क्रिकेट के सबसे बड़े बाजीगर धोनी
३ अप्रैल २०११दो बार उछाले गए सिक्के में भी टॉस हारने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की एक एक चाल बेमिसाल होती है. किसी फिल्मी पटकथा जैसे फैसले करने वाले धोनी जब अश्विन को छोड़ रन लुटाने वाले श्रीसंत को टीम में लाते हैं या फिर मैन ऑफ द वर्ल्ड कप युवराज सिंह की जगह खुद बैटिंग करने चले आते हैं, तो यह सब एक जुए की तरह लगता है. लेकिन बॉलीवुड की कहानी की तरह आखिरी मौके पर सब कुछ हिट हो जाता है.
वर्ल्ड कप हाथों में लिए कपिल देव वाली लॉर्ड्स की बालकनी की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर 28 साल बाद शायद थोड़ी धुंधली पड़े. धोनी की टीम ने रंगीन लिबास और रंगीन तस्वीरों के जमाने में सुनहरा कप पकड़ लिया है. और इसके रास्ते में उनकी किस्मत और उनके साहस दोनों ने बहुत साथ दिया है.
धोनी ने जब कुलसेखरा की गेंद पर छक्का लगाया तो 1992 के इमरान खान और 1975 के क्लाइव लॉयड की तस्वीरें कौंध गईं. सबसे मुश्किल वक्त में फाइनल मैच के दौरान उन दोनों कप्तानों ने अपने दम पर टीम का बेड़ा पार किया था. इस बार पूरे टूर्नामेंट में फ्लॉप रहे भारतीय कप्तान ने भी अपनी एकमात्र पारी शायद फाइनल के लिए ही बचा रखी थी.
जब धोनी ने वर्ल्ड कप के सबसे सफल भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह को बल्लेबाजी क्रम में नीचे कर दिया और खुद उनकी जगह ग्राउंड पर उतर आए, तो क्रिकेट पंडितों से लेकर क्रिकेट का जेनरल नॉलेज रखने वालों तक ने यही सवाल पूछा कि यह क्या है. फॉर्म में चल रहे बल्लेबाज को नीचे लटका कर बिना फॉर्म वाला बल्लेबाज क्यों उतर गया. लेकिन आखिर में धोनी का यह दांव सबसे बड़ा दांव साबित हुआ.
वर्ल्ड कप जीतने के लिए टीम इंडिया को बहुत से मिथक तोड़ने पड़े. फाइनल में जिस टीम का खिलाड़ी सेंचुरी बनाता था, वही जीतती थी. नौ में से सात बार पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती थी और बाद में तो कभी 274 रन बने ही नहीं थे. धोनी ने इन सबको धता बता दिया.
टीम में पीयूष चावला को लेने और यूसुफ पठान को बल्लेबाजी क्रम में ऊपर भेजने पर धोनी की खूब खिंचाई हुई. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जब नौ विकेट 29 रन पर ढेर हो गए और बाद में आशीष नेहरा ने आखिरी ओवर में रन पिटा दिए, तो भी धोनी को आड़े हाथों लिया गया. फिर भी धोनी ने मोहाली की घूमती पिच पर अश्विन को नजरअंदाज कर उसी नेहरा को खिलाया और नेहरा ने वहां सबसे किफायती गेंदबाजी की.
धोनी किस्मत के धनी हैं कि उनके पास दुनिया की सबसे अच्छी टीम है लेकिन यह उनकी कप्तानी की कारीगरी है कि उन्होंने इस टीम को खूब तराशा है. दूसरे कप्तानों की तरह एक दो ओवर में पिट जाने वाले बॉलरों को वह आक्रमण से नहीं हटाते, बल्कि जैसे बल्लेबाज गेंदबाज को समझता है, वैसे ही वह गेंदबाजों को भी इस बात का मौका देते हैं कि वे बल्लेबाजों को समझें. वह मुश्किल मौकों पर झुंझला जाने वाले कप्तान नहीं, बल्कि ठंडे दिमाग से फैसले लेने वाले कप्तान हैं. वह कोड़े बरसाने वाले कप्तान नहीं, बल्कि साथी की तरह खिलाड़ियों के साथ पेश आने वाले कप्तान हैं.
धोनी 29 साल की उम्र में पूरे परिपक्व हो चुके हैं. शायद चार साल तक कप्तानी के बाद यह बात किसी और कप्तान में न आती. धोनी को पता है कि मीडिया से कैसे बात करनी है और किसी को कहां किनारे लगाना है. तभी तो जब बैंगलोर में उन्होंने कहा था कि बल्लेबाजों को दर्शकों को खुश करने के लिए नहीं खेलना चाहिए, बल्कि जीत की रणनीति के साथ खेलना चाहिए. उनकी यह बात क्रिकेट के आम दर्शकों को नागवार गुजरी होगी लेकिन उसकी अहमियत आज उन्हें पता चल गई होगी.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी