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कितनी सफल होगी इमरान खान की बचत नीति

एस खान, इस्लामाबाद
३ सितम्बर २०१८

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने खर्च कम करने के लिए छोटा सा घर लिया. वीआईपी कल्चर और सुरक्षा पर होने वाले खर्च पर भी लगाम कसी. लेकिन इन तमाम कदमों के बीच अर्थशास्त्रियों को खान की यह नीति कुछ ठोस नहीं लगती.

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Pakistan Islamabad Imran Khan
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Mughal

पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में खर्च में कटौती की एक नई मुहिम छेड़ दी है. मकसद है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद लेने से बचना. इस मुहिम के तहत सरकार अब वीआईपी प्रोटोकॉल पर कम खर्च करेगी. आम जनता में इस बात को लेकर उत्साह है क्योंकि पिछली सरकारों में नेताओं के खर्चे, जनता की आंखों में खटकते रहे हैं. लेकिन अर्थशास्त्री इसे महज एक लोकलुभावन नीति और पॉपुलिस्ट स्टंट मान रहे हैं. वे आलोचनात्मक स्वर में कहते हैं कि सरकार लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसा कर रही है, ताकि गंभीर आर्थिक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके.

हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान में किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह की मुहिम छेड़ी है. इसके पहले भी 1980 के दशक में सैनिक तानाशाह जिया उल हक ने सत्ता संभालने के बाद उदार शासन के विरोध में "इस्लामिक सादगी" का विचार पेश किया था. कुछ इसी तरह की बात पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जुनेजो और नवाज शरीफ के शासन काल में 1980 और 1990 के दशक में सामने आई थी. लेकिन इन कोशिशों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला.  

पाकिस्तान का आर्थिक संकट

पाकिस्तान पर तकरीबन 95 अरब डॉलर का अनुमानित कर्ज है. देश को हर साल कर्ज भुगतान के लिए 24 अरब डॉलर की आवश्यकता होती है. वहीं देश का व्यापार घाटा भी 2018 के वित्तीय वर्ष में 37.7 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है. इसी वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान ने 61 अरब डॉलर आयात पर खर्च किया है. दिलचस्प है कि आयातित माल में बड़ा हिस्सा ऐसे माल का है जिसका इस्तेमाल चीन के नेतृत्व वाली पाकिस्तान-चाइना इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना में होना है.

देश के कारोबारी भी अब ये शिकायत कर रहे हैं कि सरकार चीन की कंपनियों को ज्यादा लाभ दे रही है. चीन के सस्ते सामानों की बाजारों में बाढ़ आ गई है जिसके चलते स्थानीय कारोबार प्रभावित हो रहा है. इन सब मुद्दों पर बात करने की बजाय प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहले भाषण में सरकारी अधिकारियों के खर्चों में कटौती की बात कही है. प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान ने कहा था कि वह प्रधानमंत्री आवास की बजाय तीन कमरों वाले छोटे घर में रहेंगे और सरकारी खर्चों को कम करेंगे. देश के पूर्व वित्त सचिव वकार मसूद मानते हैं कि ये तरीके देश की आर्थिक समस्याओं को नहीं सुलझा सकते.

सैन्य खर्च का क्या?

इन सारी बातों के बीच इमरान खान ने सैन्य बजट को लेकर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. सैन्य बजट सरकार के लिए दूसरा सबसे बड़ा खर्च है. भारत, अफगानिस्तान, चीन और ईरान के साथ सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान का रक्षा बजट बहुत बड़ा है. देश हर साल इस पर तकरीबन 12 अरब डॉलर खर्च करता है.

पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार एक्सप्रेस टि्ब्यून के पूर्व संपादक मोहम्मद जियाउद्दीन कहते हैं कि पाकिस्तान की संसद में रक्षा बजट पर कोई चर्चा नहीं होती. यहां के सैन्य अधिकारी टैक्स कम देकर कई सौ कारोबार चला रहे हैं. लेकिन इमरान खान की खर्च कटौती नीति उन लोगों को इससे बाहर रखती है." एक अन्य अर्थशास्त्री अजरा तलत सईद मानते हैं कि कोई भी सरकार इतनी शक्तिशाली नहीं है कि वह सैन्य बजट को कम कर सके.

चीन करेगा पाकिस्तान की मदद?

पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में पिछले कुछ समय से तनाव नजर आ रहा है. ऐसे में संभव है कि चीन देश की नई सरकार के साथ सहयोग बढ़ाने की पेशकश करे. लेकिन इस पर भी मतभेद हैं. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि चीन पर भरोसा करना समझदारी नहीं है. अर्थशास्त्री सईद कहते हैं, "चीन मदद के लिए कोई बेल आउट पैकेज दे सकता है लेकिन उसकी कोई भी मदद बिना शर्त नहीं मिलेगी. हम पहले भी चीन से बड़े कर्ज ले चुके हैं."

हालांकि अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात पर सहमति नजर आती है कि पाकिस्तान को किसी भी बेलआउट पैकेज के लिए आईएमएफ से संपर्क करना चाहिए. लेकिन ट्रंप प्रशासन के पाकिस्तान पर अपनाए गए कड़े रुख के चलते यह मुश्किल हो गया है. अमेरिका का आईएमएफ में बड़ा दबदबा है. अमेरिका पहले ही पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है कि वह मदद की राशि का इस्तेमाल चीन के कर्ज चुकाने के लिए न करे.

आतंकवाद और मदद

प्रधानमंत्री इमरान खान अफगानिस्तान में बढ़ रहे उग्रवाद और चरमपंथ के लिए अमेरिकी दखल को जिम्मेदार मानते हैं. साथ ही इस मुद्दे के राजनीतिक समाधान की वकालत करते हैं. खान और पाकिस्तानी सेना का रुख आतंकवाद के मुद्दे पर लगभग एक जैसा नजर आता है. दोनों पक्ष ही मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद जैसी किसी समस्या के लिए जिम्मेदार नहीं है.

सत्ता संभालने के बाद अब तक इमरान खान ने पाकिस्तान की जमीन पर पनप रहे जिहाद जैसे मुद्दों पर जुबान नहीं खोली है. आतंकवाद जैसे मुद्दों पर इमरान खान की ये नीतियां आपस में विरोधाभासी नजर आती हैं. इस स्थिति में यह तो नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका फिलहाल पाकिस्तान को कोई भी आर्थिक रियायत देगा.