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कुड़ीअट्टम की परंपरा को आगे बढ़ाती जर्मन डॉ. मोजर

२५ अगस्त २०११

मुख्य रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर ट्यूबिंगन का पुराना शहर. जैसे चित्रों की किताब से निकल कर आया हो. छोटी छोटी गलियां और उसमें एक छोटी सी सुंदर इमारत भारत विद्या विभाग की है.

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डॉक्टर हाइके मोजरतस्वीर: Heike Moser

यहां साउथ एशियन इंस्टीट्यूट है जहां भारत विद्या की पढ़ाई होती है. इस इमारत की दूसरी मंजिल पर डॉक्टर हाइके मोजर का कमरा है. डॉक्टर मोजर इंडोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.

मलयालम पढ़ाना तो उनकी खासियत है ही, लेकिन एक और बात उन्हें खास बनाती है कि उन्होंने दुनिया के इकलौते संस्कृत थिएटर कुड़ीअट्टम को केरल में जा कर सीखा है. जर्मनी में रहते हुए कुड़ीअट्टम सीखने की कहानी के बारे में वह बताती हैं, "मैं छोटी थी तो मैंने भरतनाट्यम देखा. मुझे पसंद आया. मैंने इसे सीखना शुरू कर दिया. इसी कारण मुझे कुड़ीअट्टम के बारे में पता चला. मैं बिना भाषा सीखे केरल चली गई और मैंने कुड़ीअट्टम सीखना शुरू किया.  मैंने दो साल लगातार केरल कला मंडलम में कुड़ीअट्टम सीखा. 95 से 97 तक मैंने इसकी शिक्षा ली. सीखने के बाद से मैं इसके बारे में डेमोस्ट्रेशन लेक्चर देती हूं."

Heike Moser Universität Tübingen
तस्वीर: Heike Moser

मजेदार अनुभव

बिना मलयालम सीखे डॉक्टर हाइके मोजर केरल पहुंचीं. कुड़ीअट्टम के जरिए ही उन्होंने मलयालम को जाना. काफी समय तक वह रंगमंच वाली यानी बहुत ही पुरानी मलयालम बोलती रहीं. तो लोग उनका मजाक उड़ाते. फिर धीरे धीरे उन्होंने रोजमर्रा की मलयालम भी सीख ली. यह भाषा सीखना उनके लिए बहुत मजेदार अनुभव रहा. "मैं कई बार बस में आती जाती तो लोग मेरे बारे में मलयालम में बात करते. उन्हें पता नहीं होता कि मैं सब समझ रही हूं. जब मैं प्रतिक्रिया देती तो उन्हें बहुत आश्चर्य होता था. "

Kerala - "Gods own country"
तस्वीर: Luke Jaworski

डॉक्टर मोजर बताती हैं कि कई विदेशी हैं जिन्होंने कुड़ीअट्टम सीखा है. अधिकतर ने अरंगेत्रम करने के बाद छोड़ दिया या अपने देश चले गए या फिर शोध में लग गए. अरंगेत्रम वह कार्यक्रम (शो) है जो शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद पहली बार दर्शकों के सामने पेश किया जाता है. डॉक्टर मोजर बताती हैं, "एक जापानी कलाकार हैं तोमोय इरिनो, उन्होंने मेरे बाद कुड़ीअट्टम सीखना शुरू किया अरंगेत्रम किया, केरल भी आती हैं और कार्यक्रम भी देती हैं. लेकिन बाकी लोग अरंगेत्रम करने के बाद अपने देश चले गए. रंगमंच से जुड़े जिन लोगों ने यह शुरू किया था, वे इसे नाटकों में इस्तेमाल करते हैं. जो लोग शोध के लिए इसे सीख रहे थे, वे आगे शोध में लग गए. तो इसे प्रस्तुत करने वाले विदेशी कलाकार कम हैं."

जीविका कमाना मुश्किल

डॉक्टर हाइके मोजर कहती हैं कि कुड़ीअट्टम कलाकार के तौर पर जीविका कमाना बहुत मुश्किल है, खास तौर पर अगर आप परफॉर्मिंग आर्टिस्ट हैं. "इससे रोटी रोजी कमाना आसान नहीं है. केरल कलामंडलम में टीचर्स हैं और कालिदी की संस्कृत यूनिवर्सिटी में तीन टीचर हैं. बस इतना ही. अगर आपके पास इस तरह की नौकरी है तो ठीक है, लेकिन अगर आप रंगमंच कलाकार के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहते हैं तो मुश्किल है. आज भी यह अधिकतर मंदिरों में ही होता है और केरल के मंदिर अब भी पारंपरिक तौर पर रूढ़िवादी हैं. बहुत कम स्थानीय युवा इसे सीखते हैं क्योंकि 10- 12 साल कोई नहीं सीखता."

Heike Moser Universität Tübingen
तस्वीर: Heike Moser

ऐसे दौर में जब स्थानीय लोग संस्कृत रंगमंच की विशेष विधा कुड़ीअट्टम को नहीं सीख रहे, तब भी डॉक्टर मोजर कहती हैं कि यह कला खत्म नहीं होगी. "सिर्फ 30-40 कलाकार हैं जो कुड़ीअट्टम पेश करते हैं. 2001 में यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है. लंबे समय तक यह समाज के उच्च वर्गीय ब्राह्मण परिवारों के लिए मंदिरों में ही प्रस्तुत किया जाता था. हालांकि मुझे नहीं लगता कि कुड़ीअट्टम खत्म हो रहा है. यह एक बहुत दुर्लभ और महत्वपूर्ण कला है." छोटी सी और दुबली पतली डॉक्टर हाइके मोजर ने मलयालम भाषा तो सीखी ही, वह भारतीय संस्कृति में इतनी रच बस गई हैं कि बातचीत के दौरान हां कहते हुए जर्मन नहीं बल्कि बिलकुल भारतीय तरीके से गर्दन हिलाती हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे, ट्यूबिंगन

संपादनः महेश झा