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घास-फ़ूस से रासायनिक ईंधन

८ सितम्बर २००९

रोज़मर्रे की बहुत सी चीज़ों में खनिज तेल का इस्तेमाल होता है और खनिज तेल का भंडार ख़त्म होता जा रहा है. इसलिए रासायनिक उद्योग की कोशिश है कि कच्चे माल के रूप में जैव पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए.

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बायो ईंधन अब घास-फ़ूस सेतस्वीर: AP

वनस्पति तेल और मांड़ी से बायो-एथानोल और बायो-डीज़ल का उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन जैव पदार्थों में इनकी मात्रा सिर्फ़ एक प्रतिशत है. इसलिए शोधकर्ताओं की नज़र अन्य जैव पदार्थों पर है. वे लकड़ी के कचरे, भूसे, सोया के अवशेष और गन्ने के सीरे से रासायनिक पदार्थों का उत्पादन करना चाहते हैं. जैव पदार्थों की एक ख़ासियत यह है कि उनमें हमेशा एक जैसे तत्व मिलते हैं. इस सिलसिले में हालैंड के डेल्फ़्ट तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर वीब्रेन डे योंग का कहना है कि जैव पदार्थों के तीन महत्वपूर्ण अंग हैं. सेलुलोज़, जिससे कागज़ बनता है, लिगनिन, जो जैव पदार्थों को जोड़ने वाली लेई की तरह है, और तीसरा अंग है हेमिसेलुलोज़.

प्रोफ़ेसर वीब्रेन डे योंग की दिलचस्पी ख़ासकर हेमिसेलुलोज़ में है. जैव पदार्थों में इसकी मात्रा लगभग एक-तिहाई के बराबर है, लेकिन अब तक इसके बारे में बहुत कम शोध हुआ है. अधिकतर वैज्ञानिक सेलुलोज़ से मांड़ी निकाल कर बायो-एथानोल प्राप्त करने की कोशिश करते हैं. हेमिसेलुलोज़ के अणु भी सेलुलोज़ की तरह होते हैं, लेकिन उनमें मांड़ी नहीं होती. इन्हें फ़रफ़राल कहा जाता है, और अपने मूल रूप में यह एक पीला तरल पदार्थ होता है. अब तक सिर्फ़ ढलाई के क्षेत्र में या चिकनाई के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन प्रोफ़ेसर डे योंग की राय में इसकी संभावनाएं कहीं अधिक हैं. वे कहते हैं कि इन पदार्थों के इस्तेमाल की संभावनाएं कहीं अधिक हैं. पहले भी फ़रफ़राल का उपयोग होता रहा है, मसलन 1960 के दशक तक नाइलोन के उत्पादन में. यानी कि यह काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्लास्टिक जैसे पदार्थों का एक बड़ा बाज़ार है.

लंबे अरसे तक महिलाओं के मोज़े बनाने के लिए नाइलोन के इस विकल्प का इस्तेमाल होता रहा. लेकिन लगभग पचास साल पहले जिसे महंगा माना जाने लगा था, खनिज तेल के भंडार के ख़त्म होते जाने की रोशनी में अब फिर से लोकप्रिय हो सकता है. शोधकर्ताओं की राय में फ़रफ़राल की एक और उपयोगिता है - इसे हाइड्रोजन से जोड़ कर मेथाइल-टेट्रा-हाइड्रोफ़ुरान या एमटीएचएफ़ नामक यौगिक प्राप्त किया जा सकता है. इसकी उपयोगिता के बारे में प्रोफ़ेसर डे योंग कहते हैं -

यह नए सिंथेटिक ईंधन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है. अमेरिकी वैज्ञानिक इस पर काफ़ी काम कर चुके हैं, और एमटीएचएफ़ का उसमें एक केंद्रीय स्थान है. मिसाल के तौर पर फ़रफ़राल से प्राप्त इस यौगिक को एथानोल के साथ मिलाया जा सकता है, और इस प्रकार भविष्य के लिए एक नया ईंधन प्राप्त किया जा सकता है. - प्रोफ़ेसर डे योंग

बायो एथानोल और बायो डीज़ल के विपरीत इस नए ईंधन से एक फ़ायदा यह होगा कि इसमें वनस्पति तेल जैसे उन पदार्थो का उपयोग नहीं होगा, खाद्य पदार्थ के रूप में जिनकी ज़रूरत होती है. हेमिसेलुलोज़ अखाद्य पदार्थ है. प्रोफ़ेसर डे योंग कहते हैं कि भारत जैसे कुछ देशों में औद्योगिक स्तर पर भी इसका उत्पादन शुरू हो चुका है.

रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: प्रिया एसेलबोर्न