कसाब की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
२९ अगस्त २०१२जस्टिस आफताब आलम और सीके प्रसाद की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कसाब की उस अपील को खारिज कर दिया कि उसका मुकदमा निष्पक्ष नहीं चला. पीठ ने कहा, "हमारे पास मृत्युदंड देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है." अदालत ने कहा, "कसाब के खिलाफ सबसे बड़ा और मुख्य आरोप भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना साबित हो चुका है."
कसाब मुंबई के आर्थर रोड जेल में बंद है. उस पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के अलावा हत्या और आतंकवाद फैलाने के आरोप भी साबित हो चुके हैं. मुंबई की अदालत ने 2010 में ही उसे मौत की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.
पक्के सबूत
अदालती मुकदमे के दौरान सरकारी पक्ष ने अंगुलियों के निशान, डीएनए, चश्मदीदों की गवाही और टेलीविजन फुटेज को सबूतों के तौर पर पेश किया. इसमें मुंबई के मुख्य रेलवे स्टेशन पर कसाब को अत्याधुनिक बंदूक से गोलियां चलाते हुए दिखाया गया है.
कसाब ने अपनी सजा को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि उसके साथ निष्पक्ष न्याय नहीं हुआ, "मैं लोगों को मारने का दोषी हो सकता हूं और आतंकवादी गतिविधि में शामिल होने का भी. लेकिन मैं किसी राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी नहीं हूं." 25 साल के कसाब का दावा था कि उसके कम उम्र को देखते हुए रियायत की जानी चाहिए. उसने यह भी कहा कि उसके आकाओं ने उसका ब्रेनवॉश कर दिया, जिसके बाद वह उनके निर्देशों पर किसी रोबोट की तरह काम कर रहा था. उसका कहना था कि मुकदमे की पैरवी के लिए ठीक वकील नहीं मिला और उस पर लगाए गए कई आरोप अब भी साबित नहीं हो पाए हैं.
कसाब की पैरवी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को नियुक्त किया. रामचंद्रन ने फैसले के बाद कहा, "मैं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आगे सिर झुकाता हूं."
कैसा था हमला
2008 के नवंबर मे 10 आतंकवादियों ने समुद्री रास्ते से भारत के आर्थिक शहर मुंबई पर धावा बोला और कुछ जगहों पर सार्वजनिक गोलीबारी करने के बाद होटलों और एक यहूदी ठिकाने में छिप गए. वे वहां भी लगातार लोगों की हत्या करते रहे. पूरी दुनिया की सांसें फूल गईं क्योंकि यह हमला लगभग तीन दिनों तक चलता रहा. इस बीच टेलीविजन चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण भी हुआ, जिससे आतंकवादियों को निशाना तैयार करने में मदद मिली.
26/11 के नाम पर मशहूर हुए इस हमले के दौरान नौ आतंकवादी मारे गए, जबकि 166 शहरियों को अपनी जान गंवानी पड़ी. हमले के शुरू में ही कसाब घायल अवस्था में पकड़ा गया और उसने पुलिस के सामने इकबालिया बयान में इस बात को मान लिया कि वह पाकिस्तान का नागरिक है और वहां जमा आतंकवादी सरगनाओं के कहे में आकर भारत में हमला किया. उसके इस बयान को रिकॉर्ड किया गया था. मुकदमे के दौरान इस वीडियो को भी साक्ष्य बनाया गया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकारी वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा, "वादी ने अपनी तरफ से सभी संभव पक्ष रखे लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. अदालत ने उन पर विचार किया लेकिन आखिरकार उसकी याचिका खारिज कर दी गई." इस मामले में दो और आरोपी फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अंसारी को बरी कर दिया गया.
भारत पाकिस्तान कोण
पाकिस्तान ने शुरू में इस हमले में हाथ होने से पूरी तरह इनकार किया लेकिन सबूतों और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद उसने माना कि इसके कुछ हिस्से की साजिश पाकिस्तान की धरती पर रची गई. हालांकि उसने यह नहीं माना कि पाकिस्तान सरकार का कोई कारिंदा इसमें शामिल था. भारत का आरोप है कि लश्कर ए तैयबा के सरगना हाफिज सईद ने इस हमले की साजिश रची. मामले में पाकिस्तान में सात लोगों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है लेकिन कार्रवाई बहुत आगे नहीं बढ़ी है. सईद को कुछ दिनों के लिए नजरबंद किया गया पर बाद में छोड़ दिया गया.
इस मामले में अमेरिका में एक प्रमुख आरोपी डेविड हेडली को पकड़ा गया है. वह अमेरिकी जेल में बंद है. उस पर आरोप है कि मुंबई के आतंकवादी हमलों की साजिश उसने पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के साथ मिल कर रची. कसाब को मृत्युदंड मिलने के बाद भी पाकिस्तानी नागरिक को फांसी पर चढ़ाना भारत के लिए आसान नहीं होगा. खास तौर पर जब सरबजीत सिंह सहित भारत के कुछ लोगों को भी पाकिस्तान में मौत की सजा मिली है और वे वहां की जेलों में बंद हैं.
भारत में मृत्युदंड
फांसी का कानून होने के बाद भी भारत में आम तौर पर फांसी की सजा नहीं दी जाती. पिछले 17 साल में सिर्फ एक बार धनंजय चटर्जी नाम के एक 39 वर्षीय शख्स को फांसी की सजा दी गई है. 2004 में चटर्जी को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दी गई. उस पर एक 14 साल की बच्ची के बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने का आरोप साबित हो चुका था.
इससे पहले 1995 में ऑटो शंकर नाम के शख्स को तमिलनाडु में फांसी पर चढ़ाया गया था. 1975 से 1991 के बीच भारत में 40 लोगों को फांसी दी गई. 1947 में आजादी के बाद से भारत में फांसी के मामलों पर विवाद है. सरकारी आंकड़ों का दावा है कि 52 लोगों को इस दौरान मृत्युदंड दिया गया, जबकि कई सामाजिक संगठनों का कहना है कि 1000 से ज्यादा लोगों को मौत की सजा दी गई.
कसाब के पास बचे हुए रास्ते
भारतीय कानून के जानकारों का कहना है कि फांसी की सजा के बाद कसाब सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है. अगर वह भी खारिज हो जाती है, तो उसे भारत के राष्ट्रपति के पास रहम की अपील करनी होगी.
भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने लंबे समय से फांसी के लंबित पड़े मामलों को साफ करने की कोशिश की थी और उन्होंने 19 लोगों को जीवनदान दे दिया था. इसके बाद नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अब तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया है.
रिपोर्टः ए जमाल (रॉयटर्स, एएफपी, डीपीए, पीटीआई)
संपादनः आभा मोंढे