गांधीजी का बदहाल टॉलस्टॉय फार्म
२५ अगस्त २०१०काफी समय से दक्षिण अफ्रीका के इस प्लॉट पर संग्रहालय और एक ट्रेनिंग सेंटर बनाए जाने की योजना थी लेकिन वह अभी कागज़ों में ही बंद पड़ी है और 100 साल पुराना ये फार्म अब खस्ताहाल हो गया है.
चोरों ने इस प्लॉट के आस पास बनी वो बाड़ भी उखाड़ दी है जो गांधी जी की याद में बनाई गई समिति के मोहन हीरा ने खड़ी की थी ताकि इस संपत्ति को बचाया जा सके. पिछले कई सालों में हीरा ने लेनैसिया के स्थानीय लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए काफी कोशिशें की. टॉलस्टॉय फार्म वो जगह है, जहां दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीय लोगों को एक समय में जबरदस्ती रखा गया था.
आज दक्षिण अफ्रीका में हज़ारों भारतीय रहते हैं लेकिन टॉलस्टॉय फार्म 30 साल से बेकार पड़ा है, इसकी देख रेख करने वाला कोई नहीं. 1970 में इस फार्म के आखिरी केयरटकर संगीतकार जेराम भाना और उनकी पत्नी ने सुरक्षा कारणों से ये जगह छोड़ दी थी. भाना ने बताया, मुझे याद है कि कैसे वहां गर्मियों में खुबानी के खूब सारे पेड़ होते थे और आस पास कुछ स्थानीय लोग भी रहते थे.
गांधी जी के मित्र और आर्किटेक्ट हेरमान कालेनबाख ने गांधी जी को टॉलस्टॉय फार्म की जमीन दी थी. जिन दिनों गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में भेदभाव वाले कानून के विरुद्ध प्रदर्शन करना शुरू किए थे उस समय इस फार्म में कई परिवार शरण लेते थे.
लेकिन आज यहां वीराना फैला है. इस की हालत ऐसी हो गई थी कि 1980 में फार्म की इमारत को ढहाना पड़ा.
गांधी शताब्दी समिति की अध्यक्ष फिलहाल महात्मा गांधी जी की पड़पोती कीर्ती मेनन हैं जो टॉलस्टॉय फार्म में विकास प्रोजेक्ट चलाने के लिए जोहानिसबर्ग नगर निकाय के साथ बातचीत कर रही हैं.
पहले भी फंड दिए जा चुके हैं कि टॉलस्टॉय फार्म में संग्रहालय और स्थानीय महिलाओं को अलग अलग काम सीखाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर बनाया जाए लेकिन इस पैसे को कॉन्स्टिट्यूशन हिल पर गांधी जी के बारे में प्रदर्शनी और ओल्ड फोर्ट जेल के पुनर्निमाण के लिए खर्च कर दिया गया.
हालांकि टॉलस्टॉय फार्म में कई तरह की योजनाओं को शुरू करने की कोशिश होती रही लेकिन सभी कोशिशें बेकार गई.
टॉलस्टॉय फार्म में किस तरह की योजनाएं चलाई जाएं और भविष्य में क्या किया जाए इसके लिए दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मिशन, गांधी शताब्दी समिति और महात्मा गांधी रिमेम्बरेंस कमिटी, जोहैनसबर्ग में कला और संस्कृति विभाग मिल कर बातचीत कर रहे हैं.
रिपोर्टः पीटीआई आभा एम
संपादनः एन रंजन