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काला जादू पर रोक का विधेयक अधर में

६ सितम्बर २०११

पुणे में हाई सोसाइटी के अपार्टमेंट्स में रहने वाले मैनेजर, इंजीनियर, कंप्यूटर विशेषज्ञ हैं. यहां कई अपार्टमेंट्स के दरवाजों पर आपदाओं को रोकने के लिए काली गुड़ियाएं टांगी गई हैं. अंधविश्वास का यह सबसे छोटा पहलू है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

महाराष्ट्र सरकार एक बार फिर इस कवायद में जुट गई है कि नरबलि, जादू टोना और काले जादू जैसी बुरी प्रथाओं को रोकने के विधेयक पर विधानसभा में बहस कर उसे पारित किया जाए. विधानसभा के मॉनसून सत्र में इस पर बहस होती रही लेकिन सहमति नहीं बन पाई.

सांप के जहर को उतारने के लिए मंत्र प्रयोग, पति या पत्नी पाने के लिए जादू-टोना, इस पर रोक लगाने के लिए महाराष्ट्र में 16 साल से बहस चल रही है, लेकिन मानव बलि, दूसरे अमानवीय कृत्य और काले जादू पर रोक लगाने और उसके उन्मूलन के लिए प्रस्तावित विधेयक पर सहमति नहीं बन पाई है. महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉक्टर नरेन्द्र दाभोलकर ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "पिछले 16 साल से हम इस तरह के कानून की मांग कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही अंधविश्वास है, वह पूरे देश में है. लेकिन महाराष्ट्र में इसके खिलाफ काम चल रहा है और इसलिए खुलेआम लोगों का शोषण करने वाले जादू टोने और अंधविश्वास के बारे में लोगों में काफी जागृति है."

Flash-Galerie Sri Kamadchi Ampal Tempel, Hamm-Uentrop
कई तरह की हिला कर रख देने वाली प्रथाएं भारत में मौजूद हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa

पूजा पर रोक का डर

कुछ हिंदू राष्ट्रवादियों को डर है कि कानून बन जाने से सीधे सीधे धार्मिक विश्वासों, हवन, पूजा पर भी रोक लग सकती है. हिंदू जनजागृति समिति ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "अगर बिल पास हो जाता है तो हिंदू धर्म में किए जाने वाले कर्मकांड गैर जमानती अपराध हो जाएंगे. संभव है कि पूजा और होम हवन भी अपराध में गिने जाने लगें. धार्मिक संगठन और ट्रस्टी इस बिल के दायरे में आ सकते हैं. इसलिए सभी हिंदुओं, मंदिर के ट्रस्टियों और धार्मिक संगठनों से अनुरोध किया जाता है कि वे बिल का विरोध करें."

बेबुनियाद विरोध

इसके बाद वेबसाइट पर विरोध करने के उपाय बताए गए हैं. डॉक्टर दाभोलकर कहते हैं, "यह बिल अभी तक इसलिए पास नहीं हो सका है क्योंकि बीजेपी और शिवसेना अडंगा लगा रहे हैं. उन्हें लगता है कि इससे हिंदू भावनाएं आहत होंगी लेकिन ऐसा नहीं है. भारतीय संविधान धर्म की स्वतंत्रता देता है तो यह कानून उसे कैसे हटा सकता है. और इस कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है. तो कुल मिला कर इस तरह का बेबुनियाद विरोध है और कांग्रेस की सरकार के पास राजकीय इच्छाशक्ति की कमी है. इसलिए यह विधेयक अभी भी पारित नहीं हो सका है."

महाराष्ट्र में 10-11 आदिवासी बहुल इलाके हैं, जहां डाकिण यानी चुड़ैल का अंधविश्वास है, जिसके नाम पर महिलाओं पर अत्याचार होता है. कई मामलों में उनकी जान भई ले ली जाती है. वैसे तो इसके खिलाफ कानून है लेकिन वह खास किस्म के जादू टोने के लिए ही है. डॉक्टर दाभोलकर के मुताबिक इसे व्यापक बनाया जाना चाहिए.

Hindu devotees perform religious rituals as they offer prayers to the Sun God on the banks of the River Ganges during Chhat festival in Allahabad, India, Tuesday, Nov. 8, 2005. The Chhat rituals are observed mainly in the northern part of the country. (AP Photo/Rajesh Kumar Singh)
तस्वीर: AP

कई बदलाव हुए

डॉक्टर दाभोलकर बताते हैं, "13 अप्रैल 2003 को यह प्रस्ताव सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार के सामने रखा गया था लेकिन सरकार ने ही इसका विरोध किया. इस कारण इसमें बदलाव किए गए. बदलाव किए जाने के बाद भी आठ साल से इस पर बहस चल रही है. हम कहना चाहते हैं कि विधेयक को वर्तमान बिंदुओं के साथ पारित होने दिया जाए और जरूरत पड़ने पर इसमें आगे बदलाव किए जा सकेंगे."

पहले इस विधेयक को अंधश्रद्धा निर्मूलन विधेयक के नाम से लाया गया था. लेकिन अंधश्रद्धा शब्द पर सवाल उठाए गए. विधेयक की भाषा और प्रावधानों पर भी ऐतराज जताया गया. इसके बाद अंधश्रद्धा को हटा कर जादू टोना शब्द वहां डाला गया. 2009 में चुनाव के कारण यह विधेयक अधर में रह गया.

जादू टोना जारी

मई 2011 में महाराष्ट्र पुलिस ने बताया कि उन्होंने नाशिक के पास 7 साल की बच्ची को भगाने और उसे मारने की कोशिश को विफल कर दिया. छिपे हुए खजाने को ढूंढने के लिए इस बच्ची की बलि देने की योजना थी. इस तरह 2010 में मुंबई से 675 किलोमीटर पूर्व के एक गांव में एक दंपत्ति को पकड़ा गया जिन्होंने पांच बच्चों की इसलिए बलि दे दी कि एक तांत्रिक ने उनसे कहा था कि इससे संतानहीन दंपत्ति को बच्चा हो जाएगा. 

इन खबरों के बावजूद हिंदू जनजागृति समिति की वेबसाइट पर बिल का विरोध किया जा रहा है. वेबसाइट पर लिखा है, "समाज में अंधविश्वास फैले हुए हैं, यह सरकार का आधारहीन दावा है. यह कानून पुलिस को मंदिरों में रहने वाले संतों से अहम बना देती है." वहीं डॉक्टर दाभोलकर का कहना है, "अगर आप अपनी विपदा दूर करने के लिए तिराहे पर नींबू मिर्ची रखते हैं तो यह आपकी अज्ञानता है, लेकिन अगर आप यह कहें कि इसके कारण कोई मर जाएगा यह कह कर दहशत फैलाना और मानसिक, आर्थिक शोषण करना गुनाह है. अगर कोई व्यक्ति अंधविश्वास के कारण दूसरे व्यक्ति को मानसिक, शारिरिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाता है तो वह गुनाह है."

 सजा का प्रावधान

जादूटोना करके किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने का गुनाह साबित होने पर 6 महीने से 7 साल सश्रम कारावास और 5,000 से 50,000 रुपये तक के आर्थिक दंड का प्रावधान है. उधर अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वाली इंडियन रैशनलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष सानाल एडमारुकू इस बिल में कोई नई बात नहीं देखते, लेकिन कहते हैं, "अंधविश्वासों का खत्म होना जरूरी है और इसके लिए सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश में प्रभावी कानून की जरूरत है. अज्ञान के खिलाफ लड़ाई बहुत जरूरी है."

डॉक्टर दाभोलकर को उम्मीद है कि यह बिल अब जल्दी ही पारित हो जाएगा.

रिपोर्टः आभा मोंढे/एजेंसियां

संपादनः महेश झा