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कचरे पर बढ़ती जागरुकता

५ अक्टूबर २०१२

विकासशील देशों में कचरा एक बड़ी समस्या बन गया है. जैसे जैसे विकास हो रहा है और लोगों का जीवन स्तर बढ रहा है, कूड़ा कचरा भी बढ़ रहा है. लेकिन कचरे से कैसे निबटा जाए यह समस्या बनी हुई है.

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तस्वीर: dapd

पुराने जमाने में कचरे में आम तौर पर सिर्फ जैविक कूड़ा होता था जो जमीन में गल जाता था, लेकिन आधुनिक विकास के साथ कचरे में रसायन का अनुपात बढ़ रहा है. वह एक ओर स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है तो दूसरी ओर कचरे में फेंक दी जाने वाली बहुत सी चीजों का फिर से इस्तेमाल संभव है. उनकी रिसाइक्लिंग कर संसाधनों की बर्बादी को रोका जा सकता है और पर्यावरण को संजोया जा सकता है.

भारत जैसे देशों में पहले थैले के रूप में ऐसी चीजों का इस्तेमाल होता था जो नुकसानदेह नहीं थे. दही के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता था तो सामान ढोने के लिए जूट के बैग का. प्लास्टिक ने स्थिति बदल दी है और उसके साथ एक समस्या भी पैदा हो गई है क्योंकि प्लास्टिक कभी गलता नहीं. उसका रिसाइक्लिंग ही संभव है, लेकिन उसे जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं. अब प्लास्टिक पर रोक लगाकर समस्या से निबटने की कोशिश हो रही है.

इंडोनेशिया में स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर कचरे से निबटने के लिए छोटा प्लांट लगाया जा रहा है ताकि कचरे को अलग कर जैविक हिस्से को सड़ने दिया जाए और रासायनिक हिस्से को अलग कर दिया जाए. इसमें वहां जाने वाले पर्यटकों की भी मदद ली जा रही है, क्योंकि कचरा उन्हें भी परेशान करता है.

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तस्वीर: DW

इस परियोजना का एक लाभ यह भी है कि लोग कचरे के प्रति जागरूक हो रहे हैं. उन्हें मुश्किलों का पता चल रहा है. किशोरों को सिखाया जाता है कि वे कचरा कम करने की कोशिश करें और रासायनिक कचरे से बचें. लेकिन इस राह में मुस्किलें भी हैं क्योंकि कुछ लोग बड़ा प्लांट लगाकर कमीशन कमाना चाहते हैं.

इंडोनेशिया के कचरा निबटाने के प्रयासों के बारे में आप विस्तार से जानेंगे डॉयचे वेले के विज्ञान शो मंथन में भारत के टेलिविजन चैनल डीडी-नेशनल पर शनिवार को साढ़े दस बजे प्रसारित किया जाएगा.

मंथन के पांचवें एपीसोड में संसाधनों की कमी के कारण कचरे की रिसाइक्लिंग के बढ़ते महत्व की भी चर्चा होगी. प्राकृतिक संसाधन घट रहे हैं. कच्चा माल महंगी होती जा रही है और उसे निकालने का खर्च भी बढ़ रहा है. एल्यूमिनियम जैसी धातु को रिसाइकल करने पर 95 फीसदी ऊर्जा और 60 फीसदी समय बचता है.

दुनिया भर में अब स्वयंसेवी संस्थाओं के अलावा सरकारें भी वन्यजीवों की सुरक्षा में लगी हैं. इसके अलावा लुप्त होने के खतरे में पड़े जीवों को बचाने की खास कोशिश की जा रही है. मसलन कोस्टा रिका में अमेरिकी तेंदुओं को बचाने के लिए उनकी गिनती की जा रही है. कोर्कोवादो के नेशनल पार्क में इसके लिए तकनीक का भी सहारा लिया जा रहा है. दूरदर्शन पर हर शनिवार को प्रसारित डॉयचे वेले के विज्ञान शो मंथन के पांचवें एपीसोड में आप इन प्रयासों के बारे में भी विस्तार से जानेंगे.

एमजे/पीई