खोसा को तासीर की जगह बैठाएंगे जरदारी
८ जनवरी २०११पाकिस्तान सरकार के एक पूर्व अटॉर्नी जनरल ने शनिवार को कराची में कहा, "इस बात की पूरी संभावना है कि लतीफ खोसा को पंजाब के गवर्नर की कुर्सी पर नियुक्त किया जाएगा."सरकार के एक और बड़े अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि खोसा की नियुक्ति तय है. उधर खोसा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि राष्ट्रपति जरदारी ने उन्हें मिलने के लिए उन्हें बुलाया था,"नेतृत्व जो भी फैसला करेगा उसे मैं स्वीकार करूंगा." खोसा सलमान तारीस की जगह लेंगे जिनकी ईशनिंदा कानून के विरोध में बोलने के कारण उनके सुरक्षा गार्ड ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी.
तासीर की हत्या ऐसे समय में हुई जब जरदारी की सरकार अपने एक प्रमुख सहयोगी के विपक्षी खेमे में चले जाने के कारण गिरने की हालत में पहुंच गई थी. पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता को अमेरिका चरमपंथी ताकतों पर लगाम कसने और अफगानिस्तान की जंग में सफलता पाने के लिए जरूरी मानता है. जरदारी के लिए तासीर की जगह लेने वाले शख्स का चुनाव बेहद अहम है. पंजाब पाकिस्तान की सबसे आबादी वाला राज्य है और देश की राजनीति की धुरी भी. नेशनल असेंबली के 342 में से 183 सदस्य पंजाब से आते हैं और पारंपरिक रूप से पंजाब का देश की राजनीति में दबदबा रहा है.
खोसा को चुन कर जरदारी नवाज शरीफ की गर्मी शांत करने की सोच रहे होंगे जो फिलहाल विपक्षी पार्टियों में सबसे ज्यादा ताकतवर हैं.
नवाज शरीफ की पार्टी का प्रांतीय गठबंधन में दबदबा है. केंद्र सरकार जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के हाथों में है. तासीर आक्रामक माने जाते थे और वो नवाज शरीफ और उनके भाई शाहबाज शरीफ से सार्वजनिक रूप से भिड़ते रहे हैं.शाहबाज शरीफ पंजाब के मुख्यमंत्री हैं. इसके उलट खोसा टकराव से बचने वाले, मृदुभाषी और पीपीपी के पक्के समर्थक के रूप में जाने जाते हैं.
जानकारों का मानना है कि वकालत के पेशे से जुड़े खोसा शरीफ भाइयों और उनकी पीएमएलए पार्टी से टकराव टालेंगे. इस टकराव के कारण केंद्र सरकार के कामकाज में बड़ी बाधा आ रही है. नवाज शरीफ ने जरदारी सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है कि वो उनकी मांगों की फेहरिस्त मान ले नहीं तो वो पंजाब की सरकार से पीपीपी के सदस्यो को बाहर कर देगी. शरीफ का अल्टीमेटम खत्म होने के दो दिन पहले ही खोसा की नियुक्ति की बात सुनाई पड़ने लगी है.
जरदारी की सरकार को बड़ी राहत मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट ने दी जिसने एक बार विपक्ष में जाने का एलान करने के बाद फिर सरकार का दामन थाम लिया.एमक्यूएम की तरफ से आए राजनीतिक संकट को तो काफी हद तक दूर कर लिया गया है लेकिन पंजाब में स्थायीत्व सरकार के लिए एक बड़ा मसला अभी भी बना हुआ है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः एस गौड़