'खतरों के बावजूद अफगानिस्तान में बना रहेगा भारत'
९ जनवरी २०११काबुल के दो दिनों के दौरे पर अफगान विदेश मंत्री जालमाई रसूल के साथ बातचीत के बाद कृष्णा ने कहा कि अफगानिस्तान में काम कर रहे भारतीयों के लिए खतरे असली हैं लेकिन साथ ही कहा कि उनका देश इन धमकियों के सामने नहीं झुकेगा. उन्होंने कहा, हम तब तक अफगानिस्तान में बने रहेंगे जब तक अफगानिस्तान की वैध रूप से चुनी हुई सरकार चाहेगी.
पिछले साल फरवरी में अफगान राजधानी में विदेशियों पर हुए तालिबान हमले में 9 भारतीय मारे गए थे जबकि 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में 41 लोग मारे गए थे.
एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "दुर्भाग्यवश हमारे मिशन के लिए खतरा वास्तविक है." लेकिन साथ ही उन्होंने विश्वास जताया कि अफगान सरकार आवश्यक सुरक्षा मुहैया कराएगी.
कृष्णा ने कहा कि दोनों पक्षों ने अफगान सीमाओं से बाहर स्थित आतंकी गुटों के सुरक्षित पनाहगाहों से दृढ़ता से निबटने की जरूरत पर भी बातचीत की. भारत और अफगानिस्तान का कहना है कि पाकिस्तान की सत्ता संरचना में शामिल कुछ तत्व उग्रपंथ का समर्थन करते हैं और उन्हें धन देते हैं.
भारतीय विदेश मंत्री ने काबुल में कहा कि अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप देश की स्थिरता के लिए अच्छा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि भारत सरकार तालिबान को निहत्था करने के प्रयासों का समर्थन करती है लेकिन इस प्रकिया में हस्तक्षेप उसकी सफलता और लोकतांत्रिक अफगानिस्तान के भविष्य के लिए नुकसानदेह होगा.
कृष्णा का यह बयान पाकिस्तान की ओर लक्षित दिखता है जहां तालिबान के कुछ बड़े नेताओं के छुपे होने के संकेत हैं. कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धुरविरोधी भारत और पाकिस्तान अफगानिस्तान को प्रभावित करने के संघर्ष में जुटे हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: एस गौड़