खलील चिश्ती को सुप्रीम कोर्ट से मिली बेल
९ अप्रैल २०१२सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पी सदाशिवम और जस्टिस जे चेलामेश्वर की बेंच ने खलील चिश्ती की उम्र और खराब सेहत को देखते हुए उन्हें जमानत दी है. पेशे से माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट खलील चिश्ती 1992 में अजमेर आए थे, इसी दौरान हुए हत्या के मामले में उन्हें दोषी करार दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट चिश्ती की पाकिस्तान भेजने की मांग पर सुनवाई करने के लिए भी तैयार हो गया है लेकिन इसके लिए अलग से याचिका दायर करने को कहा गया है. हालांकि फिलहाल उन्हें अगले आदेश तक अजमेर में ही रहने को कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के बाद फैसले में कहा, "हम इस जमानत बढ़ाने के लिए हुई मामले की सुनवाई से संतुष्ट हैं."
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिश्ती के परिवार वालों ने खुशी जताई है. फैसला सुन कर भावुक हुई उनकी बेटी सोहा ने इस्लामाबाद में बताया कि उन्होंने टीवी पर यह समाचार देखा है. सोहा ने कहा, "हम सब लोग बहुत खुश हैं, मैं घर गई और मेरी मां को इस बारे में बताया. हम लोगों ने शुकराने की नमाज पढ़ी." सोहा ने यहा भी कहा कि "खुदा के करम" से उनकी रिहाई हुई है और यह अनगिनत पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी लोगों की कोशिशों से मुमकिन हो पाया. पिछले साल दिसंबर में परिवार ने भारत जा कर चिश्ती से मुलाकात की थी. सोहा ने यह भी बताया कि उनकी बहन ने राष्ट्रपति जरदारी की भारत यात्रा से पहले उन्हें इस बारे में पत्र लिखा और भारत की सरकार के सामने यह मसला उठाने का आग्रह किया.
चिश्ती को बेल सुनाने के एक दिन पहले ही भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों के बीच इस मामले में चर्चा हुई. यह चर्चा पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की भारत यात्रा के दौरान हुई. 1992 में चिश्ती थअपनी बीमार मां से मिलने के लिए अजमेर आए. इस दौरान एक विवाद हुआ और लड़ाई में चिश्ती के एक पड़ोसी को गोली मार दी गई. झगड़े में चिश्ती का भतीजा भी घायल हुआ.
इसके बाद इस मामले की सुनवाई शुरू हुई जो 18 साल चली. चिश्ती को हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सुनवाई के दौरान सेशन कोर्ट ने उन्हें बेल तो दी मगर अजमेर छोड़ने की इजाजत नहीं मिली. मामले में दोषी करार दिए जाने और सजा सुनाने का बाद उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया.
एनआर/ओएस(पीटीआई)