गीत भी करते रहे हैं अदाकारी
२९ अप्रैल २००९बॉलिवुड गीतों की जब बात आती है तो इनके बोलों पर ध्यान जाना लाज़िमी ही है. प्यार, मोहब्बत, पायल, घुंघरू, चांद. चूनर, घुंघटा. इन शब्दों से कितने ही फ़िल्मी गाने पटे पड़े हैं. इन शब्दों से एक और छवि ज़ेहन में उभरती है फ़िल्मी हीरोइन की. फ़िल्मों की कहानी इस हीरेइन पर केंद्रित हो, यह तो कम ही देखने को मिलता है. लेकिन ज़्यादातर गानों में उसकी ख़ूबसूरती का बखान ज़रूर किया जाता है. बस, समय के साथ साथ प्रस्तुति का तरीक़ा बदल जाता है.
" अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की, इंसान बन गई है किरन माहताब की. अब क्या मिसाल दूं."
1962 में बनी फ़िल्म ''आरती'' के इस गाने में अभिनेता प्रदीप कुमार अदाकारा मीना कुमारी के हुस्न की तारीफ़ कुछ इस अंदाज़ में करते हैं. कहते हैं कि उनकी ख़ूबसूरती की आभा ऐसी है जैसे चांद की किरण इंसान बनकर धरती पर उतर आई हो. 'चौदहवीं का चांद' से लेकर ' मेरे महबूब' तक 60 का दशक ऐसे गानों से भरा पड़ा है, जिनमे नायिकाओं को चांद, फूल आदि प्राकृतिक वस्तुओं की उपमाएं दे उन्हें एक मूर्ति की भांति निर्जीव और चेतना विहीन बना दिया जाता है. उनके गुणों, उनकी शख़्सियत का बखान इन गानों में बिरले ही देखने को मिलता है.
अब अगर सत्तर के दशक की बात करें तो यहां भी गानों के बोलों में महिलाओं का वही चित्रण देखने को मिलता है. उदाहरण के लिए इस सदाबहार हिट गाने को ही लीजिए "चुरा लिया है तुमने जो दिल को को". इस गाने में अभिनेता विजय अरोड़ा अभिनेत्री ज़ीनत अमान के लिए अपने प्रेम को कुछ इस अंदाज़ में बयान करते हैं, " सजाउंगा लुट कर भी तेरे बदन की डाली को. लहू जिगर का दूंगा हसीं लबों की लाली को". गीत के वीडियो में ख़ूबसूरत अदाकारा ज़ीनत अमान गिटार के साथ थिरकती हैं और विजय अरोड़ा जोशो-ख़रोश के साथ उनकी शारीरिक सुंदरता और होंठों की लाली की तारीफ़ के पुल बांधते हैं. यहां पर भी महिला को एक ऐसी ख़ूबसूरत वस्तु के रूप में चित्रित किया गया है, जिसकी इस मूर्तिनुमा ख़ूबसूरती को क़ायम रखने के लिए मर्द हर जोखिम से खेलेगा.
यदि 90 के दशक की बात करें, तो इस समय बॉलिवुड गीतों में महिलाओं के चित्रण का कोई एक सिद्धहस्त फ़ॉर्मूला नही था. बल्कि मिले जुले प्रकार के गाने बनते थे. "तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त" से लेकर " लाल लाल होंठों पर गोरी किसका नाम है" गाने इसी वक़्त की उपज थे. मोहरा फिल्म के "तू चीजं बड़ी है मस्त मस्त" आइटम सॉन्ग से रवीना टंडन रातों रात स्टार बन गईं. इस फिल्म में रवीना ने एक पत्रकार का किरदार निभाया था. लेकिन यह बात शायद ही किसी को पता होगी. आम लोगों के जे़हन में तो वह ''मस्त मस्त'' गर्ल के रूप में ही बसीं.
सन 2000 के बाद से बॉलिवुड गीतों में आइटम नंबरों की तरफ़ रूझान बढता गया. गाने के बोल चाहे जो भी हों, लेकिन प्रस्तुतीकरण ऐसा होता था कि स्क्रीन पर कम कपड़ों में एक सजी धजी महिला थिरकती हुई ज़रूर नज़र आए. लेकिन महिलाओं की शारीरिक ख़ूबसूरती को भुनाने वाले वाले इन गानों से भी दर्शक उकताने लगे. इसके चलते हाल में ऐसे गीतों का दौर शुरू हुआ है, जो रोमांस के साथ साथ अन्य भावनाओं को भी परदे पर उतारते हैं. ''रंग दे बसंती'', ''तारे ज़मीन पर'' सरीखी फ़िल्मों के गीत चांद, चूनर और घुंघरू के बासी ढांचे से बाहर निकल बॉलिवुड गीतों को एक नई परिभाषा देते हैं.
रिपोर्ट - रति अग्निहोत्रि
संपादन - राम यादव