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क्यों पीछे है जर्मन फुटबॉल क्लब कल्चर

अनवर जमाल अशरफ़२३ सितम्बर २००८

भारत में खेल प्रेमियों के लिए क्रिकेट अगर मज़हब समझा जाता है तो यूरोप के लोगों की रगों में फ़ुटबॉल दौड़ता है. और फ़ुटबॉल की दीवानगी भी ऐसी, जो सरहदों में नहीं बंधती. लेकिन इन सबके बीच थोड़ा पीछे रह जाता जर्मनी.

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यूरोप में जोश और जुनून भरता है फ़ुटबॉलतस्वीर: AP

क्रिकेट में भले ही आईपीएल यानी लीग क्रिकेट की शुरुआत इस साल हुई हो, लेकिन यूरोपीय फ़ुटबॉल में यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. वर्ल्ड कप या यूरो कप को छोड़ दें तो लीग फ़ुटबॉल के मुक़ाबले दो देशों के राष्ट्रीय मुक़ाबलों से भी बड़े समझे जाते हैं. मैनचेस्टर यूनाइटेड, चेल्सी, एसी मिलान, बार्सिलोना जैसे कितने ही क्लबों की लीग टीमें न सिर्फ़ यूरोप, बल्कि दुनिया भर में जानी जाती है और सबसे बड़े खिलाड़ी इन्हीं क्लबों से जुड़ते हैं, जुड़ना चाहते हैं.

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जर्मन फ़ुटबॉल टीम के कप्तान मिशाएल बालाक

भारत के महेंद्र सिंह धोनी को आईपीएल में शामिल करने के लिए अगर छह करोड़ रुपये की बोली लगती है, तो तहलका मच जाता है लेकिन अगर फ़ुटबॉल सितारे पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो से तुलना करें तो रोनाल्डो हफ़्ते भर में इतना कमा लेते हैं. यह तो हुई कमाई की बात, बड़े फ़ुटबॉलरों के लिए बड़े क्लब भी पलकें बिछाए रहते हैं. हाल में रोनाल्डो के मैनचेस्टर यूनाइटेड छोड़ने की चर्चा चली तो यह बात भी चली कि इसके लिए एक क्लब मैनचेस्टर यूनाइटेड को आठ करोड़ यूरो यानी क़रीब पांच सौ पच्चीस करोड़ रुपये देने को तैयार था. यह बात अलग है कि रोनाल्डो ने क्लब नहीं छोड़ा.

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बुंडेसलीगा जर्मनी में तो खूब लोकप्रिय है लेकिन बाहर नहींतस्वीर: picture-alliance/dpa

यूरोप के बड़े देशों में क्लब फ़ुटबॉल का कल्चर बहुत पुराना और बहुत मज़बूत है. इंग्लैंड के प्रीमियर लीग की शुरुआत तो उन्नीसवीं सदी में ही हो गई थी और इसकी सबसे चर्चित टीम मैनचेस्टर यूनाइटेड की स्थापना 1878 में हुई. लीवरपूल, चेल्सी, मैनचेस्टर सिटी, एवर्टन और आर्सेनल जैसी टीमें भी ख़ूब लोकप्रिय हैं. स्पेनी लीग की बार्सिलोना और रियाल मैड्रिड को दुनिया जानती है और इतालवी क्लब फ़ुटबॉल में एसी रोमा और एसी मिलान के फ़ैन तो दुनिया भर में फैले हैं. ब्राज़ील ने भले ही रिकॉर्ड पांच बार वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल जीता हो, उसके टॉप फ़ुटबॉल प्लेयर अपने लीग में नहीं, बल्कि यूरोपीय लीग में खेलना पसंद करते हैं. इतना ही नहीं, हर देश में क्लब फ़ुटबॉल कई सतहों में बंटे हैं. पहली सतह यानी फ़र्स्ट लीग में सर्वश्रेष्ठ टीमें, उसके बाद की कुछ टीमें सेकंड लीग में और फिर थर्ड लीग के क्लब में शामिल की जाती हैं.

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यूरो कप या विश्व कप जैसे मुकाबलों के दौरान चरम पर होती है दीवानगीतस्वीर: AP

लेकिन इन सबके बीच, तीन बार का वर्ल्ड कप चैंपियन जर्मनी का लीग फ़ुटबॉल बुंडेसलीगा थोड़ा पीछे रह जाता है. जर्मनी के अंदर भले ही बायर्न म्यूनिख और श्टुटगार्ड की टीमों के बारे में चर्चा होती हो लेकिन बाहर की दुनिया में जर्मन लीग फ़ुटबॉल के बारे में लोग ज़रा कम ही जानते हैं. मुश्किल दोनों तरफ़ से है. न तो जर्मन क्लब बड़े विदेशी खिलाड़ियों को खींच पाती हैं और न ही जर्मन सितारे विदेशी टीमों का हिस्सा बन पाते हैं. हाल में देखा जाए तो सिर्फ़ इटली के स्टार लुका टोनी जर्मन क्लब बायर्न म्यूनिख के साथ जुड़े हैं और जर्मन कप्तान मिशाएल बालक इंग्लैंड के चेल्सी के लिए खेलते हैं.

समझा जाता है कि फ़ुटबॉल के अंदर अब एक और खेल शुरू हो गया है. पैसे का खेल. दुनिया भर के बड़े रईस यूरोप के बड़े फ़ुटबॉल क्लबों को ख़रीद रहे हैं. चेल्सी रूसी उद्योगपति इब्राहिमोविच के पास है, तो मैनचेस्टर सिटी को हाल ही में अबु धाबी ग्रुप ने अरबों रुपये में ख़रीदा है. क्लब ख़रीदने के बाद खिलाड़ियों को ख़रीदा जाता है. ठीक वैसे ही, जैसे आईपीएल क्रिकेट में हमने आपने चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रॉयल्स और बाद में धोनी, साइमंड्स और शोएब अख़्तर की ख़रीद देखी थी. जर्मन फ़ुटबॉल क्लब अभी इस रेस में पीछे हैं.

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खुशी गोल की!तस्वीर: AP

वैसे यूरोप में फ़ुटबॉल जोड़ता भी है. एक देश को दूसरे देश से. एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति से. क्लबों में अलग अलग देशों के खिलाड़ी शामिल होते हैं, जिनके बीच बहुत शानदार सामंजस्य रहता है. हाल ही में दो पुराने दुश्मन तुर्की और अर्मेनिया में फ़ुटबॉल के बहाने दोस्ती हो रही दिखती है. वर्ल्ड कप क्वालिफ़ाइंग मुक़ाबला देखेने के लिए अर्मेनिया ने तुर्की के राष्ट्रपति को अपने देश बुलाया था.

और आख़िर में यूरोपीय क्लब फ़ुटबॉल से जुड़ी कुछ और बातें.

1. यूरोपीय देशों की फ़र्स्ट लीग की दो टीमें हर साल चैंपयिन्स लीग में हिस्सा लेती हैं. इसे क्लब फ़ुटबॉल का का सबसे बड़ा ख़िताब समझा जाता है. रियाल मैड्रिड ने सबसे ज़्यादा नौ बार इस पर कब्ज़ा किया है.

2. भारत में इसी की तर्ज़ पर इस साल चैंपियन्स लीग क्रिकेट खेला जाएगा, जिसमें पांच देशों की आठ सबसे बेहतर टीमें हिस्सा लेंगी

3. यूरोपीय देशों की सेकंड लीग की टीमों के लिए भी हर साल बहुत बड़ा मुक़ाबला होता है, जिसे यूएफ़ा कप कहते हैं.

यूरोप के दिल से इस बार इतना ही