कैसे होता है जर्मनी में चुनाव
२९ अगस्त २०१७बुंडेसटाग या निचले सदन को चुनने के लिए जर्मनी में बेहद ही जटिल मतदान प्रणाली है. मौजूदा प्रणाली प्रत्यक्ष और आनुपातिक प्रतिनिधित्व दोनों ही प्रणालियों का फायदा लेने की कोशिश करती है ताकि जर्मन इतिहास में दर्ज चुनावी गलतियों को दोहराया न जा सके.
कौन कर सकता है वोट?
साल 2009 और 2013 के संसदीय चुनावों में जर्मन मतदाताओं के रुझान में कमी देखी गई थी. लेकिन लोकलुभावन नीतियों के मौजूदा दौर में इस साल मतदाताओं के रुझान में बढ़ोतरी की संभावना है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल 18 वर्ष और इससे अधिक उम्र के 6.15 करोड़ लोग राष्ट्रीय चुनावों में वोट डाल सकते हैं. इनमें से 3.17 करोड़ महिलायें, 2.98 पुरुष और तकरीबन 30 लाख ऐसे लोग हैं जो पहली बार मतदाता बने हैं. हालांकि जर्मनी के एक तिहाई से अधिक मतदाताओं (तकरीबन 2.2 करोड़) की उम्र 60 साल से ज्यादा है. जाहिर है कि यह अनुभवी पीढ़ी भी चुनाव नतीजे पर विशेष असर डाल सकती है.
यहां सबसे अधिक 1.3 करोड़ मतदाता जर्मन राज्य नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया में रहते हैं. इसके बाद, बावेरिया (95 लाख), बाडेन व्युर्टमबर्ग (78 लाख) का नंबर है.
चुनाव के दिन मतदाताओं को एक बैलेट पेपर दिया जायेगा जिसमें दो खंड होंगे. पहला खंड काला होगा और दूसरा नीला, जिसमें एक वोट देना होगा स्थानीय प्रतिनिधि के लिये और दूसरा देना होगा पार्टी के लिये.
पहला वोट एर्स्टिस्टिम है जिसका इस्तेमाल मतदाता स्थानीय प्रतिनिधि चुनने के लिये करता है, यह अमेरिकी चुनावों की तरह फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम की तर्ज पर होता है.
बुंडेसटाग की कुल 598 सीटों के अन्य आधे हिस्से को भरने के लिये मतदाता दूसरा वोट डालते हैं और इसे स्वाइस्टिम कहते हैं, यह उम्मीदवार की बजाय पार्टी को जाता है. यह वोट बुंडेसटाग में राजनीतिक दलों की कुल भागीदारी को तय करता है. अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को बुंडेसटाग में छोटे राज्यों की अपेक्षा अधिक प्रतिनिधि भेजना होता है.
इन चुनावों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां मतदाता अपने मत को विभाजित करने के लिये स्वतंत्र रहते हैं. मसलन कोई चाहे तो अपना पहला वोट वोट सीडीयू के उम्मीदवार को और दूसरा वोट एफडीपी को दे सकता है. इससे यह फायदा होगा कि सीडीयू के परंपरागत गठबंधन सहयोगी को संसद में दाखिल होने में मदद मिल सकेगी.
ओवरहैंग सीट
कभी-कभी राजनीतिक दलों को पहले वोट के जरिये नियम से अधिक संसदीय सीटें मिल जाती है इसलिये जो भी उम्मीदवार स्थानीय स्तर पर जीतता है उसे तो एक गारंटी सीट दी ही जाती है और उसके बाद पार्टी को मिले अधिक सीटों को बनाये रखना होता है. ऐसे ही अन्य पार्टियों को भी अधिक सीटें मिल सकती हैं. इसका नतीजा यह होता है कि अंत में संसद को सीटों की संख्या बढ़ानी होती है और यही वजह है कि वर्तमान में बुंडेसटाग में कुल 630 सीट हैं.
5 फीसदी की बाधा
किसी भी पार्टी को बुंडेसटाग में दाखिल होने के लिये दूसरे वोट के कुल योग का कम से कम पांच फीसदी हिस्सा जीतना होता है. इस प्रणाली को छोटे दलों पर लगाम कसने के लिये लगाया था. इस पांच फीसदी नियम का ही असर है कि अब तक बुडेंसटाग से उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी और अन्य उग्रवादी दल दूर हैं.
वर्तमान में बुडेंसटाग में पांच राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व है, इसमें पहला दल है चांसलर अंगेला मैर्केल का सीडीयू और इसकी बावेरियन सहयोगी, क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू). इसके अलावा इसमें मध्य वामपंथी सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी), द लेफ्ट पार्टी और द ग्रीन पार्टी भी हैं.
इस साल जर्मन चुनावों में 5 फीसदी की सीमा अहम भूमिका निभा सकती है. साल 2013 में कारोबारी रुख वाली फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) इस बाधा को पार नहीं कर सकी थी लेकिन हालिया स्थिति को देखते हुये संभावना है कि यह पार्टी संसद में प्रवेश कर जायेगी.
शरणार्थी विरोधी बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाली एएफडी भी साल 2013 में बुडेंसटाग में प्रवेश नहीं कर सकी थी लेकिन तब से लेकर अब तक पार्टी ने खासा समर्थन जुटा लिया है और जर्मनी की 16 राज्यों की संसदों में से 13 ने इसका समर्थन भी किया है.
कौन चुनता है चांसलर
जर्मनी में चांसलर का चुनाव सीधे तौर पर मतदाताओं द्वारा नहीं किया जाता. हालांकि नवनिर्वाचित संसद की पहली बैठक मतदान के एक माह के भीतर हो जानी चाहिये. लेकिन अगर गठबंधन पर बातचीत तेजी से आगे बढ़ती है तो यह बैठक इससे पहले भी हो सकती है. सबसे अधिक वोट पाने वाली पार्टी का शीर्ष उम्मीदवार आमतौर पर इस गठबंधन का प्रबंधन करता है. वहीं राष्ट्रपति जो राज्य का मुखिया होता है, मुख्य तौर पर औपचारिक भूमिका निभाता है और चांसलर पद के नये उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव देता है. फिर इसे संसद में नव निर्वाचित सदस्य एक गुप्त मतदान के जरिये स्वीकार करते हैं.
पिछले तीन चुनावों में सीडीयू ने जीत दर्ज की है और अंगेला मैर्केल चांसलर पद पर बनी हुई हैं. जर्मनी में चांसलर पद संभालने को लेकर कोई सीमा तय नहीं है. लेकिन सबसे लंबे समय तक चांसलर पद संभालने का रिकॉर्ड हेल्मुट कोल के नाम है. कोल ने 16 साल तक इस पद पर काम किया और उन्हीं के कार्यकाल के दौरान बर्लिन की दीवार गिरी थी और जर्मनी का एकीकरण संभव हुआ था.
रेबेका स्टाउडमायर/एए