"कंधार में कमांडो कार्रवाई की तैयारी थी"
२५ दिसम्बर २००९बाद में हफ़्ते भर बाद ही इस संकट को ख़त्म किया जा सका और इसके बदले भारत को तीन कुख्यात आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा. 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली आ रहे आईसी 814 विमान का अपहरण कर लिया गया था और हफ़्ते भर बाद 31 दिसंबर को ही संकट ख़त्म हो पाया.
अपहर्ताओं के साथ प्रमुख वार्ताकार की भूमिका निभाने वाले ख़ुफ़िया ब्यूरो के अजीत दोभाल ने बताया कि वे सात दिन बेहद तनाव भरे थे और इस दौरान धार्मिक कार्ड खेल कर तालिबान को भी साथ मिलाने की कोशिश की गई. विमान में 160 से ज़्यादा मुसाफ़िर सवार थे.
दोभाल ने बताया कि एक वक्त पर उन्होंने कमांडो कार्रवाई की योजना बनाई और इसके लिए तालिबान से मदद की गुहार लगाई. उन्होंने कहा, "हमने तालिबान को भरोसे में लेने की कोशिश की. हमने उनसे कहा कि हम कार्रवाई करके विमान को ख़ाली करा सकते हैं. हमने उनसे कहा कि यह ग़ैर इस्लामी कार्रवाई है."
दोभाल ने कहा कि उन्होंने तालिबान से मदद की गुहार लगाते हुए कहा कि अगर वे मदद करेंगे तो भारत हमेशा उनका शुक्रगुज़ार होगा. लेकिन उनका एक ही जवाब था कि उनकी धरती पर ख़ून नहीं बहना चाहिए. इसलिए उन्होंने हमें कार्रवाई की इजाज़त नहीं दी.
पाकिस्तान के पांच अपहर्ताओं ने 24 दिसंबर 1999 को भारत के विमान का अपहरण कर लिया था. उनके नाम इब्राहीम अतहर, शाहिद अख़्तर सैयद, सनी अहमद क़ाज़ी, मिस्री ज़हूर इब्राहीम और शाकिर थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या तालिबान को मदद के बदले कुछ देने का वादा किया गया था, दोभाल ने बताया कि ऐसी चीज़ें हमेशा की जाती हैं. उन्होंने कहा, "हमने उनसे कहा कि अफ़ग़ानिस्तान और भारत दोस्त हैं. वग़ैरह वग़ैरह. हमारे सामने स्थिति को बदलने की चुनौती थी."
उन्होंने कहा कि तालिबान को भरोसे में लेना बहुत ज़रूरी था क्योंकि हम उनके इलाक़े में थे. दोभाल ने कहा, "विमान के चारों ओर टैंक थे. तालिबान अपहृत विमान की सुरक्षा कर रहे थे. दरअसल वे तो हाइजैकरों की सुरक्षा कर रहे थे. लेकिन हम कुछ नहीं कर पा रहे थे."
दोभाल को इस बात का मलाल है कि विमान अपहरण के इस मामले को सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठीक से पेश नहीं किया. भारत को बंधक संकट ख़त्म करने के लिए ख़ूंख़ार आतंकवादियों मौलाना मसूद अज़हर, शेख़ उमर और मुश्ताक़ ज़रगर को रिहा करना पड़ा. इस दौरान अपहर्ताओं ने दुबई में रुपिन कत्याल नाम के एक मुसाफ़िर की हत्या कर दी.
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः एम गोपालकृष्णन