गुम होते गजराज
९ सितम्बर २०१०लोभ के शिकार
इनसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. आबादी के जंगलों में सरकने से, जंगली जानवरों के आने जाने के रास्ते पर बढ़ते अतिक्रमण के चलते मनुष्य और जानवरों की मुठभेड़ बढ़ी है. इसका नतीजा अकसर वन्यजीवों के लिए ही नुकसानदेह होता है. कुछ सालों से सरकार को पूर्वोत्तर भारत के पड़ोसी देशों और लोगों से अपील करनी पड़ रही है कि उनके गांवों खेतों में गलती से घुस आए हाथियों की हत्या न की जाए. हर साल बड़ी तादाद में हाथी दांत की तस्करी होती है, जिसके लिए हाथियों को मार दिया जाता है.
टकराव के रास्ते
समस्या यह है कि जंगल में बने हाथियों के रास्तों पर लोगों ने आबादी वाले गांव बसा लिए हैं. इस वजह से हाथी वापस जाने का रास्ता नहीं ढूंढ पा रहे हैं और हिंसक हो रहे हैं. ये हाथी थाइलैंड से भूटान की ओर जाते हैं और भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा उनके रास्ते में पड़ता है.
मगर अधिकारियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में हाथियों की संख्या बढ़ी है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 25,000 हाथी हैं. वे अलग अलग रास्तों से जंगलों में घुसने की कोशिश करते हैं. यह समस्या सिर्फ बांग्लादेश, थाइलैंड या भूटान की नहीं, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की भी है.
प्रजनन, मौसम की मार से बचने और खाने की तलाश में जंगली जानवर हर साल एक निश्चित अवधि या मौसम में एक इलाके से दूसरे इलाके की ओर जाते हैं. ये हाथी हर साल थाइलैंड से भूटान की तराई में जाते हैं, जिसके बीच पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा है. हर साल यह हाथी रास्ते में आने वाले कई गांव उजाड़कर लोगों को मार देते हैं और कई लोग इन मुठभेड़ों में घायल भी हो जाते हैं.
पूर्वोत्तर भारत में जंगली हाथी अच्छी खासी संख्या में पाए जाते हैं और सिर्फ असम में इनकी संख्या 5000 से अधिक बताई जाती है. लेकिन जैसे जैसे असम में आबादी बढ़ती गई, लोगों ने ऐसे इलाकों में पांव पसारने शुरू कर दिए, जो हाथियों के रास्ते थे. नतीजतन हाथी रास्ते में आने वाले गांवों में तबाही मचा देते हैं. इसका भुगतान उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. हाथियों के उपद्रव से भड़के लोग इन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं और कभी गुड़ में जहर रखकर तो कभी शिकारियों को बुलाकर उन्हें मार देते हैं.
संवेदनशील प्राणी
हाथी एक सामाजिक प्राणी है और झुंड बनाकर रहता है. यह प्राणी काफी संवेदनशील होता है. हाथी की याददाश्त काफी तेज मानी जाती है. यहां तक कि अपने झुंड के किसी सदस्य के मारे जाने पर अकसर हाथी गुस्से में आकर तबाही मचा देते हैं. भारतीय हाथी (एलिफास मैक्सिमस इंडिकस) एशियाई हाथी की चार उपजातियों में से एक है. भारत के अलावा हाथी बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, कंबोडिया, चीन, लाओस, मलयेशियाई प्रायद्वीप, म्यांमार, नेपाल, थाइलैंड और वियतनाम में भी पाए जाते हैं.
सैटेलाइट से मिली ताजा तस्वीरें बताती हैं कि असम में 1996 से 2008 के बीच जंगल की लगभग चार लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर गांव वालों ने अतिक्रमण कर खेती बाड़ी शुरू कर दी है. इस क्षेत्र में हाथियों के पुराने रास्ते भी हैं. जैसे ही हाथियों के प्रजनन का मौसम शुरू होता है, हाथी इन रास्तों पर अपनी यात्रा शुरू कर देते हैं.
प्रजनन के मौसम में कई बार नर हाथी बेकाबू हो कर सामने आने वाली हर चीज को तहस नहस कर देते हैं. मस्ताने हाथी अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए आपस में लड़ाई तो करते ही हैं साथ ही पेड़ पौधों को भी उखाड़ फेंकते हैं. यहां तक कि कई बार ये हाथी गैंडे जैसे बड़े जानवर को भी मार देते हैं.
हाथियों के आबादी वाले इलाके में घुसने से अकसर जानमाल का नुकसान होता है. पर इस घुसपैठ का कारण ढूंढने के लिए पहले ये सोचना होगा कि हाथी हमारे इलाकों में घुस आए हैं या हम उनके इलाके में घुसे हैं.
'कुंकी' करेंगे काबू
असम में जंगली हाथियों के नियंत्रण के लिए 'कुंकी' नाम से जाने जाने वाले पालतू हाथियों की मदद ली जा रही है. असम और पश्चिम बंगाल के बहुत से इलाकों में अकसर उग्र हाथियों के झुंड खेतों, गांवों और लोगों पर हमला कर भारी तबाही मचाते हैं.
विशेषज्ञों ने उग्र हाथियों को पालतू हाथियों के जरिये घेरकर उन्हें रास्ते पर लाने की कोशिश की है. इसके नतीजे भी निकले हैं. सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में इस रणनीति को अपनाया गया, वहां हाथियों की हिंसा से मरने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक कमी हुई है. इस परियोजना के अधिकारी जंगली हाथियों के झुंड की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और उनको पालतू हाथियों से घेर कर गांव से दूर रखते हैं.
इस योजना को वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड से भी मदद मिली है. हाथियों को भगाने के क्रूर पारंपरिक तरीकों जैसे करंट लगाना, फन्दे कसना और बम फोड़ना आदि से यह रणनीति काफी कारगर सिद्ध हुई है. वन्यजीव प्रेमी भी इस पहल से उत्साहित हैं.
सुरक्षित गलियारा
हाथियों की बढ़ती समस्या के बाद भारत में अब कोशिश की जा रही है कि दो जंगलों के बीच एक कॉरिडोर (गलियारा) बना कर उसका संरक्षण किया जा सके. सुरक्षित रास्ते के लिए हाथियों के कॉरिडोर पर तैयार की गई रिपोर्ट पर लगभग सभी बड़े विशेषज्ञों की राय ली गई है. उम्मीद है कि इससे हाथियों को जंगलों में ही रोकना संभव होगा और उनके आबादी वाले इलाकों में घुसने की घटनाओं में कमी आएगी.
भारत में ऐसे 88 गलियारों की पहचान की गई है और उन पर कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं सरकार के साथ मिलकर काम कर रही हैं. पर भारत में वन्यजीवों के रहवास के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों में एक समस्या मुंह बाए खड़ी रहती है. वह है बढ़ती जनसंख्या की. लगातार बढ़ती जनसंख्या और जंगल पर बढ़ते दबाव ने पिछले कुछ दशकों में हाथियों की समस्या को बढ़ाया है.
इसके लिए देखना होगा कि हाथी दो जंगलों के बीच जिन इलाकों का उपयोग ऐतिहासिक रूप से करते रहे हैं, वहां कितने गांव हैं. आबादी का कितना घनत्व है. दरअसल यही वो इलाके हैं जिन्हें विशेषज्ञ कॉरिडोर कहते हैं. इनके बंद हो जाने के कारण हाथियों ने मानव रहवासी क्षेत्रों में घुसपैठ कर मुसीबतें बढ़ा दी हैं.
भारत के अलग अलग राज्यों के इन गलियारों को अब हाथियों के लिए संरक्षित करने की कोशिश हो रही है. इस योजना से वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर, यूएस विश एंड वेलफेयर सर्विस और एशियन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन जुड़े हैं. इसके अलावा गलियारों के संरक्षणों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की भी सहायता ली जा रही है.
उम्मीद की किरण
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने हाथी को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताते हुए जल्द ही राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित किया जाने की बात कही थी. उनका कहना है कि हम जल्द ही हाथी को राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित करेंगे क्योंकि वे युगों से हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. इन विशाल प्राणियों का संरक्षण करने के लिए हमें इन्हें बाघों की तरह ही अहमियत देने की जरूरत है. साथ ही उन्होने बताया कि एनटीसीए की तर्ज पर राष्ट्रीय हाथी संरक्षण प्राधिकरण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए वन्य जीव (संरक्षण) कानून में भी संशोधन की जरूरत है.
अब उम्मीद है कि इन गलियारों को 'राजकीय गलियारा' घोषित कर दिया जाए और लोगों को जानकारी दी जाए कि इन इलाकों में विकास नहीं किए जा सकते. अब ऐसे इलाकों में लोगों को सिर्फ हाथियों से बचना ही नहीं है, हाथियों को बचाना भी जरूरी है.
रिपोर्टः संदीपसिंह सिसोदिया, वेबदुनिया
संपादनः ए जमाल