ऑटोमेटिक मशीन पर मानवीय त्वचा
३० अगस्त २०११दो परतों वाली त्वचा के मॉडेलों पर भविष्य में नई दवाओं और कॉस्मेटिक उत्पादों का परीक्षण किया जाएगा. अब तक इस तरह के परीक्षण जानवरों की त्वचा पर किए जाते थे और उनके नतीजे मानव त्वचा के लिए शत प्रतिशत ठीक नहीं होते थे. इसका दूसरा फायदा यह होगा कि हजारों बंदर और चूहे दवाओं के तकलीफदेह परीक्षण का शिकार होने से बच जाएंगे. जल्द ही यह मशीन तीन परतों वाली सामान्य त्वचा का उत्पादन करने लगेगी, जिसे कैंसर के रोगियों में स्किन ट्रांसप्लांटेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा.
हाइके वालेस श्टुटगार्ट के फ्राउएनहोफर इंस्टीट्यूट में जीव विज्ञान की प्रोफेसर और कोशिका विभाग की प्रमुख हैं. नाटी और छोटे छोटे बालों वाली प्रोफेसर बचपन से ही बायोलॉजी में दिलचस्पी लेती रही हैं. बताती हैं, "मैं एक छोटे से गांव में पली बढ़ी और जंगल में खेलने जाया करती थी. एक शाम मैंने घोंघे इकट्ठा किए क्योंकि मैं जानना चाहती थी कि वे कैसे प्रजनन करते हैं. फिर मेरे माता पिता ने घोंघे वाले डब्बे कमरे में ले जाने पर रोक लगा दी. पर मैं उसे चुरा कर उसे अपने कमरे में ले गई और देर तक घोंघे देखती रही."
मरीज को लाभ अहम
हाइके वालेस ने जीव विज्ञान की पढ़ाई की. लेक गार्डा पर सर्फिंग की ट्रेनिंग देकर पैसे कमाए और अपनी पढ़ाई पूरी की. और उसके बाद मार्टिन्सरीड के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में वाइरस पर शोध कर डॉक्टरेट की डिग्री ली. एक समय तो ऐसा भी था जब वे बढ़ई बनने की सोच रही थी क्योंकि कोशिकाओं पर शोध उन्हें बहुत व्यावहारिक उपयोग वाला नहीं लगता था. कहती हैं, "मेरे लिए सबसे बड़ा सवाल यह रहा है कि यदि मुझे कुछ आज पता है तो उससे मरीज को क्या लाभ? क्योंकि जानकारी को मरीज के बिस्तर तर व्यवहार में पहुंचने में काफी समय लगता है. यहीं मैं अपनी भूमिका देखती हूं जो आधारभूत शोधकर्ताओं को समझता है और उनकी जानकारी को डॉक्टरों के साथ मिलकर व्यवहार में लागू कर सकता है."
पढ़ाई पूरी करने के बाद हाइके वालेस हनोवर के मेडिकल कॉलेज में जूनियर प्रोफेसर बन गई. टिशू इंजीनियरिंग विभाग में उन्होंने जीवित कोशिकाओं से फाइबर बनाने पर काम किया, खासकर ट्रांसप्लांटेशन के लिए. उन्होंने मरीजों की कोशिकाओं से एयर ट्यूब और नस के वॉल्व बनाने पर भी शोध किया. धमनियों की कोशिका बनाने के लिए एक बायो रिएक्टर पर काम करते हुए उन्हें महसूस हुआ कि टिशू इंजीनियरिग की वर्तमान प्रक्रिया काफी मुश्किल है, उत्पादन बहुत महंगा है और बड़ी मात्रा में उत्पादन भी नहीं होता. वे बताती हैं, "इस तरह यह विचार पैदा हुआ कि हम एक ऐसी मशीन बनाएं जो फाइबर का पूरी तरह ऑटोमेटिक उत्पादन करे ताकि सस्ता और स्तरीय उत्पादन हो सके."
ऑटोमेटिक त्वचा
हाइके वालेस ने श्टुटगार्ट के फ्राउएनहोफर इंस्टीच्यूट में इंजीनियरों और प्रकृति वैज्ञानिकों की एक टीम जुटाई. उन्होंने मानवीय त्वचा बनाने के लिए एक प्रोडक्शन लाइन विकसित की. अप्रैल 2011 से मशीन काम करने लगी है. पहले वह जांच के लिए लिए गए फाइबर से कोशिकाओं को अलग करती है, दूसरे चरण में इन्क्यूबेटर में उनके विकास की निगरानी करती है और तीसरे चरण में कोशिकाओं को बेस के साथ मिलाकर उसके विकास की प्रक्रिया का निर्देशन करती है. यह प्रक्रिया तीन सप्ताह चलती है. महीने में डाक टिकट के बराबर 5,000 त्वचा के टुकड़ों का उत्पादन होता है. विश्व में पहली बार पूरी तरह ऑटोमैटिक तरीके से. वालेस कहती हैं, "यह शोधकर्ता के रूप में मेरे जीवन का सबसे सुंदर क्षण था, इस मशीन के सामने खड़े होकर देखना कि यह सचमुच चमड़ा बना सकता है."
अब हाइके वालेस का लक्ष्य है इस मशीन को बाजार के लायक बनाना. ताकि यह मशीन खरीदने के लायक हो और अस्पतालों के चर्म रोग विभागों में ट्रांसप्लांटेशन के लिए त्वचा बनाए. हाइके वालेस की टीम शरीर को रक्त आपूर्ति बेहतर बनाने के लिए ट्रांसप्लांट पर भी काम कर रही है. वालेस कहती हैं, "मेरी इच्छा है कि हम दिखा सकें कि यह प्लैटफॉर्म तकनीकी है जो विभिन्न प्रकार के ट्रांसप्लांटेशन में सक्षम हैं."
हाइके वालेस 2009 से वुर्त्सबुर्ग विश्वविद्यालय में टिशू इंजीनियरिग और रिजेनेरेटिव मेडिसीन चेयर की प्रमुख हैं. इसके अलावा वे जर्मन शोध मंत्रालय की सलाहकार और डॉयचे एथिकराट की सदस्य भी हैं. यह जर्मन संगठन शोध में नैतिकता पर नजर रखता है. उनका कहना है, "हम सरकारी अनुदान पाते हैं. जिन चीजों के लिए अनुदान मिलता है उसका लाभ भी लोगों को मिलना चाहिए, जो कर देते है." हाइके वालेस मिट्टी से जुड़ी एक व्यावहारिक शोधकर्ता हैं जो आगे की सोचती हैं और चीजों को आगे बढ़ाती हैं. शोध की व्यस्तता के बावजूद वे साइकल चलाने, जासूसी उपन्यास पढ़ने और दो वयस्क बच्चों के लिए भी समय निकाल ही लेती हैं.
रिपोर्ट: लीडिया हेलर/मझा
संपादन: आभा एम