपनी पिंक माउंटेन के साथ सुनील बाबू पंत नेपाल के पर्यटन बाजार में अपनी जगह बनाना चाहते हैं.
यह बाजार 2006 में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद से उफन रहा है. 2010 में 5,00,000 सैलानी नेपाल गए. पर्यटन उद्योग का हिस्सा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सात फीसदी है. पंत, जो स्वयं खुलेआम समलैंगिक जीवन जीते हैं और नेपाल की संविधान सभा के सदस्य हैं, सालों से समलैंगिक समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें और उनकी ब्लू डॉयमंड सोसायटी को 2007 में तब अहम सफलता मिली जब सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को समलैंगिकों की समानता को संविधान में शामिल करने की हिदायत दी.पंत इसे अपने देश के सामाजिक खुलेपन का आइना भी मानते हैं. लोगों का समलैंगिकों के प्रति रवैया बदल रहा है, दूसरे उद्यम सहयोग के जरिए पंत के ऑफर को समर्थन दे रहे हैं.
संकलनः प्रिया एसेलबॉर्न/मझा
संपादनः ए जमाल