क्यों हैं जर्मन नागरिक जनगणना से चिंतित
१० मई २०११जनगणना जर्मनी के बहुत से लोगों को पसंद नहीं है. पिछली बार उसका भारी विरोध हुआ था. लेकिन क्यों? क्या बात है जनगणना में जो जर्मनी के कुछ लोगों को परेशान करती है? और किस तरह से की जाती है यहां जनगणना?
जर्मनी 20 साल से अधिक से एकीकृत मुल्क है. 1990 में ही उसका एकीकरण हुआ, लेकिन दो दशक के बाद भी किसी को ठीक से पता नहीं कि कितने लोग पूरब और पश्चिम जर्मनी में रहते हैं, वे कितना पढ़े लिखे हैं, कितने बड़े घरों में रहते हैं और घरों में कौन कौन सी सुविधाएं हैं. पूर्वी जर्मनी जीडीआर में पिछली जनगणना 1981 में हुई थी. अगली 1991 में होती, लेकिन तब तक जीडीआर का अंत हो चुका था और उसके इलाके के पांच प्रातों का पश्चिमी जर्मनी में विलय हो चुका था.
जनगणना का विरोध
पश्चिम जर्मन संघीय गणराज्य में पिछली जनगणना 1987 में हुई थी. उस समय लाखों लोगों ने पश्चिम जर्मनी में जनगणना का बहिष्कार किया था. उन्हें सारी जानकारी जुटाने के सरकार रवैये से परेशानी थी, उन्हें डर था कि इन सूचनाओं का दुरुपयोग किया जा सकता है. उन्हें आशंका थी, सरकार अपनी जनता को पारदर्शी नागरिक बनाने में जुटी है, ताकि उसे अपने नागरिकों के बारे हर छोटी सी चीज का पता हो. डेटा सुरक्षा की दिशा में जनता का यह पहला बड़ा विद्रोह था. इसमें उन्हें कुछ राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला. मई 1987 में संसद की एक बहस में बोलते हुए ग्रीन सांसद क्रिश्टियान श्ट्रौएबेले ने कहा, "किसी भी हालत में ऐसा नहीं है कि नए कानून से लोग आश्वस्त रह सकेंगे कि इन सूचनाओं की गोपनीयता बनी रहेगी."
1987 की जनगणना सालों के विवाद के बाद हुई. 1983 में देश भर में जनगणना का विरोध करने के लिए सैकड़ों नागरिक पहलकदमियों का गठन किया गया. उसी साल जर्मन संवैधानिक न्यायालय ने भी सूचना के आत्मनिर्णय के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित कर दिया. जनगणना के विरोध को मिला व्यापक समर्थन. एक तो उस समय जर्मनी में व्याप्त तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल के कारण संभव हुआ. दूसरी ओर इसका ऐतिहासिक कारण भी था. नाजी काल में यहूदियों का व्यवस्थित दमन इसीलिए संभव हो पाया कि उनके पास यहूदियों को बारे में 1931 की जनगणना से मिली विश्वसनीय सूचनाएं थीं. एकीकरण के बाद जर्मनी में राजनीतिक माहौल नरमाया है और आज जनगणना से डर कम हो गया है, खासकर फेसबुक और ट्विटर पर सुरक्षित महसूस करने वाले युवाओं में. इस बार 9 मई से जर्मनी में नागरिकों के बारे में जानकारी का संग्रह शुरू हो रहा है. संघीय सांख्यिकी कार्यालय के प्रमुख रोडेरिष एगेलर कहते हैं, "जनगणना में इकट्ठा सूचनाएं संघीय, प्रांतीय और स्थानीय प्रशासन के राजनीधिक और आर्थिक फैसलों का आधार होती हैं. मसलन, प्रांतों के बीच वित्तीय संसाधानों के बंटवारे या प्रातों द्वारा स्थानीय प्रशासन को धन के आबंटन में जनसंख्या के सरकारी आंकड़ों की भूमिका. जनगणना के व्यावहारिक उपयोग का एक उदाहरण है चुनाव क्षेत्रों का आकार निर्धारित करना.
बहिष्कार का सवाल नहीं
लेकिन भारत के विपरीत जर्मनी में आंकड़े हर घर से नहीं जुटाए जाएंगे. जनगणना करने वाले कर्मियों से जर्मनी की लगभग सवा 8 करोड़ आबादी में हर किसी का पाला नहीं पड़ेगा. 80 हजार जनगणना कार्यकर्ता आकस्मिक रूप से चुने गए 80 लाख नागरिकों से इंटरव्यू करेंगे और उनसे उम्र, लिंग और नागरिकता के बारे में पूछेंगे. इस बार बहिष्कार का सवाल नहीं है. जो सहयोग नहीं करेगा उसे जुर्माना भरना होगा. बाकी लोगों के बारे में सूचनाएं स्थानीय निकायों और रोजगार कार्यालय के पास उपलब्ध जानकारी से ली जाएगी. इसके अलावा कुछ विशेष क्षेत्र हैं, जहां के निवासियों को अपने बारे में जानकारी देने के लिए एक प्रश्नावली भरनी होगी. सांख्यिकी कार्यालय के अनेटे फाइफर इन विशेष क्षेत्रों के बारे में बताती है, "ये विशेष क्षेत्र हैं सामुदायिक निवास, होस्टल और ओल्ड होम. लेकिन इनके अलावा जेल और मानसिक रोग केंद्र भी. हमें पता है कि सूचनाएं इतनी विश्वसनीय नहीं हैं कि उनका इस्तेमाल सरकारी जनसंख्या के लिए किया जा सके. इसलिए हमने इस क्षेत्र में पूरी जानकारी लेने का फैसला किया है."
दस साल से तैयारी
तीसरा दल मकान मालिकों का है. उन्हें भी एक प्रश्नावली भरनी होगी. अब तक देश में रिहायशी मिल्कियत के बारे में बहुत कम जानकारी है. लेकिन उनके बारे में जानना जरूरी है ताकि पता चल सके कि शहर को पानी के पाइपलाइन या किंडरगार्टन की कितनी जरूरत है. 2011 के जनगणना की तैयारी दस साल से की जा रही है. अप्रैल में जनता को इसके बारे में बताने के लिए मीडिया अभियान चलाया गया है. इस बार जनगणना की आलोचना व्यापक नहीं है. वर्किंग ग्रुप जनगणना ने संवैधानिक न्यायालय में अपील की थी लेकिन अदालत ने उसे स्वीकार नहीं किया. वर्किंग ग्रुप के मिषाएल एबलिंग कहते हैं, "कानून में लिखा है कि सूचनाओं को चार साल तक व्यक्तियों की पहचान से अलग नहीं किया जाएगा. कुछ मामलों में तो छह साल तक ऐसा रहेगा. मतलब 2017 तक. इन सूचनाओं का कुछ ही दिनों या सप्ताहों के लिए भी नाम के साथ जानकारियों का रहना मेरे विचार से बहुत जोखिम भरा है."
जनगणना एक कानून
लेकिन जर्मनों को अब जनगणना में भाग लेने की आदत डालनी होगी. वे अपने बारे जानकारी देने से इंकार नहीं कर सकते. इसके लिए जनगणना कानून बनाया गया है जिसके तहत जानकारी देना लोगों का कर्तव्य है. सभी सवालों का सही उत्तर देना जरूरी है. अपवाद सिर्फ धार्मिक मान्यता या विचारधारा से जुड़े सवाल हैं. यूं भी लोगों को जनगणना के लिए तैयार रहना होगा. यूरोपीय कानून के हिसाब से अब हर दस साल पर जनगणना हुआ करेगी. यह संयुक्त राष्ट्र का भी मानक है. दूसरे देशों में भी इसी अंतराल पर जनगणना होती है. रोडेरिष एगेलर का कहना है कि जर्मन सांख्यिकी कार्यालय इसका स्वागत करता है, "जनगणना के बाद का समय अब जनगणना के पहले का समय होगा. हम इस चक्र का समर्थन करते हैं, खासकर इसलिए कि यदि हम अपने देश में आबादी विकास को देखें तो यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि वह किस दिशा में जाएगा."
जर्मनी में दो दशक बाद हो रही जनगणना के आरंभिक नतीजे 2012 से अंत तक आएंगे. तब तक इस पर 71 अरब यूरो का खर्च आएगा लेकिन सरकार को पहली बार पता चलेगा कि एकीकृत जर्मनी में किस प्रांत की आबादी कितनी है और कितने लोग कितना पढ़े लिखे हैं, और कितनों के पास अपना घर है. एक आधुनिक राष्ट्र के लिए यह जानना बहुत जरूरी है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए कुमार