गठबंधन वार्ता में काम आयेगी सहमत होने की कला
२५ सितम्बर २०१७आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. जर्मनी में अब रविवार को चुने गये सांसदों पर मुश्किल नतीजों को संभावनाओं में बदलने की जिम्मेदारी है. इस समय सरकार में शामिल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के चुनाव में भारी हार के बाद फौरन विपक्ष में बैठने के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि जर्मनी तथाकथित जमैका गठबंधन की ओर बढ़ रहा है. वोटों में भारी गिरवाट के बाद कमजोर चांसलर मैर्केल को अपने चौथे कार्यकाल में मजबूरन नया प्रयोग करना होगा.
हालांकि प्रांतीय स्तर पर पहले भी सीडीयू-एफडीपी-ग्रीन गठबंधन बने थे या हैं, लेकिन संघीय स्तर पर इसकी शुरुआत होगी. पिछली गर्मियों से श्लेसविष होलस्टाइन में सत्तारूढ़ जमैका गठबंधन को इतना समय नहीं हुआ कि उसकी स्थिरता पर कोई राय बनायी जा सके. इसके पहले छोटे प्रांत जारलैंड में 2009 में बना पहला जमैका गठबंधन दो साल बाद ही 2012 के शुरू में टूट गया था. इसकी वजह गठबंधन की पार्टियों के बीच मतभेद न होकर एफडीपी के अंदर के झगड़े थे.
जारलैंड में नाकाम
2017 से जारलैंड की मुख्यमंत्री अनेग्रेट क्रांप कारेनबॉवर एसपीडी के साथ गठबंधन सरकार चला रही है. इस गठबंधन का अनुभव चांसलर मैर्केल को भी है, लेकिन जमैका गठबंधन के पायदे और नुकसान के बारे में क्रांप-कारेनबॉवर चांसलर को मूल्यवान सलाह दे सकती है. यही बात श्लेसविष होलस्टाइन के मुख्यमंत्री डानिएल गुंथर के लिए भी लागू होती है, भले ही उन्हें सरकार चलाने का सिर्फ तीन महीने का अनुभव है.
इसका दूसरा पहलू संघीय स्तर पर चांसलर मैर्केल के साथ सरकार में शामिल होने की गठबंधन के साथियों की तैयारी भी है. 12 साल के कार्यकाल में अंगेला मैर्केल छवि विभिन्न पक्षों के बीच मॉडरेट करने वाले चांसलर की बनी है. उनके समर्थक इसके लिए उनकी तारीफ करते हैं जबकि विरोधी उन पर अपनी कोई राय नहीं होने का आरोप लगाते हैं. जमैका गठबंधन की वार्ता में दृष्टिकोण बदलने का उनका ये गुण काम आ सकता है. लेकिन उनकी अपनी पार्टी सीडीयू और सहोदर पार्टी सीएसयू में आपत्तियां हैं, ये खुला रहस्य है.
विवाद का मुद्दा भावी शरणार्थी नीति
लेकिन दूर दूर तक कोई नहीं दिखता जो चांसलर की अथॉरिटी को चुनौती दे सके. और ये बात अत्यंत खराब प्रदर्शन के बाद बवेरिया के मुख्यमंत्री और सीएसयू प्रमुख हॉर्स्ट जेहोफर के लिए भी लागू होती है. लेकिन फिर भी देश के दक्षिणी हिस्से से हमलों की संभावना को इंकार नहीं किया जा सकता. जेहोफर ने अपनी पार्टी की हार और एएफडी की जीत की वजह से चुनाव की शाम ही घोषणा की है कि वे रूढ़िवादी मुद्दों पर सख्त रवैया अपनायेंगे.
लेकिन आंतरिक सुरक्षा और शरणार्थी नीति पर सख्त बयानों का एफडीपी और ग्रीन पार्टी के साथ गठबंधन वार्ताओं पर बुरा असर होगा. शरणार्थी कानून में सख्ती को ग्रीन पार्टी अपने सदस्यों को राजी नहीं करवा पायेगी लेकिन आतंकवाद विरोधी संघर्ष पर सहमति आसान होगी. ज्यादा पुलिकर्मियों की भर्ती और उन्हें बेहतर साजसामान देने पर सभी पक्ष एकमत हैं.
आपस में बातचीत
सीडीयू को कुल मिलाकर बहुत सारी रियायतें देनी होंगी. सुरक्षा के नाम पर नागरिक अधिकारों में और कटौती को स्वीकार करने की एफडीपी और ग्रीन पार्टी के लिए कल्पना नहीं की जा सकती. इसके अलावा दोनों छोटी पार्टियों को भी बड़े कदमों के साथ एक दूसरे के करीब जाना होगा. चार साल बाहर रहकर फिर से संसद में वापस लौटी एफडीपी ग्रीन पार्टी पर लोगों पर अपनी इच्छा लादने का आरोप लगाती रही है. दूसरी ओर ग्रीन पार्टी का मानना है कि एफडीपी सरकार में कटौती, आम लोगों की कीमत पर आर्थिक हितों की पक्षधर है.
कार्यक्रम के स्तर पर और राजनीतिक संस्कृति के तौर पर दोनों पार्टियों को अपनी कतारों में जमैका गठबंधन की सफलता के लिए बहुत प्राय करने होंगे. इन पार्टियों के अनुभवी नेता इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं. ग्रीन पार्टी में बाडेन वुर्टेमबर्ग के मुख्यमंत्री विनफ्रीड क्रेचमन हैं जो अपने अनुदारवादी और समृद्ध प्रांत में सीडीयू के साथ गठबंधन सरकार चला रहे हैं. लेकिन 69 वर्षीय नेता को पार्टी के वामपंथी धड़े का हमला झेलना होगा.
मध्यावधि चुनाव का विकल्प
एफडीपी में क्रेचमन की भूमिका में पार्टी के उपाध्यक्ष 65 वर्षीय वोल्फगांग कुबिकी हैं. उन्होंने अपनी पार्टी को श्लेसविष होलस्टाइन में जमैका गठबंधन के लिए राजी करवाया है. अब इस मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने को वे संभव मानते हैं, लेकिन जरूरी नहीं. एसपीडी के विपक्ष में बैठने के फैसले की उन्होंने आलोचना की है. उन्हें पता है कि इस फैसले से एफडीपी पर गठबंधन में शामिल होने का दबाव बढ़ गया है.
और ये अहसास गठबंधन में शामिल होने वाले सभी दल महसूस करेंगे. अंगेला मैर्केल के साथ दो बार के नुकसानदेह गठबंधन के बाद एसपीडी के सरकार में शामिल न होने के फैसले को माफ कर सकती है. लेकिन सीडीयू, एफडीपी और ग्रीन पार्टियों को गठबंधन के लिए राजी होना होगा, नहीं तो इसका नतीजा मध्यावधि चुनाव होगा. इस पर सिर्फ धुर दक्षिणपंथी एएफडी को खुशी होगी. उसने वामपंथी पार्टी डी लिंके सहित सभी पार्टियों को नई संसद में अपनी मुख्य विरोधी घोषित कर रखा है.