गिल ने विप्रो अध्यक्ष प्रेमजी की आलोचना की
३० अगस्त २०१०कॉमनवेल्थ खेलों को लेकर प्रेमजी की आलोचना का जवाब रविवार को खेल मंत्री एमएस गिल ने दिया. उन्होंने कहा कि प्रेमजी को आलोचना करने से पहले देखना चाहिए कि वह भारत में खेलों के लिए क्या कर रहे हैं. प्रेमजी के बहाने कॉरपोरेट जगत पर निशाना साधते हुए खेल मंत्री ने कहा, ''भारतीय उद्योगपतियों को देखना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं. देश के खिलाड़ियों को पैसे की जरूरत है. मैं बड़े उद्योगपतियों को संदेश देना चाहता हूं कि वे आगे आएं.''
मॉइक्रोसॉफ्ट के अध्यक्ष बिल गेट्स का हवाला देते हुए गिल ने कहा कि गेट्स अमेरिका में अथाह पैसा दान करते हैं. भारतीय कंपनियों को भी ऐसा करना चाहिए.
कॉमनवेल्थ खेल आयोजन समिति ने पहले अनुमान लगाया था कि खेल कराने में 655 करोड़ रुपये लगेंगे. लेकिन अब खर्चा बढ़कर 11,500 करोड़ रुपये तक जा रहा है. दिल्ली सरकार के खर्च को जोड़कर देखा जाए तो पूरा खेल आयोजन 28,000 करोड़ रुपये का बैठने जा रहा है.
भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं और खेलों के आयोजन को लेकर बहस भी हो रही है. भारत में आईटी क्रांति लाने वालों में एक, कारोबारी और विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी खेलों पर बेहताशा पैसा बहाए जाने की आलोचना कर चुके हैं.
प्रेमजी का कहना है कि इतना पैसा आयोजन पर नहीं, बल्कि खेल और खिलाड़ियों पर खर्च किया जाना चाहिए था. इस पर नाराजगी जताते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपे एक लेख में प्रेमजी ने लिखा, ''हम कैसे भूल सकते हैं कि हमें लाखों गांवों में प्राइमरी स्कूल और अस्पताल बनाने हैं. क्या हम बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए ऐसे (कॉमनवेल्थ) आडंबरों से दूर सकते हैं.''
सरकार की प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल उठाते हुए प्रेमजी ने लिखा, ''भारत को ज्यादा स्कूलों की जरूरत है. मौजूदा स्कूलों को अच्छे ढांचे और ज्यादा शिक्षकों की जरूरत है. इनके विकास के बजाय खेलों के तमाशे पर पैसा खर्च करना साबित करता है कि हमारी प्राथमिकताएं गलत हैं.''
प्रेमजी के जैसी बातें पूर्व खेल मंत्री और कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर भी कर चुके हैं. वह राज्यसभा में कॉमनवेल्थ खेलों को लेकर अपना विरोध जता चुके हैं. कॉमनवेल्थ खेलों का विरोध करने वालों को जनता के एक बड़े तबके का समर्थन भी मिल रहा है. कई लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि सरकार लोकतांत्रिक ढंग से दूसरों की राय सुनने के बजाय उनकी आलोचना करने में आखिर क्यों तुली है.
रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह
संपादन: ए कुमार