कभी हरा भरा था सहारा मरुस्थल
३ दिसम्बर २०१०अफ्रीका महाद्वीप में 9,400,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैले रेत के इस महासागर को अरबी भाषा में अस सहारा अल कुब्रा अर्थात महान रेगिस्तान कहा जाता है. गर्म रेत के विशाल टीलों वाले दुनिया के सबसे बड़े मरुस्थल सहारा में यदि 5000 साल पुराने कब्रिस्तान में एक औरत की अस्थियां मिलीं, जिसे उसके दो बच्चों के साथ दफनाया गया था, तो आप क्या कहेंगे? चमत्कार! नहीं, इससे साफ है कि सहारा में कभी जीवन था. शोधकर्ता तो यहां तक कह रहे हैं कि सहारा रेगिस्तान कभी हरा भरा और उपजाऊ था.
क्या से क्या हो गयाः सहारा रेगिस्तान के चप्पे चप्पे से परिचित जानकारों का कहना है कि 6000 साल पहले तक वहां हरियाली थी. उत्तरी अफ्रीका का बड़ा हिस्सा पेड़ों और झीलों से भरा था. स्वाभाविक तौर पर क्षेत्रफल में आस्ट्रेलिया से बड़े इस इलाके पर जीवन भी था.
ऐसे हुआ खुलासाः शिकागो विश्वविद्यालय का एक अनुसंधान दल दक्षिण पूर्वी अल्जीरिया में डायनोसोर के अवशेष तलाश रहा था. तभी उन्हें एक विशालकाय कब्रिस्तान का पता चला. विस्तृत खोज पर इंसानों के साथ ही पशुओं, बड़ी मछलियों और मगरमच्छों के अवशेष भी मिले. नेशनल जियोग्राफिक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 2005 और 2006 में भी इस स्थान पर 200 कब्रों का पता लगाया गया था.
डायनासोर भी थेः सहारा के हरे भरे नाइजर में जीवाष्मों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों को सहारा रेगिस्तान में मिले जीवाश्मों से मांसाहारी डायनासोर के दो नए प्रकारों की पहचान की है. जिनके बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी. 2008 में एक्टा पैलेंटोलोजिका पोलोनिका जर्नल में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि एक डायनासोर शायद जीवित जानवरों का शिकार करता था और दूसरा मृत और अधखाए प्राणियों को खाता था. दोनों बड़े मांसाहारी समूहों का प्राचीन रिकॉर्ड बताता है कि ये अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत में कम से कम पांच करोड़ साल पहले रहे होंगे.
दूसरे प्रकार का नाम ईओकारकैरिया डाइनोप्स रखा गया है, जिसके दांत ब्लेड की तरह तेज थे. इससे अनुमान जताया गया है कि वह जीवित जानवरों का शिकार करता था. क्रिप्टोप्स पैलिओस नामक डायनासोर की लंबाई 25 फीट रही होगी और आधुनिक लकड़बग्घे की तरह यह भी मुर्दाखोर था.
सहारा रेगिस्तान की तलछटी की परतों के अध्ययन से विशेषज्ञों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में अधिक समय नहीं लगा कि यह मरुस्थल कभी हरा भरा था. वहां उपजाऊ मिट्टी होने के प्रमाण भी मिले हैं. एक शोधकर्ता सेरेनो डेविट ने बताया कि पूरे क्षेत्र में बड़ी तादाद में इंसानों के साथ ही जानवरों की अस्थियां बिखरी हैं. इससे साफ है कि वहां कभी घनी आबादी भी रही होगी.
कौन थे सहारा निवासीः शोधकर्ता सहारा में दो अलग प्रकृति के समूहों के पनपने की बात करते हैं. पहले समूह में किफियान (7700 बीसी से 6200 बीसी) का नाम लिया जाता है. माना जाता है कि ये लोग सहारा में लगभग 10,000 से 8000 साल पहले रहे होंगे. शोध में यह भी पता चला है कि किफियान लोग काफी स्वस्थ्य और लंबे चौड़े होंगे. इनकी औसतन लंबाई 6 फीट आंकी गई.
दूसरा समूह, टेनेरियन्स (5200 बीसी से 2500 बीसी) का बताया गया है. ये लोग तुलनात्मक रूप से कम हृष्ट पुष्ट और शारीरिक आकार में छोटे थे. ये 7000 और 4500 साल पहले वहां बसते थे. यह कम होते संसाधनों की ओर इशारा करता है.
टेनेरियन्स को लेकर एक खास बात यह पता चली है कि ये आभूषण पहना करते थे. कब्र में मिली एक युवती के कंकाल के हाथ में ब्रेलसेट मिला है, जो जंगली घोड़े की हड्डियों का बना था. एक कब्र में पुरुष को मिट्टी के बने कछुए पर बैठा पाया गया. अंदाजा लगाया जाता है कि उसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के तहत दफनाया गया होगा.
कैसे है संभवः एरिजोना विश्वविद्यालय के जैव पुरातत्वविद चेरिस स्टोजांकोस्वास्की का कहना है कि एकबारगी तो विश्वास नहीं होता कि दो भिन्न तरह की सभ्यताएं सहारा रेगिस्तान में पनपी होंगी. दो अलग तरह के लोग, उनकी शारीरिक बनावट के साथ ही रहने के तौर तरीके और खान पान में भी अंतर देखा गया है.
स्टोजांकोस्वास्की ने बताया कि कब्र में पुरुष को देखकर साफ तौर पर लगता है कि उसके पैर काफी मजबूर और लंबे रहे होंगे. वह किफियान था. उसका खान पान काफी पौष्टिक रहा होगा.
दूसरी तरफ, पशुओं की अस्थियों के बारे में हाथियों, जिराफ, आदि की अवशेषों का अध्ययन करने वाली वियना के म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री की पुरातत्वविद हेलेन जोउसे ने चौंकाने वाली बात कही कि वहां मिली पशुओं की हड्डियां वर्तमान में केन्या के सेरेनगेटी में पाए जाने वाले पशुओं से मिलती है.
कैसे सूखा सहाराः अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि हरा भरा सहारा कैसे रेगिस्तान बन गया? यह अचानक हुआ या वर्षों पुरानी प्रक्रिया का परिणाम? इस बारे में तरह की बातें कही गई है. वैज्ञानिकों के एक धड़े का कहना है कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे से अंतर से ऐसा हुआ था. कुछ विशेषज्ञ इसे सदियों की प्रक्रिया करार दे रहे हैं. लेकिन चर्चा इस बात की भी है कि पर्यावरण के साथ मनुष्यों की छेड़खानी और ग्लोबल वार्मिंग भी इसकी वजह हो सकती है.
रिपोर्टः संदीपसिंह सिसोदिया, वेबदुनिया
संपादनः ए जमाल